नदी के पानी के साथ इंसान के आंसू भी बह रहे हैं!
झारखण्ड की राजधानी रांची से लगभग 60 किलोमीटर दूर गांव है।गांव का नाम एड़केया है।बुंडू प्रखंड के सुमानडीह पंचायत में आता है।गांव में करीब 300 घर है।इस गांव के किनारे ही कांची नदी है।नदी किनारे गांव होने का गर्व ग्रामीणों को तो होता है ।नहाने के लिए साफ और स्वच्छ पानी नदी दे ही देता है।। जब गांव के कुंए चापाकल जवाब देते हैं, उस परिस्थिति में पीने का पानी भी नदी से मिल ही जाता है।पर इस समय, गांव वाले एक अलग ही दर्द के दौर से गुजर रहे हैं ।नदी के पानी के साथ गांव वालों के आंसू भी नदी में बह रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नदी से अवैध बालू उठाव से गांव का श्मशान घाट का लगभग आधा हिस्सा उजड़ गया।श्मशान जिसे गुजरे हुए लोगों का घर कहते हैं उजड़ सा गया है। कई मुर्दार ढीप(दफनाए शव के घर) नदी में चले गए।ऐसा कहना गलत नही होगा कि ,नदी के पानी मे मृत आत्माओं के आंसू भी बह रहे हैं।गांव वाले इस बात को लेकर चिंतित हो रहे हैं कि भविष्य में शव कहाँ दफ़नाएँगे।।
पहले ही अवैध खनन का शिकार श्मशान घाट के करीब अब सरकार बालू उठाने को लेकर सर्वे कर रही है।
सरकार तो नदी को सिर्फ बालू का भंडार ही समझ रही है, पर गांव के लिए यह एक जीवन रेखा है। नदी किनारे जीना और नदी किनारे दफन हो जाना।
ग्रामीणों की चिंता उस समय और बढ़ गई जब बालू घाट जिला सर्वे रिपोर्ट(डीएसआर) प्रकाशित हुआ।राँची जिला की वेबसाइट पर अपलोड इस सर्वे पर उनका गांव को बालू घाट बनाने की बात है। अखबार में खबर भी भी छपी। ग्रामीणों को पता चला कि उनका गांव का प्लाट नम्बर 738 से बालू उठाने के लिए सर्वे हुआ है।
सर्वे रिपोर्ट में जिस प्लाट न 738 को बालू घाट के रूप में चिन्हित किया गया है।यहां से बालू उठाव होने से श्मशान उजड़ने का तो डर तो है साथ ही साथ गांव विस्थापन का भी डर है। बालू उठाव के लिए चिन्हित प्लाट न 738 नदी का प्लाट है। जो गांव के समनन्तर है।ग्रामीणों को चिंता है बालू उठाव से नदी द्वारा मिट्टी कटाव पुनः चालू होने की आशंका है। ग्रामीण पहले ही मिट्टी कटाव के दर्द को झेल चुके हैं।
आंसू नही है वर्तमान के, पीड़ा तो वर्षो से सहे हैं ग्रामीण
नदी का निर्माण तो कुदरत ने किया पर कुर्बानी गांव वालों को देना पड़ी।बरसात में रौद्र रूप दिखानी वाली कांची नदी ने कहर बरपाया । मिट्टी कटाव से ग्रामीणों की खेती की जमीन चली गई। नदी ने इतना मिट्टी कटाव किया कि गांव में बसे घरों से महज 100 मीटर की दूरी में गांव के समान्तर 60 फीट गहरी खाई बन गई।नदी किनारे बसे इस गांव के कई घर विस्थापित हो गए।।
गांव के बुजुर्ग व्यक्ति चमर सिंह महतो के अनुसार हमारे पूर्वज का घर नदी के किनारे ही था । नदी के द्वारा इतना कटाव हुआ, हमारे पूर्वज को भागना पड़ा। अब हमलोग गांव में ही दूसरी तरफ घर बना कर रहते हैं।नदी किनारे गांव वालों की पुरानी सड़क भी नदी में बह गई।
गांव को बचाने के लिए ग्रामीण ,सरकार से गुहार लगाते रहे।वर्ष 2010 में तत्कालीन सांसद सह लोकसभ उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा ने ग्रामीणों की चिंता को समझते हुए राँची के डीसी को पत्र भी लिखे। अंततः करोडों रुपए के लागत से मिट्टी कटाव रोकने के लिए गार्डवाल निर्माण हुआ।।
पत्थर से बने गार्डवाल का ही असर हुआ, मिट्टी कटाव रुका।
अब गांव के किनारे बालू का संग्रह हुआ। ढेर सारा मिट्टी भी जमा हुआ है।अब सरकार की नजर गांव के किनारे नदी द्वारा लाई गई बालू के ढेर पर है।बालू उठाव के लिए जिस 738 प्लाट (नदी प्लाट)का सर्वे हुआ है, वहां तो मिट्टी और पत्थर निकल आए हैं।ग्रामीणों को डर है एक बार टेंडर होने के बाद तो बालू के लिए गांव के किनारे भी बालू की खुदाई करेंगे।क्योंकि उनको तो बालू निकलने का लक्ष्य रहेगा।
ग्रामीणों के अनुसार गांव के किनारे में जमा बालू तो गांव के अस्तिव को बचाने के लिए ही है।इन्ही बालू की वजह से तो गांव के कुंए में पानी रहता है। गार्डवाल की वजह से किनारे में जमा बालू के ऊपर मिट्टी की परत जमने लगी है।कटाव रुक गयाहै।इसके ठीक ऊपर BPDP सड़क हैं, लोगों की जमीनें हैं, घर हैं।गांव के जड़ से बालू खनन करेंगे तो क्या गांव का अस्तित्व रह पाएगा?एक बार तो नदी ने लोगों की जमीन, गांव वालों की सड़क, लील चुकी है।ग्रामीण मिट्टी कटाव की त्रासदी दोबारा झेलना नही चाहते है.
