Site icon Youth Ki Awaaz

सभ्यता का सफ़र – 2

मातायें धीरे धीरे मरती गयीं और बच्चे बड़े होते गए लड़कियों ने अपनी माँओं की जगह ली और दुनिया के पहले मानव समाज में matriarchy मैट्री-आर्की स्थापित हुयी और सभ्यता का सफर आरम्भ हुआ।

लड़कियों ने अपने को और गुफा को साफ़ रखना और सजाना शुरू किया इसके लिए फूल पत्तियों पंखों का उपयोग किया। लड़कियों ने ही खाने को स्वादिष्ट बनाने और कई दिन तक सुरक्षित रखने के प्रयोग किये। बड़ी बड़ी ठहनियों को ला कर लड़कियों ने गुफ़ा की सफाई शुरू की फूल पत्तियों से सजाना शुरू किया।

नाम रखना लड़कियों ने शुरू किया होगा – आग , जल , आकाश , धरती , पेड़ , घास , अलग अलग पशु पक्षी , सूर्य , चन्द्रमा , तारे , बादल , वर्षा। समय के साथ सुबह , दिन , रात , बदलते मौसम और फिर महीने और वर्ष का अंदाजा।

हम जो विभिन्न आवाज़ें निकालते हैं उनको मिला कर एक शब्द बनाते हैं – हर शब्द का एक या अधिक मतलब होता है और इन शब्दों को मिला कर हम एक पूरी बात कहते हैं।

मैंने जो समझा है उसके हिसाब से सबसे आगे होंठों से निकलने वाली आवाज़ें प , म और ब की हैं – बायें तरफ से प दाहिने तरफ से ब और बीच से म। इन्हीं आवाज़ों से माँ बाप को हम पुकारते हैं। उसके बाद ऊपर के दांतों के अंदर की तरफ जीभ लगा कर हम बायीं तरफ से त दाहिनी तरफ से द और बीच से न की आवाज़ निकालते हैं।

थोड़ा पीछे जा कर तालू से जीभ लगा कर ट और ड की भारी आवाज़ निकलती है। इसके पीछे ऊपरी तालू से क और ग की आवाज़ निकलती है। इसके पीछे च और ज की आवाज़ निकलती है। तालू के बिलकुल पीछे गले से आवाज़ निकाल कर हम य और र बोलते हैं और पीछे जा कर गले का इस्तेमाल कर के ल और व बोलते हैं।

जीभ को निचले दांत से सटा कर हवा निकाल कर श की आवाज़ निकालते हैं। ऊपरी दांत के पीछे जीभ सटा कर हवा निकाल कर स बोलते हैं और जीभ को मुक्त रख कर सिर्फ गले से हवा निकाल कर हम ह की आवाज़ निकालते हैं।

इन आवाज़ों में अ , इ , उ , ए और ओ की आवाज़ मिलाई जा सकती है।

इस तरह अनेकों नाम या संज्ञा बनाई जाती हैं – दो या तीन आवाज़ों से जो समय के साथ आपस में मिला कर बड़ी बड़ी संज्ञाएँ बन गयी और विभिन्न लोगों ने इन्हीं आवाज़ों पशुओं की खाल का उपयोग किया होगा। को थोड़ा और परिवर्तित कर के अपनी विशिष्ट आवाज़ें बनायीं।

पूर्ण चंद्र का हिसाब रख कर और मौसम का हिसाब रख कर एक वर्ष में बारह महीनों का हिसाब बना होगा। हो सकता है पहली पीढ़ी की लड़कियों में ओवुलेशन और मासिक चन्द्रमा के हिसाब से ही होता रहा हो जो बाद में सबका अलग अलग होने लगा। लड़कियों ने कमर ढाँकने और स्तन ढाँपने के लिए पेड़ों की छाल और बाद में पशुओं की खाल का इस्तेमाल किया होगा और पैरों को चोट और काँटों से सुरक्षित रखने में पशुओं की खाल का उपयोग किया होगा।

लड़के लड़कियों के जोड़े बन गए और यह जोड़े अलग अलग गुफाओं में रहने लगे। शुरू में मातृ गुफा में ही खाना पीना होता था। बीमार होने चोट लगने पर यही शिफ़ाख़ाना था। गर्भ के अंतिम दिनों में प्रसव से पूर्व प्रसव हेतु लड़की यहीं आ जाती थी जिसकी सहायता के लिए दूसरी लड़कियां आ जाती थीं।

लड़के लड़कियां व्यस्क हो गए थे तब तक एक दो माऍं जीवित थीं और आती रहती थीं – एक दिन के बाद उनका हमेशा के लिए आना बंद हो गया उदासी छा गयी धीरे धीरे लड़कियां इस ग़म से उभरीं और अपनों में से दो लड़कियों को बड़ी माँ और छोटी माँ बना कर उनको सम्मान देना शुरू किया इस तरह माँ रानी की परंपरा शुरू हुयी।

लड़कों को गुफ़ा से निकल कर छोटे जानवरों का शिकार करना, मछली पकड़ना चिड़ियों का शिकार आ गया था बाक़ी फलों को तोड़ कर लाते थे।

