आजकल देश में एक नयी तरह की राजनीती चल रही है। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और तो और हर महिला को 1000 रूपया और बेरोजगार को 3000 रूपया पेंशन। पुरानी पेंशन योजना को वापीस लागु करेंगे जिसको महान अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने भी नकारा था।
पता नहीं की यह सब मुफ्त में देने के लिए क्या वाकई में राजनीतिक दलों के पास पैसे है या देश में वाकई में इतना पैसा है? कहने को तो कुछ भी बोल सकते है। बोलने का पैसा नहीं है।
जो लोग मुफ्त बिजली का वादा करते है क्या उनको पता है की एक यूनिट बिजली बनाने के लिए कितना खर्चा होता है? बिजली बनाने के लिए कोयला, गैस जैसे ऊर्जा संसाधन के अलावा जल से बिजली बनाने के लिए बांध बनाने पड़ते है। पवनचक्की, सौर ऊर्जा के लिए अलग से संसाधन मतलब सब जगह निवेश के बाद ही बिजली बनती है। ऐसे में सबको मुफ्त मुफ्त देने से बिजली कंपनीओ का नुकसान साथ ही साथ देश पर कर्जा बढ़ जाता है।
दूसरा सबको पैसे देने का वादा। अरे मेरे नेताजी पहले यह तो सुनिश्चित करो की किस किस को आप प्रति माह 1000 रुपये की जरुरत है? बेरोजगार भत्ता देने से अच्छा अपने राज्य में निवेश लाये और लोगो को रोजगार प्रदान करे।
आजकल चुनाव जितने के लिए लोग कुछ भी बोल देते है। उनको कहा घर से पैसे लगाने है? आमजनता पर तरह तरह के कर लगाकर पैट्रॉल डीज़ल महंगा कर के लोगो से ही वसूलना है।
इसमें जनता का भी दोष है। मुफ्त मुफ्त के चक्कर में ऐसे लोगो को जीताकर सरकार चलाने को सौप देते है जिन्हे राजनीती में ज्यादा देर नहीं टिकना। जब सरकार सब मुफ्त में ही बांटेगी तो राजकोषीय घाटे के चलते सरकार के पास न रस्ते बनाने के पैसे होंगे, न ही सुरक्षा के लिए हथियार खरीदने के लिए। अर्थतंत्र का पहिया भी रुक जायेगा क्यूंकि बाजार में हर चीज के दाम बढे होंगे और निवेश न होने के चलते लोगो के पास रोजगार नहीं होगा।
मतलब साफ़ है। जनता को सोचना होगा की क्या उन्हें वाकई में मुफ्त की राजनीती को बढ़ावा देकर देश के अर्थतंत्र को बरबाद करना है या देश के विकास में सहयोग करना है। क्यूंकि बिना कुछ किये कुछ भी हासिल नहीं होता। जो आज मुफ्त मील रहा है उसकी क़ीमत कही न कही तो चुकानी पड़ती है।
फैसला आपका है। अगर अच्छी सड़क, अच्छे अस्तपाल, अच्छे स्कूल, मजबूत सेना और अच्छे परिवहन के साधन चाहिए तो मुफ्त की राजनीती करने वाले नेताओ को न चुने। महेनत करने वालो को ही चुने। आज देश अर्थव्यवस्था में विश्व में 5 वे पायदान पर है। इसको और आगे ले जाना है।
मुफ्त की राजनीती से यह आगे न बढ़कर पीछे ही जायेगा। जिसको जरूरत हो उसे सहायता मिले पर एक निश्चित मानको के आधार पर। हर किसीको मुफ्त के रेवड़ी बाटना सही नहीं। वरना यह देश के अर्थतंत्र को बरबाद कर देगा।