जीवन कभी-कभी तो मानव को चमत्कार दिखलाती है। उसने जिस चीज की कामना नहीं की होती, वह उसको प्राप्त होने लगता है, तो कभी-कभी उसके हाथों से रेत की तरह फिसलता हुआ सा प्रतीत होता है। उसे लगने लगता है कि” जैसे उसकी दुनिया लूटने लगी हो। वह हैरान- परेशान होने लगता है इन परिस्थिति से। फिर तो वह लाख कोशिशें करता है कि” सब कुछ समेट ले, परन्तु……उससे कुछ भी नहीं हो पाता।
परन्तु….बहुत कम ही मानव होते है, जो इस विषम परिस्थिति में भी अपने धैर्य को कायम रख पाते है। शायद प्रतिशत में कहा जाए, तो दो से चार प्रतिशत। बस यही संख्या है ऐसे मानवों की जो उन्नति एवं अवनति में समान भाव से स्थिर रहते है। बाकी तो विकल हो जाते है, उन्नति का स्पर्श होने पर मदांध हो जाते है और अवनति का एहसास होते ही बिलख पड़ते है। वे सड़े हुए लकड़ी की तरह टूट-टूट कर बिखरने लगते है। उन्हें लगता है कि” समय के द्वारा उनपर अन्याय किया जा रहा है। परन्तु वे यह नहीं समझ पाते कि” समय तो अपनी गति से चल रहा है, यह तो उनके कर्मों का फल है।
खैर” विषम परिस्थिति में स्थिर और अनुकूल परिस्थिति में शांत रहना इतना आसान नहीं होता। इसके लिए चेतना का जीवंत होना जरूरी है। मानव मन तो स्वभाव से ही गतिमान है। इसकी गति इतनी तीव्र है कि” अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया जाए, तो स्वतः ही अधोगति को निमंत्रण दे देता है। बस” इस बहके हुए मन को केवल चेतना ही नियंत्रण कर सकता है। अब कहेंगे कि” चेतना है क्या?….तो आप बस इतना ही समझ लीजिए कि’ जिसे हम आत्मा कहते है, बुद्धि कहते है, विवेक कहते है, बस वही चेतना है।
परन्तु…..मानव अहंकार के वशीभूत होकर हमेशा इस से अनभिज्ञ रहता है, अथवा इस से अनभिज्ञ रहने का दिखावा करता है। उसे बस सुनना ही नहीं होता अपने आत्मा की बात। वह तो बस निरा अहंकार का चादर ताने मग्न रहता है और फिर उन्नति पर फूलकर कुप्पा हो जाता है और अवनति पर दहाड़ें मार कर रोने लगता है। उसे तो बस यही लगता रहता है कि” वह जो कह रहा है, वही सत्य है। बाकी तो सब बातें व्यर्थ है, क्योंकि’ वह समझना ही नहीं चाहता।
अब आते है इस बात पर कि” चेतना जागृत हो तो किस तरह से?….क्योंकि’ यह प्रश्न अति गुढ है। परन्तु….इसका उत्तर जरूर है और वह यह है कि” हम चेतना को जागृत कर सकते है, वह साधन है एकाग्रता। हां, यह वह समर्थ साधन है, जिसके द्वारा हम अपने चेतना को जागृत कर सकते है। विषम और अनुकूल, दोनों ही परिस्थिति में स्थिर रह सकते है। यह वह साधन है, जो हमारे विकृत मनोभावों को नियंत्रित करता है।
क्रमशः-