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उत्तराखंड के बारे में ऐसी अनोखी बातें जो मेरे राज्य को इतना खास बनाती है

देख भुला नीम की लकड़ी चंदन से कम नहीं और हमारा उत्तराखंड लंदन से कम नहीं

जी हां, जिस तरह से नीम की लकड़ी चंदन से कम नही होती है ठीक उसी तरह से हमारा उत्तराखंड (UK) राज्य लंदन (UK) से कम नहीं है! उत्तराखंड भले ही एक छोटा सा राज्य है लेकिन अपनी खूबसबरती की वजह से यह राज्य भारत का बेहद सुंदर राज्य माना जाता है। चारों तरफ हरियाली और ऊंचे-ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़ इस राज्य की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। वहीं इस राज्य में बने सुंदर और प्राचीन मंदिर भी इस राज्य की शान को बढ़ाते हैं। इसलिए इस राज्य को देवभूमि भी कहा जाता है क्योंकि यहां कई देवी देवता निवास करते है और गंगा , यमुना जैसी बड़ी नदियो का उद्गम होता है और भी कई नदियों का मिलन यहीं आकर होता है।

कहते हैं अगर मरने से पहले चारधाम यात्रा हो जाए तो उससे बड़ा कोई सुख नहीं है और यह चार पवित्र धाम: केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री मंदिर और गंगोत्री मंदिर भी इसी राज्य में स्थित हैं। नदियों से लेकर पहाड़ तक; पवित्र चार धाम से लेकर सभी देवी देवताओ के निवास के गढ़ तक; इन सबको समेटे एक छोटा से राज्य उत्तराखंड इसलिए इतना खूबसूरत है और अगर आपको लंदन जैसा लुत्फ चाहिए आप उत्तराखंड में आकर उठा सकते हैं।

उतरांचल से उत्तराखंड तक का सफर

उत्तराखंड की स्थापना 9 नवंबर सन् 2000 में हुई थी और 2006 तक इस राज्य को उत्तराचंल के नाम से जाना जाता था, जिसके बाद इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। उत्तराखंड राज्य को एक अलग पहचान असानी से नहीं बल्कि कई वर्षो के आंदोलन के बाद भारत के 27वें राज्य के रुप में मिली। इस बीच राज्य ने लंबा सफर तय किया लेकिन आज भी उत्तचराखंड वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया, जो उसका होना चाहिए था। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों- गंगा और यमुना के मिलन, गंगोत्री और यमुनोत्री और इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान भी हैं। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में है और देहरादून उत्तराखंड की राजधानी के साथ राज्य का बड़ा महानगर भी है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।

उत्तराखंड राज्य में कितना हुआ विकास

उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 21 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है। इन सालों में इस राज्य में विकास तो हुआ है लेकिन 21 साल बाद भी कई ऐसे मुद्दे है जिन पर राज्य अभी तक पीछे है। आज भी राज्य के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां विकास दर बहुत कम है, जहां लोगो का जीवन यापन अभी भी मुश्किल है। इसके लिए सरकार को अभी कई कार्य और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। उत्तराखंड, जिसकी लगभग 66.6% आबादी गांवों में रहती है और जहां दुर्गम और दुरूह पर्वतीय और जंगल क्षेत्रों में लोगों का वास है, बिजली और सड़क गांव-गांव पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। साथ ही राज्य की जनता आज भी रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकता को लेकर सड़कों पर उतर आती है। उत्तराखंड में 21 बाद भी गैरसेंण सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है 21 सालों में भाजपा की भी सरकार रही और कांग्रेस की भी लेकिन कोई भी गैरसेंण का पूर्णकालिक राजधानी बनानी की इच्छा जाहिर नही कर पाई।