ग्रामीण अब गांव के किनारे मिट्टी कटाव रोकने के लिए बांस का पौधा, शीशम के कई पेड़ भी लगाए हैं।अब मिट्टी कटाव रुका है। गांव के किनारे बालू का ढेर जमा हुआ है उसपर मिट्टी की भी आ गई है।अब वहां गांव के बच्चे फुटबॉल , क्रिकेट खेलते हैं।
एक तरफ गांव जहाँ लोग रह रह रहे हैं। दूसरी तरफ श्मशान जहां गुजरे हुए लोगों का घर बनाए जाते हैं, दोनों का अस्तित्व खतरे में हैं।
डीएसआर पर आपत्ति के लिए ग्राम प्रधान बुधु सिंह मुंडा की अध्यक्षता में 20 नवम्बर 2022 को ग्राम सभा की बैठक बुलाई गई। बैठक में प्लाट नम्बर 738 से बालू उठाव पर आपत्ति दर्ज की गई है।
डीएसआर रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन साल से नदी के बालू का राजस्व शून्य रहा।इस डीएसआर के बाद बालू घाट का टेंडर हो सकेगा।
ग्रामीण कहते हैं कोरोना काल के समय जब दुनिया की रफ्तार थम सी गई थी। कांची नदी में बालू का अवैध खनन धड़ल्ले से चल रहा था।रात में मशीनों के शोर से हमारी नीद खुलती थी।रात को भी ग्रामीण प्रशासन को खबर करते थे, पर उनकी नींद नही खुलती थी। यहीं श्मशान के पास मशीन से अवैध बालू खनन होता रहा। नतीजा गांव का श्मशान का अस्तित्व खतरे में आ गया।
ऐसा नही है कि ग्रामीण श्मशान को बचाने का प्रयास नही किया। ग्रामीण मीटिंग कर प्रसाशन को आवेदन भी दे चुके हैं। पर प्रशासन का रवैया सुस्त ही रहा।
ग्रामीण नरेश महतो के अनुसार, सरकार आपके द्वार में भी श्मशान घाट की समस्या को रखे हैं।
गांव में अमीन का काम करने वाले भीष्मदेव महतो बताते हैं।हमारे गांव का श्मशान घाट नदी को स्पर्श करता है। प्लाट नम्बर 731 में हमारे पूर्वज शव को दफनाते आ रहे हैं।कुल रकबा 43 डिसमिल की जमीन है। अवैध बालू खनन से लगभग उजड़ गया है।
सुवर्णरेखा नदी की सहायक कांची नदी इस जगह पर दो गांव के बीच बहती है। एक तरफ एडकेया तो दूसरी तरफ सुमानडीह।दोनों गांव के बीच करोड़ो रूपये के लागत से बना पुल है।इसी पुल से तमाड़ प्रखंड के लोग भी जुड़ते हैं। नदी के उस पर रहने वाले सुमानडीह गांव के लोगों की भी अपनी व्यथा है।
गांव वाले को डर है सुमानडीह और एडकेया के बीच बालू उठाव से पुल को भी नुकसान हो सकता है। हालांकि पुल के नीचे 500 मीटर बालू उठाव नियमतः वर्जित है।पर पैसे के खेल से सब सम्भव है। कांची नदी में ही दो पुल अवैध बालू खनन से धँस गए हैं। जिसकी अभी जांच चल रही है।ग्रामीण इस पुल को धँसते हुए नही देखना चाहते हैं।
यहीं पुल के पास सुन्दर सा मैदान है। जिसे ग्रामीण कड़ी मेहनत से बनाए हैं। इस मैदान का विस्तार श्मशान घाट तक है।ग्रामीण अपने बैलगाड़ी से मिट्टी लाकर मैदान के निर्माण में श्रमदान किया है। 1992 में निर्मित इस मैदान का नाम गंगा मैदान रखा गया। हर साल फरवरी के दूसरे रविवार में फुटबाल प्रतियोगिता होता है। ग्रामीणों की चिंता है कि एडकेया और सुमानडीह के बीच बालू उठाव से मैदान का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। अथक मेहनत से बने इस मैदान को ग्रामीण खोना नही चाहते हैं।
