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“एक यादगार जन्मदिन जहां मैंने जाना प्यार और अपनापन क्या होता है”

लिटिल स्टार होम और मेरा जन्मदिन

सालों से जन्मदिन जैसे मानों मनाने का उत्साह ही नहीं रहता था। कभी दिल्ली में कुछ करीबी दोस्त होते थे, तो नहीं तो कुछ खास नहीं। इस बार मैं बहुत उत्साहित थी कि क्यूंकि हम लिटिल स्टार चिल्ड्रेन होम जो जाने वाले थे। इसके लिए मित्र विभा जो काफी वक्त से इच्छुक थीं उनका बेहद आभार रहेगा। मेरे जन्मदिन को इतना मार्मिक और खूबसूरत बनाने के लिए! हम किसी एडवेंचर की मानिंद यहां के रास्ते में खो भी गए पर विभा और हमने सोचा ये भी सहीअनियोजित सफर मज़ेदार होते हैं। 

लिटिल स्टार होम और मेरा जन्मदिन

कटनी ( मध्यप्रदेश) से दस किलोमीटर दूर हिरवारा ग्राम में स्थित लिटिल स्टार होम डॉक्टर समीर चौधरी जी का प्यार ,करुणा और सेवा से लबरेज़ आशियाना है । यहां मनुष्य की रोंगटे खड़े कर देने वाले क्रूर स्वरूप की कहानियां , समाज का बच्चियों के लिए नितांत अमानवीय , पाशविक और दिल को छलनी करने वाला रूप हमें जानने को मिला । हम दोनों की आंखें भर आईं । आखिर कोई मासूम बच्चियों के लिए इतना निर्मम कैसे हो सकता है?

इसकी चर्चा मैं थोड़ी देर में करती हूं । पहले मैं बांटना चाहती हूं वो जज्बात जिन्हे मैंने बच्चियों से मिलने के बाद महसूस लिए। जैसे ही सर ने बच्चों से हमारा परिचय करवाया और कहा कि मैडम का बर्थडे शानदार मनाना है, इन बच्चियों ने तुरंत चमकती आंखों से हमारे इर्द गिर्द इकट्ठे होकर मुझे हैप्पी बर्थडे बोलना शुरू कर दिया पर कुछ बच्चियों ने जब चहकते हुए कहा कि मैं कितनी सुंदर और प्यारी लग रही हूं, तो मैं अवाक रह गई और मेरी आंखें नम हो गईं क्यूंकि इतनी निश्छलता से तारीफ सिर्फ बच्चे करते हैं।

कोई बिजनेस टैक्टिक्स नहीं। कोई चापलूसी नहीं। सिर्फ जो महसूस करते हैं वो बोलते हैं। ईमानदार होते हैं बच्चे । सर ने बाद में वही कहा कि अगर बच्चे फ्रीक्वेंसी को महसूस नहीं करते तो इतना प्यार नहीं जताते ! 

फिर हम उस हॉल में पहुंचे जहां पहले से थिरकन, जोश, बर्थडे सॉन्ग्स और बच्चियों की चहकती ध्वनि का गुंजन था। कुछ वैसा जैसा शायद कम से कम बीस साल हो गए होंगे अपने बचपन के जन्मदिन पर अनुभव किए हुए । उसके बाद एक बच्ची ने मेरा तिलक कर आरती की । और मैं फिर से भावुक हो गई । घर जैसी और अपनेपन की यह अनुभूति हम दोनों से संभले नहीं संभल रही थी । 

इसके बाद केक काटना  और खाना पीना हुआ । एक मज़ेदार बात बताती हूं । मैं बड़ी ही सीमाओं के साथ जन्मदिन मनाती थी ,जब कभी मनाती थी । मसलन मुझे चेहरे पर केक लगाने और बर्थडे bumps जैसी मस्ती की परंपराओं से ऐतराज़ था । और नाचना मुझे आता नहीं तो मैं हमेशा डांस करने से कन्नी काट लेती थी । आगे नहीं पता पर बच्चियों ने मुझे उन दीवारों को तोड़ने के लिए प्यार भरे आग्रह जो लिए । विभा तो गजब मूड में थीं डांस के तो फिर थोड़ा थिरकना हमने भी किया।