विकास कार्य और उपलब्धियां

इसके अलावा उत्तराखंड की आर्थिक विकास दर राष्ट्रीय आर्थिक विकास दर से बेहतर मानी गई है। उत्तराखंड ने औसतन 10% की आर्थिक विकास दर का लक्ष्य प्राप्त किया है, जो छह-सात% की राष्ट्रीय विकास दर की तुलना में ज्यादा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, जन्म और मृत्यु दर जैसे अनेक सामाजिक मानकों के दृष्टिकोण से इस राज्य का प्रदर्शन अनेक राज्यों में बेहतर माना गया है साथ ही राज्य में कई विकास कार्य भी हुए है।

2000 से लेकर 2022 तक के सफर में इस राज्य के द्वारा हासिल की हुई उपलब्धियां 

ऑल वेदर रोड परियोजना के अंतर्गत चारों धामों को जोड़ने वाले राजमार्गों के चौड़ीकरण और सुदृढ़ीकरण का कार्य हो चुका है। दुसरी उपलब्धि में तीर्थ स्थलों तक आसान से पहुंचने के लिए और व्यापार केंद्रों को जोड़ने और पिछड़े क्षेत्र में रहने वाली आबादी को सेवाएं प्रदान करने के लिए उत्तराखंड में ऋषिकेश और कर्णप्रयाग के बीच नई ब्राडगेज रेल लाइन राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण विकास परियोजना है।

तीसरी और बड़ी उपलब्धि कुमाऊं में एम्स का सेटलाइट सेंटर खोलने का रास्ता साफ हो होना है. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऊधम सिंह में एम्स ऋषिकेश का सेटेलाइट सेंटर खोलने की अनुमति दे दी है. इसके लिए राज्य सरकार किच्छा में जमीन उपलब्ध कराएगी. राज्य सरकार ने किच्छा के प्राग फार्म में करीब 200 एकड़ भूमि चिन्हित की है।

8 अक्तूबर 2021 से शुरू देहरादून-हल्द्वानी-पंतनगर-पिथौरागढ़ हेली सेवा शुरू होना और पिथौरागढ़ में नैनी सैनी हवाई पट्टी का विस्तार होने के साथ ही हवाई सेवा शुरू होना उपलब्धि भरा है जिससे पर्यटकों और राज्य के लोगों को भी सुविधा हुई है र साथ ही इससे सफर भी आसान हुआ है। इन सभी के साथ ही चम्पावत के टनकपुर से दिल्ली और त्रिवेणी एक्सप्रेस ट्रेन शुरू होना कुमाऊं के सीमांत जिले के लिए उपलब्धियों भरी है। 2018 अप्रैल से शुरू हुई दोनों ट्रेनों से सीमांत के लोगों को बड़ी राहत मिली है। इससे यात्रियों को काफी सहूलियत मिल रही है।

वहीं अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट में करीब एक करोड़ की लागत से विभांडेश्वर बैराज बनाया गया है। जो पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के मकसद से बनाया गया बैराज भावी संभावनाओं को खुद में समेटे हुए है। इन सब के अलावा एक ऐसी उपलब्धि भी है जो अल्मोड़ा जिले की डेढ़ लाख की आबादी को पानी देने का काम कर रही है ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की समस्या से निपटने के लिए ग्रामीण पंपिंग योजनाओं पर काम हो रहा है। 80 करोड़ की लागत से रानीखेत उपमंडल में चमड़खान ग्रामीण, चिलियानौला, खारोघाटी, चौखुटिया नागर पंपिंग योजनाओं का निर्माण हुआ है।

उत्तराखंड के कई क्षेत्रो में शिक्षा की सुविधा न होना एक बड़ी समस्या है लेकिन समय के साथ शिक्षा के चलन का भी विकास हुआ 2005 में स्थापित उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ है। वर्तमान में प्रदेश के मुख्य शहरों के साथ ही दूरस्थ इलाकों में मुक्त विवि के सेंटर हैं। हर साल लाखों लोग विभिन्न पाठ्यक्रमों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

