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“उसने कहा तुम मुझे मेरी तरह लगती हो इसलिए मैं तुमसे अट्रैक्ट होता हूं”

कविता

आज सुबह उठी तो किसी की बात याद आ गई, उसने कहा तुम मुझे मेरी तरह लगती हो शायद इसलिए मैं तुमसे अट्रैक्ट होता हूं। मुझे भी वो मेरी तरह ही लगता है और शायद इसलिए मुझे वो अच्छा लगता है। बहुत दिनों से ये बात मेरे मन मे थी क्या मैं सच मैं उसकी तरह हूं या वो मेरी तरह है, ऐसी क्या बाते है जो मुझे उसकी तरह या उसे मेरी तरह बनाती है?

क्यों बदल जाते हैं हम?

वैसे तो उम्र मे, मैं उससे बड़ी ही हूं कभी कभी सोचती हू अगर वो मेरी तरह है, तो शायद एक दिन खो न दे खुद को मेरी तरह। खैर मुझे लगता है दूसरों के बारे मे सोचना और उनके लिए खुद को बदल देना ही हमे एक दूसरे जैसा बनाता है, मुझे नहीं पता वो क्या सोचता है पर जितना मैने जाना मुझे तो यही लगता है

“हमें बदलने पर मजबूर किया गया फिर चाहे वो समाज के लिए बदलना हो, पार्टनर के लिए, दोस्तो के लिए या लोगो को खोने का डर से, हमे खुद को उस हद तक बदलना पड़ा के हम खुद भूल गए हम क्या थे?”

मैं ये नही कह रही बदलाव गलत है लेकिन दूसरो के लिए खुद को बदल देना शायद वो सही नही है। मुझे लगता है एक बेहतर इंसान बनना ज़्यादा ज़रूरी है, जो बदलाव को स्वीकार करता है और उसके साथ चलता है खुद को खो नहीं देता। उसका तो मुझे नहीं पता लेकिन मैं खुद को खोने से बहुत डरती हू इसलिए उन लोगो से दूर रहना पसंद करती हूं जो मुझे खुद से ही दूर कर दे।

खुद को खो देता है हर कोई

पता नही वो कब समझेगा? वो जिसे बदलाव समझ रहा है वो उसे खुद से बहुत दूर ले जा रहा है और जो इंसान खुद को खो देता फिर वापस खुद को ढूढने मे बहुत मुस्किल होती है। मैं उसे ये सब बताना चाहती हू लेकिन वो मेरी सुनेगा ही नहीं। वो सबको बहुत हंसाता है लेकिन मैने देखा है उसकी आंखे बहुत सूनी हैं, जैसे किसी सूखे कुएं को पानी की तलाश हो।

मैं भी सबको हंसाती हूं, अच्छा लगता है मुझे दूसरो को खुश करना लेकिन, मैं उस बंजर ज़मीन की तरह हूं, जिसे सालों से बारिश की आस है और यही चंद बातें हमें एक जैसा बनाती हैं, बस डर लगता है कहीं एक दिन बिल्कुल अंधकार में न खड़ा देखूं उसे।

हो सकता है एक दिन ये सब वो पढ़े लेकिन मेरी बातो से सहमत ना हो, पर ये मेरा मानना है और मैं नहीं कहती वो मेरी सारी बाते माने या मेरी सारी बाते उसे लेकर सही हैं, मैं गलत भी हो सकती हूं लेकिन मैं बस चाहती हू वो खुश रहे।

ये मैंने सिर्फ उसके लिए नही लिखा, मैंने उन सब के लिए लिखा है जो किसी के लिए खुद को पूरी तरह बदलने को तैयार हो जाते हैं, सकारात्मक बदलाव की ओर जाए ना की जैसा लोग तुम्हे देखना चाहते है वैसा बन जाए। खुद को तरह बने जैसा तुम खुद को देखना चाहते हो। खुद खुश रहोगे तो दूसरो को भी खुश रख पाओगे।

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