इनका प्यार खून के रिश्तों से बड़ा था

बेहद आत्मविश्वास से लबरेज़ सुरभि (नाम परिवर्तित) जिसने मेरे चेहरे पर प्यार के साथ केक मल दिया था बेहद शानदार डांस करने लगी। रात होने और वापस लौटने की विवशता के कारण हम जाने का सोचने लगे। उससे पहले हमने  बच्चियों के साथ एक संक्षिप्त बातचीत की । हर एक बच्चा बहुत ख़ास होता है । हमने जाना कि इनमें घुड़सवारी ,कुश्ती, कराटे, नृत्य आदि के पुरस्कृत बच्चे हैं।

हमने जाना इनमें हमसे तुरंत प्यार के रिश्ते से  जुड़ जाने की अदभुत कला है । एक आखिरी बात जिसने हमारे बीच मानों अधूरी शामों सा कुछ छोड़ दिया । उनका मुझसे यह मनुहार करना कि मैं खाना खाकर जाऊं ने मुझे याद दिलाया कि कितने बार हमारे अपने खून के जुड़े रिश्तेदार हमें पानी या खाने पीने को नहीं पूछते और ये जिन्हे मैं पहली बार मिली हूं, मुझे बेझिझक और पूरे हक से और सन्डे के दिन दिन बिताने का आग्रह करने लगे । दरअसल बच्चे दिन में स्कूल भी जाते हैं । तो हम अधिक समय नहीं बिता सके। 

यहां बहुत सुकून और ज़िंदगी है

डॉक्टर समीर के साथ शुरू में हुई बातचीत के दौरान हमने ये जाना कि जिन बच्चियों के साथ इतना बुरा व्यवहार हुआ, जिन्होंने असीमित पीड़ाओं के बावजूद जिजीविषा से और उनके प्यार और केयर के कारण इस खूबसूरत दुनिया में आगे कदम बढ़ाए। वे  बाद में इतनी होनहार निकलीं।

वे जिनके हुनर, अंदरूनी क्षमताओं को पहचानकर डॉक्टर समीर और उनकी पत्नी (जिनसे मेरी मुलाक़ात बाकी है ) ने इन ज़िंदगियों को इस कदर बदला वह दिव्य है। आध्यात्मिक है। वह करुणा की सीमा है। बहुत कुछ जो शायद मैं यहां लिख या अभिव्यक्त ना कर पाऊं । मुझे लगा अभी मैं जिसे लगता है कि  करुणा  है उसके भीतर , इस कदर करुणा के पर्याय पता नहीं कभी पूरे कर पाएगी या नहीं । 

यहां का कैंपस प्यार का पर्याय है । सारे वक़्त हमारे साथ कुत्ते हों, प्रकृति, मछलियां, सुकून से भरा हुआ किसी आश्रम सा माहौल हो या फिर बच्चे और दीदियां। मनमोहक इस परिसर में किसी शायर की ग़ज़ल सा, किसी चित्रकार की कृति सा ,किसी साधना के प्रभाव से आलोकित आश्रम सा, किसी चिड़िया की चिहुक सा, किसी लंबे सफर के बाद के ठहराव सा , किसी मानसिक अवसाद से मुक्ति के बाद की खिलखिलाती हंसी सा, किसी पहाड़ी सुदूर गाँव की गोद सा, किसी आधुनिक कला संगम सा, किसी कहानी के किस्सों सा मुझे महसूस हुआ। 

इन बच्चियों ने मुझे हील किया है

यहां जिंदगियां जिन्हे रौंदने की कोशिश हुई , ज़िंदगियां जिन्हे गर्भ में नष्ट करने की चेष्ठा हुई, उनकी अप्रतिम अदभुत कहानियां हैं। मुझे अभी फिर आना है। मैंने कुछ नहीं किया । बल्कि उन्होंने  मेरा जन्मदिन कई रंगों से जगमगा दिया। इन्होंने मुझे हील किया। दूरदर्शन पर अाई पी एस अधिकारी कविता चौधरी जी के जीवन पर आधारित 1991 के धारावाहिक उड़ान के अंतिम दृश्य में वे कहती हैं कि ‘जिस दिन ‘मैं ‘ से ‘हम सब’  तक के बारे में हम सोचने लगेंगे ‘ क्या उस दिन आसमान मेरे घर में ना आ बसेगा !’   

इस संस्थान के लोगों ने मुझे मेरे इस उद्देश्य को और सुदृढ़ करने में मदद की कि मैं जब मरूं तो कम से कम कुछ ज़िंदगियां तो बेहतर करने के सुकून के साथ मर सकूं। 

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