भारत में यह माना जाता है कि लड़की देवी की छाया होती है लेकिन उन्हें देवी की तरह नहीं माना जाता है, क्या यह विरोधाभासी नहीं है?
यदि आप एक लड़की हैं तो आप क्या पहनती हैं और आप कैसे चलती हैं और बोलती हैं, उसके आधार पर आपको आंका जाएगा। यदि आप जोर से हंसती हैं, आपके पुरुष मित्र हैं, और पश्चिमी पोशाक पहनते हैं, तो आप “संस्कारी” नहींं हैं। अगर कोई लड़की अपनी मां के पेट में सुरक्षित नहीं है तो कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है।
लड़कीयां देवी का रूप?
ज़्यादातर लड़कियों को तो जीने का मौका ही नहीं मिलता, उन्हें उनके जन्म से पहले ही मार दिया जाता है और उनका क्या कसूर, कुछ नहीं। एक लड़की के लिए बहुत से बेकार मापदंड बनाये जाते हैं जैसे अगर वो सूट पहने, सड़क पर चलती है तो वो सड़क के सिवा कहीं नहीं देखती, अगर वो समाज के सभी भयानक नियमों का पालन करती है तभी वो एक आदर्श लड़की है। भारत अपने लोकतंत्र के लिए जाना जाता है लेकिन जितनी गंभीरता से लड़कियों को सभी अधिकार प्राप्त हैं, क्या वे स्वतंत्र हैं?
बहू चाहिए पर बेटी नहीं
बहू, पत्नी तो सभी चाहते हैं लेकिन बेटी किसी को नहीं चाहिए। यदि कोई लड़की “सीता माँ” जैसी हो सकती है, तो वह “माँ काली” का अवतार भी ले सकती है। मेरे लिए एक आदर्श महिला वह है जो अपने परिवार को गौरवान्वित करती है, उसकी आवाज़ उठाती है और अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीती है।
अगर आप अपनी बेटी या बहन के लिए बेहतर जिंदगी चाहते हैं तो अपनी सोच बदलिए कि आप दूसरी लड़की के साथ क्या करते हैं , जो आपके अपने परिवार के साथ भी हो सकता है।