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“ चुप मत रहना मेरी कविता ”

“ चुप मत रहना मेरी कविता ”

डॉ लक्ष्मण झा परिमल

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ब्द मेरे

शिथिल थे

विचार मेरे

स्तब्ध थे

भावना

लिन हुई

सुर मेरे

हिले थे

विता

सुसुप्त थी

कलम भी

शां थी

मानो

ड़ताल था

कुछ ऐसी

ही बात थी

मैं हीं

रह सकता

से नहीं

छोड़ सकता

आराम है

हराम मेरा

लिखना नहीं

छोड़ सकता

शब्द को

जगाना है

विचारों को

लाना है

भावना

सुर को अपने

हृदय में

साना है

कविता सबको

जगाएगी

प्रभातफेरी

कराएगी

सबको अपने

कर्तव्यों का

त्क्ष

ध्यान दिलाएगी

कविता जब

मूक होगी

सत्ता में फिर

चूक होगी

लोग फिर

शांत होंगे

जनता में

फिर भूख होगी

शासक सब

भूल जाएंगे

हम सब फिर

टूट जाएंगे

लेखनी से ही

सब तंत्र को

अपनी बातें

सबको समझाएंगे !!

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डॉ लक्ष्मण झा ‘परिमल “

साउंड हेल्थ क्लिनिक

एस ० पी ० कॉलेज रोड

दुमका

झारखं

भा

09.12.2022

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