मैंने खुद को इस नजर से देखा है।
जिस नजर से दुनिया को मुझे अक्सर नजरअंदाज करते देखा है।।
मैं खुद की नजर से नजर मिला सकूं, बस इतना खुद को तराशा है।
मझधार में डूब ना जाए यह नजर, खुद से मंजिल तक पहुंचने का वादा है।।
बस खुद से इस दुनिया की नजर में खास बनने का इरादा है।
सुनना चाहती हूं दुनिया से “क्या खुद को तराशा है”।।
कोयला हूं दुनिया की नजर में अभी, चमकता हीरा बनने का इरादा है।
अभी उलझने हैं जीवन में कई, क्षितिज छूकर दिखाऊं, यह खुद से वादा है।।
जैसे मैं एक परिंदा हूं शिकार की तलाश में, एक खूबसूरत आशियाने की फिराक में।
एक खूबसूरत तारों की महफिल सजी, उस महफिल की चांद बनना चाहती हूं मैं।।
अभी नजर में नहीं किसी के मैं, एक दिन बनना चाहे मेरे जैसा कोई।
होना चाहती हूं सबके लिए खास मैं।
जहां से छू सकूं चांद को, जाना चाहता हूं उसके इतने पास मैं।।
यह कविता उत्तराखंड स्थित बागेश्वर जिला के कपकोट से मंजू धपोला ने चरखा फीचर के लिए लिखा है