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अंत

नादानी में

मदद जो करी वो एक भूल हो,

जैसे की गई बारिश

रेगिस्तान के लिए कोई धूल हो ।

तप तप कर 

बदन सारा मैंने जरा दिया ,

और छांव में मेरी

 घर अपना उसने बना लिया ।

दुनिया देखें

ताली पीटे कि क्या खुब घर बनाया,

कौन देखे

मेरी जलती पीठ पर अंगारों का साया।

कहानियां मेरी

मिलाकर लिख दूं तो कोई ग्रंथ हो।

अंत हो ऐसा

कि अब अनंत ही‌ मेरा पूर्ण अंत हो।।

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