दुनिया के 10 ऐसे देश है जो ‘इंडीजीनस राइट्स’ को अपने देश के संविधान में सेफगार्ड किए हैं, जैसे कनाडा, ब्राजील ,उरूग्वे, अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, कोलंबिया , बोलविया, मलेशिया और न्यूजीलैंड ये 10 ऐसे देश हैं जिन्होने आदिवासियों के “इंडीजीनस राइट” को अपने संविधान में इनकॉरपोरेट किया है।
जिस कॉंग्रेस ने 1989 को ILO कान्वेंशन 169 पर हस्ताक्षर नहीं किया और भारत के आदिवासियों को उनके मूल पहचान को दरकिनार कर साफ लहजे में कह दिया की भारत में तो आदिवासी यानि ‘Indigenous Peoples’ है ही नहीं! यहां तो अनुसूचित जनजाति है।
आज आदिवासी मूलनिवासी कैसे?
आज 33 साल बाद कॉंग्रेस अपनी राजनीति सत्ता बचाने के लिए राहुल गांधी के मुख से यह कहलवा रहा है -“भारत के आदिवासी ही भारत के मूल मालिक है।”
साहब आप लोग राजनीति के खिलाड़ी है, शब्दों की राजनीति कर आदिवासियों को उनके मूल अधिकार से तो उसी दिन वंचित कर दिया था, जब भारत के संविधान में आदिवासी जनजाति (Aborginal Tribe) की जगह अनुसूचित जनजाति(Schedule Tribe) लिख दिया था। ग्रेट ट्राइबल लीडर जयपाल सिंह मुंडा ने भी भरी सभा मे खुल कर कहा था की हमें आदिवासी शब्द यानि आदिवासी जनजाति को छोड़ कोई दूसरा शब्द स्वीकार नहीं।
लेकिन इन 75 वर्षों के दरमियान कॉंग्रेस या भाजपा के किसी लीडर ने कभी पार्लयामेंट में यह बात खुल कर नहीं कही कि उन्होंने भारत के आदिवासियों के साथ संवैधानिक उत्पीड़न किया।
अनुसूचित जनजाति आखिर क्या?
क्या मायने है अनुसूचित जनजाति का? कांग्रेस और भाजपा ने भी कभी इस विषय पर अपनी व्याख्या नहीं दी! अरे साहब आदिवासियों के समुदाय मे वैदिक वर्णव्यवस्था (Caste System ) नहीं पाई जाती। आदिवासियों में जाति नहीं होती बल्कि यह तो समुदाय होता है। वैदिक वर्नाश्रम व्यवस्था और आदिवासियों की व्यवस्था ज़मीन-आसमान का फर्क है।
वैदिक वर्नाश्रम व्यवस्था के साथ आदिवासियों की ना तो भाषा मिलती है ना ही उनकी सामाजिक व्यवस्था ना संस्कृति ना ही उनका जीवन शैली। भौगोलिकता मे भी भारत के आदिवासी समुदाय बिल्कुल भिन्न है।
वैदिक लोगों की सभ्यताओं का इतिहास मात्र 3600 साल पुराना है। इन 10000 सालों के दरमियान भारत मे विभिन्न सभ्यताओं का विकास हुआ। लेकिन भाषाओं के आधार पर अगर हम शोध करें तो भारत मे द्रविडियन और आस्ट्रीक भाषा बोलने वाले समुदायों का इतिहास लगभग 50-70 हज़ार वर्ष पुराना है। उनकी सभ्यता सरल और सामुदायिक थी।
आदिवासी भारत के स्वदेशी लोग क्यों नहीं?
मुंडारी भाषा परिवार मे संताली, मुंडारी, हो, खड़िया, असुर, बिरहोड़, कुरकु, महली यें सब आसट्रिक भाषा समूह से ही संबंध रखते है। भारत में द्रविडियन भाषा समूह जैसे गोंडी, कुडूख, पहाड़ियां, सोरिया पहाड़ियां आदि भाषा समूह अति प्राचीन है।
झारखण्ड राज्य के लातेहार और लोहरदगा ज़िला में रहने वाले असुर आदिवासियों ने सर्व प्रथम लोहे को गला कर औजार बनाना सीखा और दुनिया को लोहे के बारे मे बताया।
भारत में आदिवासियों के भाषा के आधार पर उन्हें भारत के स्वदेशी लोग(Indigenous Peoples of India) क्यों नहीं माना गया? क्या यह एक जघन्य अमानवीय अपराध नहीं? क्या भारत के लोगों और सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को जिन्हें भारत के संविधान बनने के बाद भारत मे सत्ता चलाने का हक भारत के मूल मालिकों ने उन्हें प्रदान किया, बदले में उन्होंने भारत के आदिवासियों के साथ क्या किया?
