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“क्यों वर्षो तक बिना किसी जुर्म के लोग जेलों में बंद रह जाते हैं?”

भारत की जेलों में दो तरह के बंद लोग हैं – एक तो वे लोग हैं जिन्हें सही या गलत किसी न्यायलय से कुछ वर्षों के क़ैद होने की सज़ा सुनाई गयी है तो यह लोग क़ैद की अवधि पूर्ण होने पर रिहा कर दिए जाएंगे। यह लोग सिद्ध दोष बंदी या कन्विक्ट कहलाते हैं।

बंद हैं क्यों लोग वर्षों से

क्या जेलों में अधिकांश वे लोग हैं, जिनको किसी अदालत से चार्ज शीट ही नहीं मिली या वे लोग हैं, जिनकी सुनवाई की तिथि निर्धारित होती है। ट्रकों में भर कर न्यायलय ले जाए जाते हैं और उन्हें फिर अगली तारीख दे दी जाती है, यह विचाराधीन बंदी या अंडर ट्रायल प्रिज़नर कहे जाते हैं। लाखों ऐसे लोग वर्षों से जेलों में बंद हैं।

पुलिस को शासन कसता रहता है तो पुलिस अनेक लोगों को आवारा घूमने के जुर्म में बंद कर देती है। अनेकों लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं। अनेक लोग किसी पुलिस वाले से भिड़ जाते हैं और पुलिस वाला उनके पास चाकू आदि दिखा कर असलह एक्ट में बंद कर देता है। कोई आतंकवादी घटना होने पर एक विशेष वेश भूषा के लोग बंद कर दिए जाते हैं। अनेक लोगों का कोई अपना ऐसा नहीं होता है जो उसे बचाने छुड़ाने की कोशिश करे। गाँव के रहने वाले स्लम्स के रहने वाले गरीब अनपढ़ मेहनत मज़दूरी करने वाले बंद हो गए तो बस बंद हो गए।

इसकी रोकथाम के लिए कई उपाय किये जा सकते हैं –

जब मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा पेश करने पर जेल भेजने के वारंट पर हस्ताक्षर करता है, तो उसी वक़्त आरोप को देखते हुए उस व्यक्ति के छोड़े जाने की तिथि भी लिख दे जिस पर यदि किसी न्यायालय द्वारा उसको सज़ा नहीं दी गयी है तो जेल अधीक्षक उस बंदी को रिहा कर देगा। यदि न्यायलय से सज़ा दे दी गयी है तो उसके अनुसार वह रिहा किया जाएगा।

विचाराधीन बंदी अगर खतरनाक मुजरिम नहीं है या उससे किसी को कोई खतरा नहीं है तो सप्ताह में एक दिन उसकी रिहाई का दिन होना चाहिए, जिससे वह जेल से बाहर आकर अपने डिफेन्स का प्रयास कर सके और अपने परिवार को देख सके।

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