हार-जीत, दुःख-सुख, हानि-लाभ – हमारे हाथ में नहीं होते| लेकिन एक चीज ऐसी है, जिस पर हमारा नियंत्रण हो सकता है, वह है हमारा दृष्टिकोण (Perspective) या नजरिया|
दृष्टिकोण (नजरिया) हमारी प्रगति में सबसे बड़ा अवरोध है
इससे अंतर नहीं पड़ता कि आपको क्या उपलब्ध है, आप कितने सफल हैं अथवा किस पद पर स्थित हैं – अंतर केवल यह है कि जो कुछ भी आपने उपलब्ध किया है – आप उसे किस प्रकार देखते हैं| यही आपके प्रसन्न या दुखी होने का कारण होता है| जीवन में पूर्ण संतुष्टि केवल एक कल्पना मात्र है| मनुष्य के संतुष्ट होने का अर्थ है, स्वयं की मौलिक प्रकृति अर्थात् सतत गतिशील रहने की प्रवृत्ति के साथ गतिरोध, जो कि संभव नहीं है|
कर्मफल का बोध दृष्टिकोण को दूरगामी बनाता है
किसी जगह पर एक मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था| कुछ मज़दूर धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे| वहां से गुजरते हुए एक राहगीर ने उनमें से एक मजदूर से पूछा: “क्या कर रहे हो?” वह बोला: “पत्थर तोड़ रहा हूँ|” उत्तर सही था, लेकिन स्वर में उदासी, कष्ट और कुंठा झलक रही थी| राहगीर ने दूसरे मजदूर से वही प्रश्न किया, तो उसका उत्तर था: “अपनी रोजी-रोटी कमा रहा हूँ|” उसका उत्तर भी सही था, उसमें उद्देश्य का बोध था; कार्य के कारण और परिणाम की झलक थी| यद्यपि वह दुखी और उदास नहीं दिखाई दे रहा था, परन्तु आँखों में संतोष का भाव भी नहीं था| यही प्रश्न तीसरे मजदूर से किया गया| वह कोई गीत गुनगुना रहा था| गीत को बीच में रोककर बोला: “मैं मंदिर बना रहा हूँ|” और फिर से गीत गाने लगा| उसकी आँखों में चमक और ह्रदय में संगीत था| राहगीर ने उससे पुनः प्रश्न किया, “बड़े खुश लग रहे हो! क्या थकते नहीं हो?” मजदूर ने पुनः उत्साह के साथ उत्तर दिया, “जब मंदिर बनकर तैयार होगा, तो मुझे इस बात पर गर्व होगा कि इसके निर्माण में मैंने भी अपना पसीना बहाया था!” अर्थात् उसे अपने कर्म-फल का पूरा बोध था| रोजी-रोटी कमाने के लिए धूप में काम करने की विवशता और शरीर को होने वाला कष्ट उसके ध्यान के केंद्र में नहीं थे…सृजन में सहभागी होने की आनंदमय अनुभूति तथा परिणाम की सुखद कल्पना में डूबा हुआ था…….
हम सही दृष्टिकोण का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं
जीवन के प्रति भी यही तीन उत्तर हो सकते हैं| यह आपके चिंतन पर निर्भर करता है कि आप विविध परिस्थितियों में कौन सा उत्तर चुनते हैं, और इसी आधार पर आपके जीवन की दशा, दिशा और गति निर्धारित होती है| दृष्टिकोण में विविधता के कारण समान परिस्थितियों का प्रभाव अलग-अलग होता है तथा लोगों के लिए जीवन का अर्थ और उनकी चिंतन की दिशा अलग-अलग होती है| प्रकृति के साथ समन्वय रखकर ही जीवन सहज और रोचक बन सकता है तथा प्रतिकूलताओं से निबटना और आगे बढ़ना सुगम हो सकता है|