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अडानी ग्रुप की दस्तक बदल सकती है भारतीय मीडिया के हालात

भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है । इसलिए इस देश में भाषा, साहित्य और संचार की समृद्ध परंपरा रही है । वाल्मीक को आदि कवि के रूप में जाना जाता है तो नारद को आदि पत्रकार के रूप में जाना जाता है । भारतीय इतिहास पर नज़र डाली जाए तो शिला लेख से से लेकर, पत्रों द्वारा सूचनाओं के आदान-प्रदान के कई प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं। विश्व की सबसे समृद्ध भाषा , उत्कृष्ट साहित्य और हमेशा से संचार एवं संवाद को तरजीह देने वाले इस देश में आज तक एक भी विश्व स्तरीय मीडिया हाउस का ना होना हैरान करता है ।

बीबीसी नेटवर्क, अल जज़ीरा, न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे दूसरे देशों के कई मीडिया संस्थान हैं जो दुनिया भर में जाने ही नहीं जाते बल्कि दुनिया भर के लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं। बीबीसी नेटवर्क जैसे विदेशी मीडिया चैनल भारत में धडल्ले से चल रहे हैं । वे कई बार विदेशों में भारत की नकारात्मक तस्वीर भी पेश करते हैं । इससे भारत की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धक्का लगता है । भारत में वैश्विक स्तर के मीडिया हाउस की कमी के चलते इसका जवाब भी विश्व स्तर पर नहीं पहुंच पाता था।

लेकिन हाल ही में भारतीय मीडिया जगत में एक ऐसी घटना घटी है जिसने मीडिया जगत के अलावा सोशल मीडिया में हलचल मचा दी है। यह घटना है भारत के सफलतम उद्योग समूह अडानी ग्रुप का एनडीटीवी अधिग्रहण। इस अधिग्रहण के साथ ही अडानी समूह के चेयरपर्सन गौतम अडानी का बयान आया है कि भारत को भी एक विश्व स्तर का मीडिया संस्थान मिलना चाहिए । उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा सकते हैं। इसी के साथ उन्होंने कहा है कि एनडीटीवी का अधिग्रहण कोई व्यापारिक अवसर नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भरा निर्णय है।

हालांकि अडानी विरोधी जो लंबे समय से अडानी फोबिया से ग्रसित हैं हर बार की तरह इस बार भी इसे एक दुर्घटना की तरह पेश कर रहे हैं । वे इस अधिग्रहण के बारे में कई तरह के झूठ फैलाकर इसे विवादास्पद बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

जबकि मामला इससे एकदम उल्टा है। अडानी एक ऐसे पारस की तरह हैं जिन्होंने जिस उद्योग को छुआ वह सोना बन गया । मिसाल के तौर पर अडानी ने जब भारतीय पोर्ट्स जगत में कदम रखा तब भारत में पोर्ट्स तो बहुत थे लेकिन वे सुविधा विहीन और सामान्य कोटि के थे । लेकिन अडानी ने देश में एक से बढ़कर एक पोर्ट्स का निर्माण किया। जिनसे अडानी पोर्ट्स के साथ-साथ भारतीय आयात निर्यात में ज़मीन आसमान का अंतर आ गया है । आज अडानी द्वारा संचालित मुंद्रा पोर्ट देश का नंबर एक पोर्ट है। जहां से बड़े पैमाने पर माल का परिवहन आसान हुआ है।

अडानी की एंट्री का भारतीय आयात निर्यात पर असर इसी से समझ लें कि 2014 तक भारतीय बंदरगाहों से 100.85 अरब रुपए की आय होती थी जो अब बढ़कर 1486 अरब रुपए हो चुकी है ।

2022 में अडानी ग्रुप ने कई कंपनियों का अधिग्रहण किया। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अडानी की एंट्री सबसे चौंकाने वाली है । Amazon के मालिक जेफ बेजोस और सेल्सफोर्स के मालिक मार्क बेनिओफ जैसे बिज़नेस जगत के कई बड़े लोगों ने समाचार संगठनों को खरीदा। इन विदेशी उद्यमियों को भी समाचार संस्थानों के अधिग्रहण के समय कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था । लेकिन उन्होंने साबित कर दिया कि सारी आलोचना गलत थी।

एनडीटीवी अडानी द्वारा ख़रीदा गया पहला न्यूज़ चैनल है लेकन इससे पहले जब उन्होंने द क्विंंट नामक वेब पोर्टल ख़रीदा था तब उनकी भी आलोचना हुई थी और आरोप लगाए गए थे कि वे इसके संपादन में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से ऐसा कर रहे हैं। लेकिन यह पूरी बातें मनगढ़ंत साबित हुईं क्योंकि द क्विंट तबसे अब तक अडानी ग्रुप को लेकर क्रिटिकल समाचार लिखता आ रहा है ।

दरअसल, भारत जैसे विकासशील देशों में पत्रकारिता को निष्पक्ष रहने के साथ-साथ लंबे समय तक काम करने के लिए अच्छे निवेश की जरूरत है। एनडीटीवी की ख़रीद पर आरोप लगाने वालों को यह देखना चाहिए कि एनडीटीवी बिकने की स्थिति में आ गया तब उसे ख़रीदा गया है।

मीडिया एक ज़िम्मेदारी भरा काम है , इसमें उन्हीं लोगों का उतरना सही है जो कहीं ना कहीं सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत हैं। हाल ही में अडानी को फोर्ब्स ने भारत का सबसे बड़ा दानदाता घोषित किया है। उन्होंने अडानी फाउंडेशन के ज़रिए अनेकों समाजसेवा के प्रोजेक्ट्स को सफल रूप से संचालित किया है। जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य , महिला सशक्तिकरण से लेकर कौशल प्रशिक्षण जैसे काम शामिल हैं। कोरोना काल में उन्होंने बड़े पैमाने पर दान दिया था। हालांकि फिलहाल भारतीय मीडिया का हाल ऐसा है जैसे हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-ग़ुलिस्तां क्या होगा ? क्योंकि भारतीय मीडिया देश के इस होनहार उद्योगपति को विवादास्पद बताती है और जिनसे सवाल पूछना चाहिए उन्हें सर पर बैठाती है। अंधों में काने राजा की तरह कुछ प्रतिभाशाली पत्रकार भी विदेशी बाज़ार के भारत में हस्तक्षेप को सिरे से नज़र अंदाज़ करके अडानी के नाम का रोना रोए बग़ैर अपनी तथाकथित जन सरोकार पत्रकारिता को अधूरा समझते हैं।

वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को तौले बिना आप अडानी का महत्व नहीं समझ सकते । जिस तरह अडानी केरल के विझिंजम में भारत का पहला मदर पोर्ट देने जा रहे हैं, जिससे पश्चिमी देशों समेत पूरे देश के बड़े मालवाहक जहाज भारत आ सकेंगे और हर साल भारत की आय में अरबों रुपए का इज़ाफा होगा। उसी तरह एनडीटीवी अधिग्रहण के बाद अडानी के बयान को हल्के में लेना पहले की तरह जल्दबाज़ी होगी।  

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