महात्मा गांधी के सपनों के भारत में एक सपना राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करने का भी था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन (10-14 जनवरी,1975) में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए तथा एक अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना की जाय जिसका मुख्यालय वर्धा में हो।
विश्व हिंदी सम्मेलन
अगस्त,1976 में मॉरीशस में आयोजित द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन में यह तय किया गया कि मॉरीशस में एक विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की जाए जो सारे विश्व में हिंदी की गतिविधियों का समन्वय कर सके।
चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन (दिसम्बर-1993) के बाद विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना मॉरीशस में हुई और भारत में एक अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना को मूर्त रूप देने की आवश्यकता समझी गयी। यह संभव हुआ वर्ष 1997 में- जब भारत की संसद द्वारा एक अधिनियम पारित करके महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना राष्ट्रपिता की कर्मभूमि वर्धा में की गयी।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना से भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र की एक लालसा भी पूरी हुई जो उनके मन-मस्तिष्क में छायी रही थी। वह लालसा थी ‘अपने उद्योग से एक शुद्ध हिंदी की यूनिवर्सिटी स्थापित करना’।
20 वीं सदी और स्त्री अध्ययन
संसद द्वारा वर्ष 1997 में पारित अधिनियम (क्रमांक-3) शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से हिंदी भाषा और साहित्य के संवर्द्धन एवं विकास हेतु एक ऐसे आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना प्रस्तावित करता है जो हिंदी भाषा में श्रेष्ठतर क्रियात्मक कार्यदक्षता विकसित करने में समर्थ हो, ताकि इसे एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सके।
बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में इस विश्वविद्यालय ने कार्य करना आरंभ किया। महात्मा गांधी के दार्शनिक आलोक में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने हिंदी भाषा और साहित्य के साथ-साथ गांधी जी के प्रिय सिद्धांतों पर आधारित विषयों- ‘अहिंसा एवं शांति अध्ययन’ तथा ‘स्त्री अध्ययन’- को अपने पाठ्यक्रम का प्रमुख हिस्सा बनाया है।
यहां हिंदी को तकनीकी जानकारी और विविध व्यवसायों की संवाहक भाषा के रूप में विकसित करने पर भी बल दिया जा रहा है, इससे संदर्भित नये-नये पाठ्यक्रम प्रवर्तित किए जा रहे हैं। इस विश्वविद्यालय की मंशा है कि हिंदी माध्यम से ज्ञान के विभिन्न अनुशासन एवं परिक्षेत्र न केवल भारत में अपितु विश्व जनमानस में अपनी गहरी पैठ बनायें और हिंदी विश्व-हृदय का हार बने। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास इसका साक्षी है कि भारत संघ की राष्ट्रभाषा हिंदी आपसी सहयोग, साहचर्य एवं प्यार की भाषा है।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
इसे विश्वसमुदाय में स्थापित करना इन मूल्यों के संवर्द्धन हेतु अत्यंत लाभप्रद होगा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय अपने स्वरूप में एक अनूठा विश्वविद्यालय है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से कार्यरत यह दुनिया में अकेला विश्वविद्यालय है जहाँ फ्रेंच, चीनी, स्पेनिश और जापानी जैसी विदेशी भाषाएं हिंदी माध्यम से पढ़ाई जाती हैं। ‘ग्लोबल हिंदी’ की राह पर यह एक बड़ा मील का पत्थर है।
हिंदी को विश्वभाषा बनाने के मकसद से इस विश्वविद्यालय ने दो महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विदेशों में विश्वविद्यालयों व संस्थाओं में हिंदी व हिंदी माध्यम से विभिन्न अनुशासनों के अध्ययन व अनुसंधान के लिए यह विश्वविद्यालय समन्वयक की भूमिका निभाने जा रहा है तो विश्वभर के हिंदी पाठकों को भारतेंदु से लेकर अब तक के कॉपीराइट मुक्त महत्वपूर्ण हिंदी साहित्य को सुलभ कराने का बीड़ा इसने उठाया है।
