नोट – इस लेख को लिखने के पीछे मेरा कोई फ़ायदा नहीं छुपा है। इस लेख में शामिल सभी पीड़ितों से मुझे सहानुभूति है और आरोपियों से नफ़रत है। ये केवल मेरे व्यक्तिगत विचार हैं, इन्हें अन्यथा ना लें।
आज श्रद्धा मर्डर केस के आरोपी आफ़ताब को जब पुलिस वैन में ले जाया जा रहा था, तब जनता ने उस पर अपना ग़ुस्सा दिखाया। पुलिस की गाड़ी पर हमला हुआ और हिंदू सेना के कुछ लोग तलवारें लेकर आफ़ताब के पीछे पड़ गए। इतने दर्दनाक और रूह कपाने वाले हत्याकांड के आरोपी के साथ यही सलूक होना चाहिए पर सवाल ये है कि आख़िर जनता में इतना आक्रोश क्यों है?
क्या लव जिहाद का मामला?
क्या गुस्सा सिर्फ़ इसलिए की ये एक लव जिहाद का मामला है? अगर नहीं तो आफ़ताब जैसे अनेकों आरोपियों को जनता क्यों भूल जाती है और माफ़ कर देती है?
श्रद्धा के साथ जो हुआ, वो एक बेहद ही अमानवीय, दर्दनाक और मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना थी, परंतु उन हज़ारों लोगों का क्या जिनकी मौत भी कुछ इसी तरीक़े से हुई थी? जिनके परिवार जनों ने उन्हें टुकड़ों में काटकर फेंक दिया था? क्या ये मामले सिर्फ़ आंकड़े बनकर रह जाएंगे ? और क्या इन्हें न्याय नहीं मिलेगा?
किसी घटना पर लोगों की सहानुभूति सिर्फ़ तब ही क्यों होती है, जब उसमें जाति या धर्म का एंगल होता है? किसी सवर्ण के हाथों दलित की हत्या हो जाए, तो बहुत बड़ी ख़बर है परंतु यदि किसी दलित ने कोई ज़ुर्म कर दिया तो न्यायपालिका और देश की जागृत जनता क्यों अपनी आंखें मूंद लेती है ?
पत्नी ने पति की हत्या का मामला?
आज दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाक़े में पूनम नामक एक औरत और उसका बेटा दीपक हिरासत में लिए गये हैं। पूनम पर आरोप है कि उसने अपने पति अंजन दास की हत्या की, उसके शव के टुकड़े किए और आसपास के इलाक़ों में उन टुकड़ों को फेंका। इस दर्दनाक हत्या को लेकर मीडिया में कोई ख़ास बातचीत नहीं होगी।
लगता है इस मामले को अख़बार के पहले पन्ने पर या टीवी चैनल के प्राइम टाइम शो में जगह नहीं मिलेगी। जनता भी इस घटना को सुनकर हतप्रभ नहीं होगी क्योंकि मामूली केस है ना? मसाला नहीं है, कोई लव एंगल या जाति-धर्म का विवाद नहीं है बस इसलिए सब शांत हैं
मुझे दुख इस बात का है कि ऐसी कई घटनाओं को लोग कितनी आसानी से भुला देते हैं। संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में हर घंटे पांच से ज़्यादा औरतें अपने परिवार वालों या करीबी पार्टनर के द्वारा मारी जा रही हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हत्या, अपहरण, बलात्कार और अन्य अपराधों की सूची बहुत लंबी है, जो दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। पर खेद इस बात का है कि लोगों को इसमें कोई रुचि नहीं!