कहते हैं कि बच्चे और युवा, बहुत ऊर्जावान होते हैं। जो देखते है वही सीखते हैं और तीव्र गति से सीखते हैं। कभी अपने सोच की किस तरीके से हमारी आस-पास की चीजें प्रभाव डालती हैं। युवाओं को अलग अलग तरीकों से तंबाकू सेवन के बारे मे बताया जाते हैं और लत लगाई जाती है।
क्यों चॉकलेट के साथ ही तंबाकू?
कभी सोचा हैं आस पास की दुकानों पर बच्चों के चॉकलेट के साथ युवाओं के मन पसंद चीजों के साथ कितने आसान तरीके से सिगरेट, पान, गुटखा आदि रखा जाता हैं। यही नहीं बड़े बड़े अक्षरों में लिखा होता हैं सिगरेट। सेलिब्रिटीज़ प्रचार प्रसार करते हैं, जैसे कि ये माउथ फ्रेशनर हो जोकि कहीं ना कहीं स्मोक लेस तंबाकू को बढ़ावा देता है। ये सिलसिला यही नहीं रुकता हैं।फ़िल्मों में इसे महंगे शौक के तरीके से दिखाया जाता हैं, जो सभी युवा पर अलग और बुरा असर डालता है।
जब इतने सारे तरीकों से ये सारी चीज युवाओं के बीच रहती हैं, तो आपको ये जानकर आश्चर्य बिल्कुल नहीं होगा कि भारत में बच्चे 8 से 9 साल की उम्र से ही तंबाकू सेवन शुरू कर देते हैं। वही दूसरी तरफ सरकार इसे स्वस्थ के लिए गंभीर खतरा मानती हैं, जो युवाओं पर बुरा प्रभाव डालता है।
सरकार ने इसे रोकने के लिए बहुत सारे नियम बनाए हैं। तंबाकू उत्पादों पर उच्च मूल्य कर लगाना, प्रत्यक्ष विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाना, शैक्षणिक संस्थानों के पास बिक्री पर प्रतिबंध लगाना, खरीद के लिए आयु प्रतिबंध लगाना और कई अन्य शामिल हैं। सबसे अधिक दिखाई देने वाले उपायों में से एक तंबाकू पैक पर ग्राफिक स्वास्थ्य चेतावनी (जीएचडब्ल्यू) का उपयोग हो रहा है। यह ग्राफिक के द्वारा दिया जाने वाला मैसेज जैसा चाहिए बिल्कुल वैसा ही होता है। उस चेतावनी को शिक्षित लोगों भी समझ सकते और अशिक्षित भी। यह अलग हैं कि उस चेतावनी को कोई गंभीर रूप से नहीं लेता हैं। बहुत से लोग आश्चर्य करते हैं, क्या ये चेतावनियाँ वास्तव में काम करती हैं?
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-17 (GATS 2) के अनुसार, आधे से अधिक लोगों ने ग्राफिक चेतावनी को देखते हुए बीड़ी और सिगरेट पीना कम किया हैं। इसी तरह, मौजूदा SLT उपयोगकर्ताओं में से 46.2% ने पैक लेबल पर दिए चेतावनी के कारण छोड़ने का विचार किया है। और डब्ल्यूएचओ ने नोट किया है कि ग्राफिक स्वास्थ्य चेतावनी तंबाकू के उपयोग को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इसके साथ ही भारत अपने ग्राफिक चेतावनी को लेके काम कर रहा हैं। अभी के लिए हम देख सकते हैं कि लगभग 85% सिगरेट पैकेट के हिस्से पर ग्राफिक चेतावनी रहती हैं। ये देखना काफी अच्छा हैं कि सरकार कुछ बदलाव ला रहीं हैं तंबाकू सेवन और प्रोडक्ट (Packaging and Labelling) से जुड़ा जो कि 1 दिसम्बर 2022 से जारी होगा। इतनी कोशिशों के बाद भी बहुत कुछ करना बाकी है।
खुली सिगरेट पर हो रोक
स्वास्थ्य चेतावनी देने के बाद भी ये डाटा है कि GYTS 4 के अनुसार सिर्फ 25% ही युवा चेतावनी पर ध्यान देते हैं बस। खासकर अगर बात करे खुले जो बीड़ी या स्टिकस बिकते हैं। एक स्टिक 15 से 20 रुपये में मिलते हैं। ऐसे में हम इस प्रॉब्लम को कैसे सुलझाए। क्या कुछ ऐसा हो सकता है कि चेतावनी पॉकेट के साथ प्रोडक्ट पर भी हो। जब प्रोडक्ट एक्सपर्ट इसे बना रहे हो तो ग्राफिक वार्निंग भी डिजाइन में रखते हुए बनाये । एक रिपोर्ट के अनुसार कनाडा जैसे देश भी हर सिगरेट पर व्यक्तिगत तरह से चेतावनी देने का सोच रहे हैं। बहरहाल मेरे ख़यालों से तो खुला और स्टिक बीड़ी और सिगरेट के बिक्री पर रोक लगना चाहिए।
अगर हमें एक ऐसा भविष्य चाहिए जहा हम भारत के युवाओं को खासकर तंबाकू सेवन मुक्त चाहते हैं तो सबसे पहले तो खुले /स्टिक बीड़ी और सिगरेट के बिक्री पर रोक लगाना चाहिए। युवाओं जो कि हम मानते हैं कि वो हमारे वर्तमान और आने वाले कल है उन्हें हम इस तरह धुएँ में झोंक नहीं सकते। जो गलतियां भूतकाल में हो चुकी हैं उसे वर्तमान और आने वाले समय में दोहराया नहीं जा सकता हैं।
हमारे अभी के लिए गए एक्शन हमारे आने वाले समय पर प्रभाव डालेगा। ये हमारे एक्शन पर और करने पर निर्भर करता हैं कि वो प्रभाव हम अच्छे चाहिए या बुरे परिणाम भी मिल सकतेहैं।जो बोयेगे, वही उगेगा । अभी भी समय हैं कि युवा धुएँ की धुंध से बाहर आ जाए।