हिंदीसमयडॉटकॉम और अंतरराष्ट्रीय मंच
विश्वविद्यालय की वेबसाईट हिंदीसमयडॉटकॉम पर उत्कृष्ट हिंदी साहित्य के एक लाख पृष्ठ उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दूसरे चरण में यह साहित्य विश्व की प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा। ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों में हिंदी में स्तरीय सामग्री उपलब्ध हो सके इसका प्रयास भी विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है। स्त्री अध्ययन, मानविकी तथा फिल्म और नाटक के क्षेत्रों में दुनिया भर की भाषाओं में फैली हुई महत्वपूर्ण पाठय-सामग्री का अनुवाद विश्वविद्यालय कर रहा है और शीघ्र ही यह पाठय-सामग्री विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ ही अन्य अध्येताओं को भी उपलब्ध हो सकेगी।
इस विश्वविद्यालय को उच्च शिक्षा के एक अंतरराष्ट्रीय मंच के रूप में विकसित किया जा रहा है। हिंदी भाषा में भारतीय मूल्यों व परंपराओं के संवर्द्धन के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने तथा इसे इसी रूप में दुनिया के सामने स्थापित करने का अभियान विश्वविद्यालय द्वारा चलाया जा रहा है। विश्वविद्यालय की कार्य-संस्कृति, प्रशासन व कार्य-व्यवहार में गांधी जी के विचार मार्गदर्शन का कार्य करते हैं। हिंदी को विश्वमंच पर प्रतिष्ठित किए जाने हेतु यह आवश्यक है कि हिंदी का विश्व की अन्य भाषाओं के साथ बेहतर संबंध हो। इनके बीच एक सक्रिय, बहुआयामी एवं व्यापक आदान-प्रदान हो। विविध भाषाओं के छात्र, शोधार्थी, अनुसंधानकर्ता, अध्यापक एक-दूसरे के बीच जाकर अध्ययन-अध्यापन व अनुसंधान करें। इससे विश्व की अन्य भाषाओं से हिंदी का संपर्क समृद्ध होगा व ज्ञान के नये क्षितिज उदित होंगे। ज्ञान-विज्ञान की एक संवाहक भाषा के रूप में हिंदी इस आदान-प्रदान का केंद्र-बिंदु बने, विश्वविद्यालय इस महत्वाकांक्षी योजना की सफलता हेतु कटिबद्ध है। विश्वविद्यालय में आठ अलग-अलग संकाय हैं –
1. भाषा विद्यापीठ
2. साहित्य विद्यापीठ
3. संस्कृति विद्यापीठ
4. अनुवाद तथा निर्वचन विद्यापीठ
5. मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ
6. विधि विद्यापीठ
7. प्रबंध विद्यापीठ
8. शिक्षा विद्यापीठ
इसके साथ ही विश्वविद्यालय का दूरशिक्षा कार्यक्रम शिक्षा को शिक्षार्थियों के द्वार तक पहुँचाने के एक अलग प्रकल्प के रूप में क्रियाशील है।
स्थापना का उद्देश्य
- क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का सम्यक विकास।
- हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने का सुसंगत प्रयास।
- महात्मा गांधी के मानवतावादी मूल्यों; यथा – शांति, अहिंसा, सत्य, धर्मनिरपेक्षता, आदि का उन्नयन, स्थापन एवम् प्रसार।
- हिंदी को जनसंचार, व्यापार, प्रबंधन, विज्ञान एवम् तकनीकी शिक्षा, तथा प्रशासनिक कामकाज की भाषा के रूप में दक्ष बनाना ताकि इसे रोजगार से जोड़ा जा सके।
- हिंदी के माध्यम से अंतर-अनुशासनिक ज्ञान-प्रणाली को बढ़ावा देना।
- एक अंतरराष्ट्रीय शोध केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय का विकास।
- अंतरराष्ट्रीय विमर्श के एक केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय का विकास।
- दृष्टि:
- राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय भाषाओं के मध्य व्यापक एवम् बहुल संपर्क व समन्वय पर जोर।
- भारतीय एवम् वैश्विक भाषाओं के अन्त:सम्पर्क से समन्वय की संस्कृति का पल्लवन एवं विकास।
- हिंदी को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों एवं संदेशों की संवाहक भाषा के रूप में प्रतिष्ठा।
- ज्ञान, शांति एवं मैत्री की परिकल्पना को मूर्त रूप देने का गंभीर प्रयास।
साभार:महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा(महाराष्ट्र) की आधिकारिक वेबसाइट से।