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“मैंने देर से समझा कि मैं एसेक्शुअल हूं लेकिन बॉयफ्रेंड को बता नहीं सकती”

अनु कहती है कि उसने पाँचवी और छठी कक्षा का अपना अधिकाँश समय इसी फिराक में बिताया कि वो ऐसा क्या करे कि इरफ़ान को उससे प्यार हो जाए। सातवीं कक्षा में जा के उसका प्लान कामयाब हुआ और इसी के साथ वह हम सब में से, रिलेशनशिप में होने वाली लड़की बनी। दो महीने तो उनके बीच, खूब नज़रें मिलाने और नज़रें चुराने का खेल चला। और सिलीन मैडम की क्लास में, उन दोनों को देख देख के हम लड़कियों की जलन भरी हंसी को कौन भूल सकता है?

मैं उसे चाहती थी

और फिर एक दिन पी.टी. वाले नज़ीर सर ने उनको बॉयज कॉरिडोर में साथ घूमते देख लिया और ‘ बात’ करने के लिए अपने पास बुला लिया। अब नज़ीर सर की नज़रों से बचना तो मुश्किल था , लेकिन अनु को यकीन था वो अपना रिलेशनशिप बचा लेगी। लेकिन हमें उसके बॉयफ्रेंड पे इतना यकीन नहीं था। वो काफी थका और ऊबा हुआ दिखने वाला लड़का था।

अब यह नहीं पता इसके पीछे अनु का हाथ था या नहीं। उसके काले काले रहस्यमई किस्म के बाल थे। उन बालों की वजह से भी,काफी लम्बा और दुबला पतला ‘ बैड बॉय’ टाइप्स दिखता था , लेकिन बैड कहीं से नहीं था। लंच की घंटी बजी और अनु अपने काले घने बालों को नीले स्कूल यूनिफार्म के कंधो पे लहराते हुए, उदास शकल बना के वापस लौटी और अगला पीरियड शुरू होने तक हम सबने उसे खूब मनाया कि कोई नहीं, नाइंथ क्लास में पहुंचने तक उसको कोई इरफ़ान से अच्छा मिल जाएगा।

दो साल बाद, हमारा बड़ा सा ग्रुप टूटने लगा और हम में से कईयों ने तीन के छोटे छोटे ग्रुप बना लिए और अनु के रोमांस के किस्से तो मैं भूलने ही लगी , शायद इस लिए भी क्यूंकि मैं खुद किसी को चाहने लगी थी। नवीद मशहूर और पढ़ाई में डूबे रहने वाला लड़का था। उसके घुंगराले बाल थे और डिंपल तो इतने गहरे थे कि मैं जा के उनमे कुंआ ही खोद दूँ। मैं मैथ्स की क्लास में तो उसे बड़ा घूरती थी, पर इंलिश में नहीं। मैं उसको अपनी सबसे सुन्दर हैंड राइटिंग में लिख के यह बताना चाहती थी, कि मैं उसको कितना चाहती थी। अपने फ्रेंड्स को मैं आहे भरते हुए कहती कि उसके चेहरे पे आने वाला ‘पोडि मीशा’ ( मूछ ) कितना सुन्दर है।

लेकिन मैनें डेट पर नहीं जाना चाहा

मैंने कभी उसके साथ अकेला होने , उसके साथ डेट पे जाने या उसे किस करने की कल्पना नहीं की। हालांकि इंग्लिश पिक्चरों और मेरी सहेलियों के हिसाब से मुझे एकदम ऐसा ही सोचना चाहिए। मुझे लगा अभी तो बस शुरुआत ही है, समय के साथ साथ खुद को धक्का मार के हार्मोन्स की झील में गिर ही जाऊँगी जहां लोग पहले से ही तैर रहे हैं। मैं अपने डर को अपने टीनेजर्स वाले अनुभव के आड़े नहीं आने देना चाहती थी।

नवीद के बारे में सोच के मेरे बदन में जो होता था, उसको मैं उत्तेजना का नाम तो नहीं दूंगी। मैंने अपने आप को यह सोच के मना लिया कि वो ख़ास वाली फीलिंग नहीं आ रही, जैसे पेट में तितलियाँ उड़ रहीं हों, क्योंकि वो अभी इल्ली हैं, बड़ी होएंगी तभी तो तितलियां बनेंगी, है न? मैंने उसको एक चिट्ठी लिखी। कोरे कागज़ पे वो सब इमेजिन कर के लिखा जो मुझे उसे किस कर के लगना चाहिए और मैं ऐसा बार बार करती रही। अपने सुन्दर क्लासमेट या किसी हॉट सेलिब्रिटी पे कैसे रियेक्ट करते हैं और उसके मुताबिक उसके बारे में सोचती रहती और उसके बारे में भी यूं ही बतियाती रहती ।

अपनी उन चिट्ठियों को मैंने अपने दादा-दादी के घर की अलमारी में छुपा के रख दिया , लेकिन उसको मेरी चाहत के बारे में पता चल गया और उसके बाद, मुझे मैथ्स में अच्छे मार्क्स मिले।

मेरा बेस्टफ्रेंड और बैंगलोर

पेट में वो फीलिंग भी नहीं आ पायी, और मैंने भी इस बात को जाने दिया। दो रिलेशनशिप्स , चार साल , और नारियल पेड़ रहित बैंगलोर शिफ्ट होने के बाद मुझे कोई ऐसा मिला जिसका साथ मुझे नवंबर की सर्द सुबह में हल्की धूप जैसा लगता था।

