सदी की महामारी देख रहे हैं
सदी का विश्व युद्ध देख रहे हैं
आर्थिक आधार लड़खड़ाता देख रहे हैं
देशों में लगी इमरजेंसी देख रहे हैं
स्कूल, कॉलेज, महंगाई की मार देख रहे हैं
सदी की बड़ी से बड़ी ठगी भी देख रहे हैं
मन लड़ रहे हैं यहां धर्म लड़ रहे हैं
त्योहारों में मनमुटाव देख रहे हैं
परिवारों को लड़ते गहन देख रहे हैं
रुपए को सबसे नीचे देख रहे हैं और
गरीब को गरीब, अमीर को अमीर बनता देख रहे हैं
नौकरियों में गड़बड़ी देख रहे हैं
किसान को रोता देख रहे हैं
आ रहे हैं ऐसे हालात, के मंदी में
कि भरपूर बेरोजगारी देख रहे हैं
राजनीती में होती अनीति को देख रह हैं
फिर भी अपने को चुप खड़ा देख रहे है
गाड़ियों के शीशे चमकते देख रहे हैं
चोराहों पर बिकती बच्चों की मुस्कान देख रहे हैं
शहरों की चढ़ती इमारते देख रहे हैं
फिर भी आसमान दूर देख रहे हैं
हो रहा है प्रकर्ति का दोहन बेसुमार
देखो तो कागजों में विकास ही विकास देख रहे हैं
परिंदे भी घोसलों को देख रहे हैं
शाम हो चली है प्राची, साकी मधुशाला देख रहे हैं
हो रहा है चारों और इतना बदलाव, की
हर होते हुए बदलाव के आइने में
हम बस अपने को ही देख रहे है,
हम बस अपने को ही देख रहे हैं !!!