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“फेसबुक के चकाचौंध में सिसकता सम्बन्ध”

poetry

यह अद्भूत खिलौना

हमें

मिल गया है

हम संपूर्ण जगत से जुड़ गए हैं

जो हमारे क्षितिज के

छोर में गुम हो गए थे

उनको भी हम साथ ले लिए

हम जन्म दिन की

शुभकामना लोगों को भेज रहे हैं

आपकी लेखनी और

कार्यशैली को लाइक और कमेंट कर रहे हैं

हर क्षण यह जिज्ञासा होती

रहती है

कौन -कौन सब दिन हमारी प्रशंसा

करते हैं

परन्तु जब अपने लोग

सामने आ जाते हैं

सत्कार की बात तो दूर

पहचानते भी नहीं हैं

समझते हैं फेसबुक के पन्नों तक

हम ठीक हैं

अपनों को तो झेल पाना मुश्किल है

हम दूर हैं तो बड़े अच्छे हैं

कहिए इस युग में ‘वसुधेव कुटुम्बकम’

मंत्र कहाँ विसर्जित हो गया

सम्बन्ध अपनी पगडंडियों से

वस्तुतः कहीं पीछे रह गया !!

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