वनवासी,गिरिजन, असभ्य,नक्सली, अलगाववादी आदि नामो से सुशोभित कर इस देश के मूल मालिकों का ही संहार कर उनके मूल सम्पत्ति जल जंगल जमीन से उन्हें बेदखल करने का घृणित कार्य किया गया।
आदिवासियों और मिशनरियों और मुस्लिम
आरएसएस के विभिन्न हिन्दू संगठन और ईसाई मिशनरियों और मुस्लिम लोगों ने उनके डोमेन एरिया मे जाकर आश्रम मठ और चर्च और मस्जिद खड़ा कर भारत के भोले भाले आदिवासियों को गैर आदिवासी बनाने का घृणित कार्य किया। आज के संदर्भ मे जिन आदिवासी क्षेत्रों मे उनके पारम्परिक घोटुल, धूमकुड़िया होने चाहिए थे उसकी जगह हिन्दुओं के मंदिर और ईसाईयों के गिरजाघर और मुस्लिम लोगों के मस्जिद खड़े दिखते है।
आज के संदर्भ मे आदिवासियों को उनके प्राचीन सभ्यताओं संस्कृति भाषा से अलग करके उनके हाथो मे तमाम तरह के धार्मिक किताबें पकड़ा दिया गया है। आज एक आदिवासी दूसरे आदिवासियों को धर्म के नाम पर ज़लील करता दिखता है।
क्या हाल बना दिया आप प्रवासी बाहरी लोगों ने भारत के आदिवासियों का? कोई कहता की आदिवासी हिन्दू है “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” कोई कहता की आदिवासी ईसाई है ‘इस लिए चर्च के प्रति वफादार रहो।’
आदिवासी कोई जाति नहीं है
कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ कहता लेकिन उन्हें यें तक ज्ञात नहीं की आदिवासी कोई जाति नहीं बल्कि प्रजाति है। एक आदिवासी अगर धर्म बदल भी ले तो वह जैनेटिक तौर पर खुद को बदल नहीं सकता वह आदिवासी ही रहेगा। जब दुनिया में कोई धर्म भी पैदा नहीं हुआ था, तब से आदिवासीयों ने दुनिया को इस धरती पर जीने का सबक सिखाया, प्रकृति के नियमों को समझाया, उनके पास कोई आसमानी किताबें नहीं थी। वह तो प्रकृति से सीख रहा था। उनकी सामाजिक पारम्परिक जीवन संरचना तो प्रकृति से जुड़ी हुई थी। प्रकृति ही उनका गुरु थी।
मालिक को मालिक स्वीकार करने में तुम धार्मिक सभ्य लोगों को शर्म आती है क्या? आज भी तुम्हें आदिवासियों के बारे मे ज़्यादा मालूमात नहीं। तुम धार्मिक सभ्य लोगों से भी अत्यधिक सभ्य भारत के आदिवासी है। सीखो उनसे जाकर, मानवता क्या होती है? एक प्रकृतिवादी होना कितना गर्व की बात है। प्रकृतिवादी यानि दुनिया के संरक्षक और तुम धार्मिक जाहिलों लोगों का झुण्ड इस प्रकृति को ही नष्ट करने में लगे हो! प्रदूषित करने मे लगे हो!
मै 140 करोड़ भारत की जनता और भारत के नीति निर्माताओं से नम्र विनती करता हूं कि भारत के संविधान मे भारत के आदिवासियों को Indigenous या आदिवासी जनजाति ( Aborginal Tribe) का दर्जा दे और प्रश्चताप करें! कि भारत के मूल मालिकों के साथ सदियों से आपके प्रवासी धार्मिक पुरखों ने बदसलुकी की थी।
आज भी तुम लोग धर्म और राजनीतिक सत्ता के लालच में आकर तथा आदिवासियों की ज़मीन की लालच में, तुम उन्हें उजाड़ने तबाह और बर्बाद करने की नीच हरकतें बंद करो। आदिवासियों को उनके डोमेन एरिया मे सुकून से जीने दो।