सर्वे टीम को विरोध का सामना करना पड़ा:- एक तरफ राँची जिला की वेबसाइट में डीएसआर पर 09 नवम्बर से 10 दिसम्बर 2022 तक आपत्ति मांगी गई, वहीं 6 दिसम्बर को डीएसआर की टीम सर्वे करने के लिए आई।बालू घाट जिला सर्वे टीम को भी ग्रामीणों का आक्रोश का सामना करना पड़ा। डीएसआर के लिए आई सिग्मा कंसल्टेंट को ग्रामीण सर्वे करने से रोक दिया। खुद को सिग्मा कन्सल्टेंट में जियोलॉजिस्ट बताने वाले राकेश झा बताते हैं कि ग्रामीण तो विरोध कर रहे हैं हम खुद देख रहे हैं। बालू घाट के दोनों तरफ गांव का कटान हो रहा है, बच्चो का फुटबाल मैदान है और पास में ही दोनों तरफ श्मशान है।ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए सर्वे को रोक दिया गया है।
सुमानडीह गांव के प्रधान दलगोविंद सिंह मुंडा कहते हैं मैदान का निर्माण तो गांव वाले किए हैं। अब पुननिर्माण मनरेगा के माध्यम से किया जा रहा है। पँचपरगना क्षेत्र का प्रसिद्ध गंगा मैदान के पास से अगर बालू उठाव होगा तो हमलोग इसका विरोध करेंगे। सुमानडीह गांव के लोगों का भी श्मशान घाट अवैध बालू खनन से उजड़ रहा है।
ग्रामीणों के दर्द के साथ, दो गांवो के बीच बहती कांची नदी के अपने दर्द भी हैं। जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।नदी पर इतनी बेरहमी से खुदाई किया गया। नदी का अस्तित्व खतरे में आ गया है। फैल कर बहने वाली नदी नाले में बदल गयी है। साफ, स्वच्छ और निर्मल जल लेकर बहने वाली कांची नदी आज मटमैली होने लगी है। बहते हुए पानी को साफ करने वाला बालू गायब हो रहा है। नदी के तल पर मिट्टी निकल आई है। नदी का इको सिस्टम बदल गया है।कई मछलियां आज विलुप्त हो गई हैं।गेंता मछली नही मिल रही हैं।क्योंकि पानी के अंदर बालू में रहने वाले गेंता मछली का आवास उजड़ गया। मछलियों के लिए बनी ईको -सिस्टम बर्बाद हो गया है। नदी के बीच मे मिट्टी और बड़े बड़े पत्थर निकल आए हैं।अब अवशेष में बची बालू को निकालने की साज़िश की जा रही हैं।ऐसे में क्या नदी नदी रह पाएगी!यह तो नाले में तब्दील हो जाएगी।अपने अस्तित्व को खोने का दर्द कांची नदी को भी है।
एक तरफ श्मशान दूसरी तरफ गांव, अपने गांव के अस्तित्व को लेकर संघर्ष करते लोग। उनकी माथे में चिंता की लकीरें। आंखों से निकले आंसू नदी के पानी मे बह रहे हैं।
क्या सिस्टम ग्रामीणों की व्यथा को समझ पाएगा।अवैध खनन से जख्मी कांची नदी की पीड़ा को कोई महसूस कर पाएगा?क्या इनकी आंसुओं को कोई पोंछ पाएगा, यह वक्त आने पर पता चलेगा
फिलहाल,बालू उठाव के लिए अब सरकार बालू घाट जिला सर्वे रिपोर्ट तैयार की है। इस पर जिला के खनन पदाधिकारी ने ईमेल का माध्यम से आपत्ति भी मांगा है।
आपत्ति को लेकर ग्रामीण ने आवेदन भी तैयार किया है।आपत्ति को डीएमओ को ईमेल भी कर चुके हैं। जिनकी प्रतिलपि अंचल अधिकारी,अनुमंडल पदाधिकारी,अपर निदेशक खान, राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SIEAA) राँची,उपायुक्त राँची, प्र निदेशक जीएसएमडीसी लि राँची को भी सौंपे है