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‘डार्लिंगस’ ने बताया कि घरेलु हिंसा के लिए अरेंज्ड मैरिज का होना ज़रूरी नहीं

कई फिल्म आती है और चली जाती है हम देखने का सोचते हैं फिर कोई दोस्त आ कर कह देता है अबे उस मूवी की तो रेटिंग ही इतनी कम है क्या देखना और फिर ऐसे करते करते हम रेटिंग्स को देखकर फ़िल्में देखने लगते हैं और कई फ़िल्में जिन्हें रेटिंग कम मिलती हैं पर बहुत बढ़िया फिल्मोग्राफी के साथ साथ कई सोशल मैसज दे रहे होती है वो पिछड़ कर बस OTT पर रह जाती है I

कुछ दिन पहले फिल्म आयी थी डार्लिंगस: विजय वर्मा , आलिया भट्ट , शेफाली शाह लीड रोल में थे। फिल्म शुरू हो रही थी दो प्यार के बाशिंदों से जो एक दूसरे से शादी कर घर बसा लेते हैं और फिर शुरू होती है असल कहानी, जो कहा जाये कि सुनी सुनाई बात में कही जाने वाली सी लगती है, कि प्यार और शादी तक तो हमेशा फ़िल्में बनती है उसके बाद की कहानी कोई नहीं दिखाता ये कहानी प्यार और शादी के बाद की ही कहानी है।

जिसमें शादी तो है मगर कपल के बीच प्यार नज़र नहीं आता। हर रोज़ लड़का ऑफिस जाता है, ड्रिंक करता है और अपना ऑफिस का सारा गुस्सा अपनी उसी प्रेमिका पर निकालने लगता है, जिससे उसने प्यार की और शादी कर रिश्ते को और वादों को पूरा भी किया। मगर बात नहीं बनी और लड़ाई झगड़ों से और बिगड़ती चली जाती है।

फिल्म में मेढ़क कौन और बिच्छू कौन?

घरेलु हिंसा की कहानी कहती यह फिल्म यह तो दिखाती ही है कि घरेलु हिंसा के दौरान एक इन्सान कितना ज़ालिम हो सकता है, उसके साथ साथ इस बात को भी कहती नज़र आती है कि घरेलु हिंसा के लिए सिर्फ अरेंज्ड मैरिज का होना अनिवार्य नहीं है। यह दो बहुत प्यार करने वालों के बीच भी हो सकता है।

कहानी में आलिया को शेफाली, जो उसकी मां है, एक मेढ़क और बिच्छू की कहानी सुनाती है, जिसका निचोड़ यही है कि इन्सान की जो फितरत होती है वो वही करता है। फिल्म का वो मोड़ जो सभी को बहुत पसंद आने वाला था, जिसमें आलिया और शेफाली मिलकर विजय के साथ वही करते हैं जैसी हिंसा वो उनके साथ करता है। उसके साथ यह सब करते वक़्त कई बार आलिया यानी प्रेमिका के अंदर का प्यार भी जाग जाता है पर प्रेमी के किये मार पीट को वो भूल नहीं पाती ।

हमारा कोई अपना जब घरेलू हिंसा करे तब?

आज भी मै देखता हूँ कि जब घरों में बहू को जब बेटा या भाई सभी के सामने चिल्ला रहा होता है तो वो बहनें ही उसका सपोर्ट करती नज़र आ जाती है और अपनी बहु को ही गलत बताने लगती हैं कि “इतनी सी ही बात तो थी, इतना भी नहीं कर सकती क्या, ऐसे में डांट तो खाएगी ही” और जब ऐसा ही वाकया उनके साथ होता है तो वो उनके लिए बर्दाश्त से बाहर होता है I

हमें समझना तो इस बात को है कि घरेलु हिंसा की इस लड़ाई को तब तक हराया नहीं जा सकता जब तक हम अपने लोगो को ऐसे करने पर डांटेंगे और उन पर कार्यवाही करते हुए उस बेटी और बहु को सपोर्ट नहीं करेंगे I

डार्लिंग की कहानी का अंत सबसे बेहतरीन है , जो कहीं न कहीं ये दिखा रहा है कि कर्म का फल इन्सान को मिलेगा ही और आलिया का यह कहना कि मै तो मेढ़क हूँ मेरी फितरत तो काटना नहीं है । यह सीन नैतिकता ,अपराध , कानून व्यवस्था सभी को बचाने का काम कर जाता है।

हर वो इन्सान मेढ़क ही है जिसकी फितरत काटना नहीं है और काटने वाला तो डूबेगा ही हमें काटने वाला बनना है या बचाने वाला ये हमें तय करना है।

आखरी में ये कहना चाहूँगा कि फ़िल्में सिर्फ रेटिंग देख कर देखनी के बजाय स्टोरी लाइन को देख कर देखें बहुत मज़ेदार फ़िल्में भी आ रही है।

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