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समाजवाद, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के लिए याद किए जाएंगे धरतीपुत्र ‘मुलायम’

मुलायम सिंह यादव

समाजवाद,सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के लिए याद किए जाते रहेगें ‘नेता जी’

 आज धरतीपुत्र के नाम से सुप्रसिद्ध , समाजवादी पार्टी के संस्थापक, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के साहसी रक्षामंत्री रहे श्री मुलायम सिंह यादव जी की जयंती है। इस अवसर पर उन्हें जिस भी रूप में याद किया जाए, उन पर जितनी भी कहानियां कहीं जाए कम ही हैं लेकिन जब भी समाजवाद, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की बात होगी श्री मुलायम सिंह जी याद किए जाते रहेगें।

इस लेख में मुलायम सिंह जी को समाजवाद, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के प्रश्नों पर लगातार टकराने वाले महानायक के रूप में याद किए जाने का प्रयास किया गया है।

मुलायम और सैफई गाँव

22 नवंबर 1939 को इटावा जनपद के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव जी की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। मुलायम सिंह कुछ समय तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज में अध्यापक भी रहे। पांच भाई-बहनों में दूसरा नंबर मुलायम सिंह का था।

मुलायम सिंह 1967 से लेकर 1996 तक 8 बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के लिए चुने गए। एक बार 1982 से 87 तक विधान परिषद के सदस्य भी रहे। 1996 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। इसके बाद से अब तक 7 बार लोकसभा में पहुंचे, निधन के वक्त भी वह लोकसभा सदस्य थे। 1977 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने थे। तब उन्हें को-ऑपरेटिव और पशुपालन विभाग दिया गया।

1989 और यूपी मुखमंत्री की बागडोर

1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला। 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे। पहली बार 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बने। 1993-95 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। 2003 में तीसरी बार सीएम बने और चार साल तक गद्दी पर रहे। 1996 में जब देवगौड़ा सरकार बनी, तब मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने।

जानकारों का मानना है की उस समय वें प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार भी थे । राजनीति के दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में राममनोहर लोहिया और चरण सिंह से सीखे। लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए। लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया था और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे, उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे।

उनकी पहली पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल, जिसमें वह 1968 में शामिल हुए। चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया। ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी और चौथी पार्टी 1992 में समाजवादी पार्टी के रूप में सामने आई जो अभी हाल के दिनों में लगभग तीन करोड़ मत प्राप्त कर देश की तीसरी सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी है।

नेता जी ने समाजवाद और सामाजिक न्याय की जीवन भर पैरवी करते रहे और जब भी उन्हें मौका मिला, उन्होंने जनहित के फैसले लिए। समाजवादी नेता डॉ लोहिया के “दवा पढ़ाई मुफ्ती हो, रोटी कपड़ा सस्ती हो” से लेकर “पिछड़ा पावें सौ में साठ” तक के नारों के इर्द गिर्द राजनीति करते रहे।

अपने शासन काल के दौरान तमाम सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम लागू किए, जिनका विवरण देना यहां संभव नहीं है, उनके समाजवादी आंदोलन का यह प्रभाव रहा कि पिछड़े एक टिकट के लिए इधर उधर भटकने की जगह पिछड़ों की दबदबा वाली सरकार स्थापित करने लगे। रही बात धर्म निरपेक्षता की तो धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर मुलायम सिंह जैसा कोई दूसरा उदाहरण मिल ही नहीं सकता।

90 के दशक में जब देश के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक समूह की धार्मिक स्थल को तोड़ने के मकसद से उकसाई गई भीड़ को अपने करिश्माई व्यक्तित्व से नियंत्रित कर देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय का भरोसा जीतने का काम किया और यह विश्वास दिलाया कि यह देश सबका है। यहां किसी की दादागिरी नहीं चलने दी जायेगी, यह देश बाबा साहेब के संविधान से ही चलेगा, जिसके लिए उन्हें न जाने किस किस नाम से बुलाया गया, लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की।

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