किसी भी रिश्ते में स्नेह का होना अति आवश्यक है। बिना स्नेह के कोई भी रिश्ता खोखले डिब्बे की तरह है। अगर डिब्बा अगर खाली हो, तो उसपर हल्का भी प्रेसर डालिए, तो अजीब सा स्वर निकलेगा, जो कि” कर्कश होगा, कर्ण को प्रिय नहीं लगेगा। बस यही बात रिश्ते में है, अगर उस में स्नेह और सहृदयता नहीं है, तो फिर खोखला है। जो किसी के लिए भी हितकर नहीं हो सकता। ऐसे में अतिथि एवं गृह स्वामी, दोनों ही एक अजीब से बोझ भार से दबे होते है। पिता और पुत्र के बीच बस फर्मलिटी निभाया जाता है। भाई और बहन, सिर्फ इतने ही बातों तक सीमित रह जाते है, जहां तक जरूरत है।
समाज में विसंगति पैदा होने लगती है स्नेह के बिना। जब स्नेह ही नहीं होगा, तो भाई-भाई एक ही जगह रहते है, परन्तु उनके बीच अपरिचित जैसा व्यवहार होता है। कहने का तात्पर्य यही है कि” सामाजिक बंधन और संबंध को टिकाये रखने के लिए स्नेह का लेप, संबंध में मधुरता और सहृदयता अति आवश्यक है। परन्तु….आज-कल इन तीनों का सर्वथा अभाव महसूस किया जाने लगा है। आज-कल किसी भी संबंध में वो बात नहीं रही। इसके कई कारक तत्व है और इसपर विषद मंथन करने की जरूरत भी है।
एक तो आज-कल कार्यकारी स्थिति आ गई है। आज-कल “अर्थ प्रधान समय हो गया है। सत्य भी है, पैसे के बिना कुछ भी तो संभव नहीं है। अर्थ है, तभी दुनिया है, अन्यथा आपको उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाएगा। इसलिये पैसा जरूर कमाइये, किन्तु” अर्थ और सुख-सुविधा जुटाने में इतना भी तल्लीन नहीं हो जाना चाहिए कि” बाकी सभी चीजे बहुत पीछे छूट जाए और फिर आपके लिए पीछे लौटना असंभव हो जाए। क्योंकि” एक समय-सीमा के बाद आपको इन चीजों की बहुत याद आएगी और आपके पास पछतावा के सिवा कुछ नहीं बच पाएगा।
अब ऐसा भी नहीं है कि” मानव के अंदर की संवेदना ऐसे ही नहीं खतम हो गई है। इसके लिए जिम्मेदार और भी कई चीज है, जैसे कि” आज-कल तेजी से बदलता हुआ लाइफ-स्टाइल। आज-कल इलेक्ट्रोनिक मीडिया का प्रभाव बहुत ही बढ गया है। मोबाइल के प्रचलन ने तो और भी मुश्किल परिस्थिति का निर्माण कर दिया है। आज-कल रिश्ते से ज्यादा महत्वपूर्ण मोबाइल हो गया है। हर कोई मोबाइल में इस तरह से उलझ गया है कि” भूल सा गया है, उसके आस-पास कोई दुनिया है, जिसको संभालने की जरूरत है।
हां, वक्त की जरूरत है कि” हम अपने जड़ों की ओर लौटे। उन चीजों को संभाले, जो कि” टूट कर बिखर जाने को हो चुका है। फिर से जरूरत है, उन चीजों को संभालने की, जो बहुत पीछे को छूटता जा रहा है। जरूरत है कि” आने बाली पीढी को उन चीजों को एहसास करवाए, जिसके बिना मानव सभ्यता शून्य की तरह है, जो अगर कोई अंक साथ में नहीं हो, तो महत्वहीन हो जाता है। वरना तो, अगर आज नहीं चेते, तो फिर पछतावा करने के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा। फिर तो आने बाली सभ्यता हताशा और निराशा के गर्त में समा चुका होगा, जहां मानवीय संवेदनाओं की अहमियत नहीं होगी।
क्रमश:-