यह अद्भूत खिलौना
हमें
मिल गया है
हम संपूर्ण जगत से जुड़ गए हैं
जो हमारे क्षितिज के
छोर में गुम हो गए थे
उनको भी हम साथ ले लिए
हम जन्म दिन की
शुभकामना लोगों को भेज रहे हैं
आपकी लेखनी और
कार्यशैली को लाइक और कमेंट कर रहे हैं
हर क्षण यह जिज्ञासा होती
रहती है
कौन -कौन सब दिन हमारी प्रशंसा
करते हैं
परन्तु जब अपने लोग
सामने आ जाते हैं
सत्कार की बात तो दूर
पहचानते भी नहीं हैं
समझते हैं फेसबुक के पन्नों तक
हम ठीक हैं
अपनों को तो झेल पाना मुश्किल है
हम दूर हैं तो बड़े अच्छे हैं
कहिए इस युग में ‘वसुधेव कुटुम्बकम’
मंत्र कहाँ विसर्जित हो गया
सम्बन्ध अपनी पगडंडियों से
वस्तुतः कहीं पीछे रह गया !!
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