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“मैं हर रोज़ तुम्हारे करीब होती जा रही हूं”

कविता

पता नहीं सब लोग बदल रहे हैं

या मैं तुम्हारे जैसी होती जा रही हूं?

पता नहीं मैं किसी की तरह होना नहीं चाहती

या मैं तुम्हारे रंग में रंगती जा रही हूं?

वजाह का मुझे नहीं पता

बस मैं  हर रोज़ तुम्हारे करीब होती जा रही हूं।

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