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हिंदी कविता: सपनों की राह

सपनों की राह में न जाने कब-तक चलना पड़ेगा |

बिखरा हुआ हु मैं न जाने कब-तक भटकना पड़ेगा |
भटकते- भटकते राह मिले या न मिले पर चलना पड़ेगा |
चलते- चलते यह राह बाधाओं से रुक जाएगी पर सपनों की राह में चलना पड़ेगा …सपनों की राह में चलना पड़ेगा
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