हम बेस्ट फ्रेंड्स थे और जब मैंने उससे बैंगलोर की ट्रैफिक में अपना बॉयफ्रेंड बनने के लिए बोला, तो ऐसा लगा हमारा रिश्ता बाकी रिश्तों से एकदम हट के होगा। हम और पक्के दोस्त बनेंगे। हम वही सब करते थे, जो रिलेशनशिप में आने से पहले करते थे। हंसी -मज़ाक , लड़ना , असाइनमेंट्स में एक दूसरे की मदद , बस फर्क इतना था कि हम बस एक दूसरे का हाथ पकड़ते थे।

वो छोटी छोटी इल्ली तितली बनने का नाम ही नहीं ले रही थीं – यानी पेट में वो प्यार वाली गुदगुदी नहीं हो रही थी। हां इल्लियों की संख्या बढ़ गयी थी।

मैंने जाना मैं एसेक्शुअल हूं

बैंगलोर मुझे सतरंगी दुनिया के दर्शन करा रहा था और मुझे कॉलेज के सेकंड ईयर में आके, एसेक्सुअलिटी (सेक्स की चाह न होना) का मतलब पता चला । उस वक़्त मुझे प्रेम सम्बन्धों या उससे मिलते जुलते संबंधों के बारे में बहुत कुछ नया पता चला कि जो मेरे फ्रेंड्स सोचते है , मैं वैसा नहीं सोचती। उससे पहले मुझे लगा किसी के साथ सेक्स के बारे में सोच के, सबको वैसा ही लगता होगा जैसा मुझे लगता है – एक अजीब सा डर।

पहले मुझे ऐसा लगने की वजह अपनी भारतीय परवरिश लगी, जहां सेक्स या सेक्शुअल हेल्थ को लेके किसी से बात करने की जगह ही नहीं थी, मुझे यह सोच के बड़ा आश्चर्य हुआ कि कैसे यह शब्द ‘ एसेक्शुअल ‘ मेरे पेट में जा के ऐसे बैठ गया और वैसा भरा भरा एहसास देने लगा, जैसे मुझे कटोरा भर के गर्म कांजी खाने के बाद होता है। मुझे दूसरो की फैंटसी/ख़याली पुलाओ में जीने की बजाय, अपनी खुद की फैंटसी बुनने का मौका मिला।

ऐसा लगा मानो मुझे प्यार हो गया हो। किसी और से नहीं , खुद के बारे में अपनी इस नयी सोच से। आख़िरकार उन तमाम इल्लियों ने अपना रूप बदल ही डाला था और उनकी जगह नीले रंग की तितलियां मेरे अंदर फुदक रहीं थीं, जो मुझे हौले हौले गुदगुदाने लगीं।

मैं उसे कैसे बताती

मैं खुद को शाहरुख की पिक्चर की हीरोइन समझ रही थी कि अचानक मुझे याद आया कि मेरा बॉयफ्रेंड इतना समझदार नहीं है। मैं उससे ब्रेकअप तो नहीं करना चाहती थी, क्योंकि वो अब भी मेरा बेस्ट फ्रेंड था। लेकिन मुझे यह बात बहुत अच्छे से समझ आ गयी थी कि अपने इस हिस्से को और अच्छे से समझने के लिए, वैसे ही मशक्कत करनी पड़ेगी जैसे अनु ने इरफ़ान के लिए की थी।

टाटा चा में बैठे बैठे यह बात ऐसे गोल गोल घूम रही थी जैसे मेरे चाय की कप में चम्मच। उसे यकीन था कि वो हमारे रिश्ते को बचा लेगा और मुझे यकीन था कि हम इस चक्कर में अपनी दोस्ती खो बैठेंगे।

इस बात को दो साल हो चुके है। हालांकि अपने बारे में मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है , लेकिन अपने आप को लेकर मैं पहले से ज़्यादा कम्फ़र्टेबल तो हूं ही। आजकल मुझे अपना साथ, प्रेशर कुकर की तरह गरम और परेशां सा नहीं लगता। बल्कि अपने साथ बैठ के मुझे ऐसा लगता है, जैसे मुश्किल और लम्बे दिन के बाद रैमेन खाते हुए, कोरियन ड्रामा देखने के बाद लगता है।

वो हारमोन की झील , जिसमे मैंने खुद को ज़बरदस्ती धकेला था , मैं उससे बाहर आ चुकी हूं और खुद को आज़ाद महसूस कर रही हूं, मुझे लगता है, इस दिल की गुदगुदी से, मुझे साइकिलिंग ज़्यादा पसंद है। क्या पता ?

नोट- टीनाज़ अक्सर या तो ऊपर बादलो को निहारती नज़र आएंगी या नेटफ़्लिक्स पे आने वाले कोरियन ड्रामों का मुफ्त में प्रचार करती नज़र आएँगी। उसे रात के 2 बजे वाली चाय और किताबों की लिस्ट बनाना बहुत पसंद है। वो कभी कभी https://sosimplyunordinary.wordpress.com/ पे लिखती है।

चित्रण – निखिता थॉमस अनुवाद: मंजरी सिंह

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