पहाड़ी इलाको से पलायन अभी भी एक बड़ी समस्या

उत्तराखंड एक अलग राज्य बनने के 21 साल बाद भी यहां एक सबसे बड़ी और अहम समस्या बनी हुई है उत्तराखंड से बढ़ता पलायन। एक ऐसी समस्या है जो राज्य के लिए अच्छी नही है। वर्तमान में पलायन के कारण गांव के गांव खाली हो गए हैं। उत्तराखंड एक ऐसी खूबसबरत जगह है जहां लोग घुमने आते है वहां के निवासी वहीं से पलायन कर रहे हैं और पलायन करने के एक नही बल्कि कई कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी है। आज के समय में ज्यादातर लोग शहरी क्षेत्रो की ओर इसलिए ही पलायन कर रहे हैं क्योकि गांव में रहकर रोजगार न मिलना एक बहुत बड़ी समस्या है, जिस वजह से लोग भुखमरी की कगार पर आ जाते हैं और रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख कर लेते हैं। वर्तमान में लोग अपनी पहाड़ी भूमि को छोड़कर शहरो की ओर रवाना हो रहे हैं और इसके अलावा भी पलायन सिर्फ बेरोजगारी के कारण ही नहीं बल्कि शिक्षा की सुविधाओं में कमी के कारण भी लोग पलायन कर रहे हैं।

12वीं के बाद लोग अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए शहर के लिए या तो पूरा परिवार रवाना हो जोता है या फिर वह अपने बच्चो को ही दूसरे प्रदेश भेज देते हैं। फिर उनके आगे की पीढ़ी गांव की और सिर्फ घूमने के उद्देश्य से ही ग्रामीण क्षेत्रो में आते हैं। आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर उच्च शिक्षा के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं है और इसी तरह से क्षेत्र खाली हो जाते हैं। बहूत से ऐसे कारण हैं, जो लोगो को पलायन करने पर मजबूर करते हैं। अब अगर पलायन को रोकना है तो इसका एक उपाय विकास ही है। अगर गांव में मूलभूत समस्याओं को पूरा कर दिया जाए तो काफी हद तक पलायन पर रोक लगाई जा सकती है। लोगों के लिए गांव में भी सुचारु रुप से बिजली पानी और सड़क के साथ-साथ अच्छे अस्पताल और उद्यम भी होना आवश्यक है, जिससे गांव में रोजगार को बढ़ावा मिल सके। इसके साथ ही कुछ अच्छे उच्च शिक्षण संस्थान भी ग्रामीण इलाको में खोले जाने चाहिए, जिससे कि लोग अपने बच्चों के भविष्य के लिए भी संतुष्ट हो सके और लोग पलायन करने को मजबूर न हो। हालांकि पूर्व से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्रियों ने राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जाने की अपनी-अपनी तरह से कोशिशें की हैं फिर भी विकास की गति कहीं न कहीं अभी धीमी है।

