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मध्यप्रदेश के प्रथम छोर पर जंगलो के बीच बसे एक गाँव डूमर के पलायन की कहानी

आज मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस की बात 1 नवम्बर 1956 को बना हुआ एक सपनों का प्रदेश, जिसके गठन की की परिकल्पना पहले से नही रचित थी, जिस प्रकार बहुत से प्रान्तों को जोड़ कर भारत देश बनाया गया शायद उसी प्रकार कई खंडों को जोड़कर मध्यप्रदेश बना ,जो अपने आप मे स्वर्णिम हैं जहां भाषा, संस्कृति, इतिहास,जंगल औऱ आदिवासी सब कुछ हैं।

पर न कभी भाषा ,संस्कृति, औऱ न जंगल औऱ आदिवासी कभी किसी का टकराव नहीं हुआ ,यहां विभिन्न राज्यों के लोग आकर काम करते हैं पर कभी किसी ने उन्हें बाहरी नही समझा ,इसलिए मध्यप्रदेश को छोटा भारत कह देना भी कुछ ग़लत नहीं होगा।

अब बात डूमर कछार की

जहां पर मध्यप्रदेश औऱ छत्तीसगढ़ की सीमा ये एक दूसरे से लिपटी हुई हैं, वहीं पर 2 km दूर छोटे जंगल औऱ कुछ खदानों के बीच एक गाँव हैं डूमर कछार!

आसपास की खदानों में काम करने वाले कर्मचारी औऱ उनके परिवार के अलावा कुछ मूल निवासियों की बस्तियां हैं, जो कबसे वहां रह रही हैं या कैसे वहा पर जी रहे हैं नहीं पता पर मूल भूत सुविधाओं औऱ साधनों के अभाव में शायद ये प्रकर्ति ही उन्हें पाल रही हैं।

अभी तक कॉलरी अपने कर्मचारियों का ख्याल तो रखतीं थीं औऱ शायद उसी से कुछ मदद इन जंगल के गाँव में बसे लोगों की भी पर अब सारी सुविधाएं बन्द की जा रही हैं ,जिनकी नौकरियां बची थी वो ट्रांसफर होकर जाने लगे हैं, पर बसे है अभी बहुत से लोग जो अभी यहीं के हो गए हैं लेक़िन बिना किसी मदद के उन्हें भी पलायान करना पड़ रहा था।

उम्मीद की किरण

कहते हैं जिसका कोई नही होता उसका भगवान होता हैं और इसी तरह 3 साल पहले सरकार ने यहां की पंचायत को परिषद बनाने का निर्णय लिया, जो काम बीच मे रुक भी गया था लेक़िन अब परिषद पूर्ण रूप से संचालन में आ चुकी हैं।

जहां पर कॉलरी ने पानी औऱ विधुत की व्यवस्था के काम को बंद कर दिया है तो सारे ज़िम्मेदारी को अपने कंधों पर लेकर उभरता हुआ एक नगर परिषद जो यहां के लोगों के लिए जीवन दान समान है।

शुरू से शरूवात करने की ज़रूरत सड़क, हो या पानी या बिजली के खंबो की लाइट एक एक चीज़ लगाने की ज़रूरत। पलायन रोकने की समस्या है, जिस प्रकार दिन ब दिन लोग पलायन कर रहे हैं इस परिसद का अस्तित्व खतरे में है।

काम करने से बदलाव

इतनी कठिन परिस्थितियों के बीच भी कर्मचारी औऱ जनप्रतिनिधि कंधे से कंधे मिला कर लगे हुए हैं, जहां पर पुराने बंद पड़े हैंडपंपो को रोज़ सुधारा जाता हैं, जिसे किसी को भी लाल या काला पानी न पीना पड़े। सफाई औऱ सड़क के लिए देर तक काम करते हुए लोग और जो कभी नहीं हुआ वो यहां हो रहा है सरकारी ऑफिस खुद लोगों के घर तक पहुंचा है।

गाँव के बहुत से लोगों को लिखना नहीं आता जिन्हें, सारी चीज़ें समझा कर उनके आवदेन ख़ुद भर कर उन्हें सुविधा देने की कोशिश हो रही है। कर्मचारियों ने सर्वे औऱ अनेक माध्यमों से गाँव के आदिवासी और बाकी लोगों के सरकार की हर सुविधा जल्द से जल्द देने का काम किया जा रहा है औऱ मैन आजतक इतनी तेज़ी से काम करतें हुए किसी सरकारी ऑफिस को नहीं देखा।

आवास, उज्ज्वला , राशन  औऱ आयुष्मान का लाभ हर अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंच रहा है, जिनकों क़भी किसी ने पूछा तक नहीं आज उनके चेहरे की खुशी ही हैं जिसने मुझे ये ऑर्टिकल लिखने की प्रेणना दी, मैं इस छोटे से गाँव की आवाज़ मुख्यमंत्री जी तक पहुंचाना चाहता हूं।

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