एक मुख्यमंत्री ने नही संम्भाली लगातार 5 साल तक सत्ता

उत्तराखंड में अब तक पांच विधानसभा चुनाव हो चुके है भले विधानसभा चुनाव पांच बार हुए हो लेकिन उत्तराखंड में पांच विधानसभा में 5 नही बल्कि अब तक पूरे 10 मुख्यमंत्री इस राज्य को मिल चुके है उत्तराखंड के सबसे पहले मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी से नित्यानंद स्वामी रहे , हालांकि जब नित्यानंद स्वामी मुख्यमंत्री बने तब तक इस राज्य में विधानसभा चुनाव अस्तित्व में नही था, इन्होने राज्य की कमान लगभग 1साल 9 नवम्बर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक सम्भाली थी इसके बाद राज्य की सत्ता भारतीय जनता पार्टी से भगत सिंह कोश्यारी जी के हाथ में आई इनका कार्यकाल भी 30 अक्टूबर 2001से 1 मार्च 2002 महज 123 दिन का ही था। इसके बाद नारायण दत्त तिवारी के रुप में उत्तराखंड को नए मुख्यंमत्री मिले जो शुरुआत से लेकर अब तक के एक अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होनें राज्य की कमान पूरे पांच तक सम्भाली थी इनका कार्यकाल अब तक सभी मुख्यमंत्रीयो में सबसे ज्यादा समय 2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 यानी पूरे 1832 दिन रहा है नारायण दत्त तिवारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से सबंध रखते है इसके बाद राज्य की सत्ता फिर से भारतीय जनता पार्टी के नेता भुवन चन्द्र खण्डूरी के हाथ में आई तो लेकिन फिर से ज्यादा समय तक नही टीक पाई। इनका कार्यकाल लगभग 2 साल 839 दिन 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक ही रहा। हालांकि एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई लेकिन दोबारा में भी 24 जून 2009 से 10 सितम्बर 2011 808 दिन नेता रमेश पोखरियाल निशंक के पास राज्य की कमान रही। अब इसके बाद फिर से 2007 में मुख्यमंत्री रहे भुवन चन्द्र खण्डूरी फिर से 1 सितम्बर 2011 से 13 मार्च 2012 तक सत्ता में आए और दोबार में महज 185 में ही सीट से रवाना भी हो गए। इस तरह से भुवन चन्द्र खण्डूरी ने उत्तराखंड पर कुल 1024 दिन तक राज किया।
अब पूरे पांच साल बाद फिर से राज्य में कांग्रेस की एंट्री हुई जिसमें 2007 के बाद 2012 में कांग्रेस के नेता विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने जिनका कार्कताल भी ज्यादा लंबे समय तक नही टीका, विजय बहुगुणा का कार्यकाल 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक यानी लगभग 2 साल यानी 690 दिन तक रहा इसके बाद कांग्रेस के ही नेता हरीस रावत मुख्यमंत्री बने। हरीश रावत उत्तराखंड के एसे मुख्यमंत्री थे जो 2 सालों में तीन बार मुख्यमंत्री बने और इनके कार्यकाल के बीच 2 बार राष्ट्रपति शासन भी लगा। हरीश रावत का दुसरी बार का कार्यकाल महज 1 ही दिन का रहा था। इसके बावजूद तीसरी पूरी विधानसभा में हरीश रावत ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे।इस सबके बाद फिर 2017 में चौथी विधानसभा में भाजपा सत्ता में आई और तब से अब तक भाजपा ही उत्तराखंड की सत्ता में है लेकिन 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बने जिनका कार्यकाल 1453 दिन का था उसके सबसे कम कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री जो 10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री बने और 4 जुलाई 2021 को पद से हट भी गए इनका कार्यकाल महज 116 दिन का ही रहा इसके बाद आई पांचवी और वर्तमान विधानसभा में बने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ही अभी राज्य की सत्ता पर काबिज है अब देखना यह होगा की धामी जी कब तक सत्ता को सम्भाल पाते है पुष्कर सिंह धामी नारायण दत्त तिवारी की तरह पूरे पांच साल उत्तराखंड की कमान को थामें रखेंगे या फिर और मुख्यमंत्री की तरह 2 3 में ही सत्ता को अलविदा कह देगें।
इस तरह से उत्तराखंड की राजनिती का इतिहास रहा है कि नारायण सिंह दत्त के अलावा कोई भी मुख्यमंत्री राज्य में मुख्यमंत्री पद पर तैनात नही रहे रहे है उत्तराखंड के 22 साल की राजनिती में 10 मुख्यमंत्री इस राज्य में बदल चुके है। जिनमें भाजपा और कांग्रेस दोनो रही पार्टीयो ने 10 ,10 साल राज किया। इनमें से आठ मुख्यमंत्रियों में प्रायः सभी यहां की जमीन से जुड़े रहे हैं।
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