पत्थर के टुकड़ों को घिस कर औज़ार हथियार बनाने का काम जारी था और गुफ़ा के आस पास इनके ढेर थे। मिट्टी खोद कर निकाली गयी जिसको सान कर लड़कियों ने छोटी छोटी आकृतियां अपनी माँओं की याद में बनायीं। जो प्याले तश्तरियां बनायीं गयीं वे पानी रोक नहीं पाती थीं लेकिन जब आग से पकाया गया तो यह बहुत बड़ी खोज साबित हुआ। पॉटरी युग का आरम्भ हुआ।

संभवत: पहली पीढ़ी में ही इन लड़के लड़कियों ने ऐसे काम कर लिए थे जिनसे मानव सभ्यता की नींव पड़ गयी।

पहली बस्ती

जो जोड़े बनते गए वे पास की दूसरी गुफाओं में बसते गए।

पत्थरों को ला कर गुफाओं के दरवाज़े बनाये गए। ऐसे पत्थर लाये गए जिन पर बैठना सम्भव हुआ या पत्थर पर पत्थर रख कर कहीं चढ़ना या पेड़ की ऊंचाई तक पहुंचना या छत तक पहुंचना संभव हुआ। बड़े बड़े पत्थर घेरे में लगा कर गाय भैंस बकरी भेड़ ऊँट आदि को पालना सम्भव हुआ। ऐसे ही नदी तालाब में पत्थर लगा कर उन्हें पार करना संभव हुआ या उन पर बैठ कर नहाना सम्भव हुआ।

पत्थर से चाकू छुरी जैसी चीज़ें बना कर जिनसे जानवर का गला काटा जा सके सीना पेट खोला जा सके मांस निकाला जा सके यह तो होमिनिड प्रजातियों को भी आता होगा। होमो सेपियन्स सेपियन्स ने पत्थर से कुल्हाड़ी जैसी चीज़ बना कर पेड़ों को काटना शुरू किया और आरी जैसी चीज़ बना कर पेड़ों से बैठने और लेटने के लिए चीज़ें बनायीं।

पत्थरों से कुदाल जैसी चीज़ बना कर ज़मीन खोदना शुरू किया। बाहर नदी तालाब झरनों से पानी अपने सेटलमेंट तक लाने के लिए नहरें बनायीं और यहां से गन्दा पानी विसर्जित करने के लिए नालियां बनायीं। पेशाब टट्टी करने के लिए गड्ढे खोदे गए जिन्हें बाद में पाट कर दूसरे गड्ढे खोदे गए।

मिटटी सान कर चीज़ें बना कर उन्हें आग में तपा कर खाना पकाने के बर्तन प्लेटें चम्मच करछुल बनाये गए। लकड़ी से भी करछुल कफगीर बनाये गए। आग में तपा कर ईटें बनाये गए जिनसे चूल्हा बनाया गया और खुड्डियाँ बनायी गयीं।

मानव सभ्यता की स्थापना पत्थर मिटटी और लकड़ी से हुयी और ऊर्जा का स्रोत वायु धूप जल और आग थे। आरम्भ में कई पीढ़ियों ने पत्थर और लकड़ी से जो कुदाल कुल्हाड़ी आरी और हथौड़ी बनाये उनसे ही धरती के ऊपर और धरती के नीचे चीज़ें खोजते रहे जिनसे चूना गंधक नमक कोयला प्राप्त हुए और फिर तांबा कांसा खोजे बनाये गए और फिर लौहा मिला और बनाया गया। राज्य की स्थापना के बाद यह खोजें संभव हो पायीं जिनके लिए असंख्य लोग कोशिश करते रहे और सफल हुए। साम्राज्य की स्थापना से विभिन्न देशों की खोजें उनके उत्पादन दूसरे देशों तक पहुँचते गए।

जंगल में ही एक बड़े हिस्से में एक ही तरह की फसल मिलती होगी जैसे की गेंहू ज्वार मक्का चावल जिन्हें कच्चा या आग में भून कर खाया होगा फिर इनके दानों को इकट्ठे कर के सेटलमेंट एरिया में बो कर पहली खेती शुरू की गयी होगी। इसी प्रकार फल देने वाले पेड़ों और शाक सब्ज़ी के पौधों – कद्दू लौकी गोभी भिंडी बैंगन टमाटर आदि को लगाया गया होगा।

दूध अंडे और मांस के लिए जानवरों चिड़ियों मछलियों को पाला गया होगा। जानवरों और भेड़ की खाल को पहनने जूता बनाने पानी भर कर लाने के लिए इस्तेमाल किया गया। पहाड़ी क्षेत्रों में भेड़ों को बड़ी संख्या में पाला गया और उनके बालों से ओढ़ने पहनने की चीज़ें बनायी गयीं। इससे बुनाई शुरू हुयी। पहिया खोजै गया जिससे गाड़ी भी बनी मिटटी सान कर कटोरी ग्लास कुल्हड़ हंडिया बनीं और पहिये के ज़रिये भेड़ के बाल से ऊँन बना और फिर कपास की रूई से सूत बुना गया और इंसान ने अपने हाथों से बनाया कपड़ा पहना।

लड़कियों ने ही विवाह और मृत्यु और शिशु जन्म के संस्कार विकसित किये। शवों को चट्टानों के बीच उपयुक्त स्थान पर रख दिया जाता था और जब एक स्थान भर जाता था तो उसे बाहर से बंद कर दिया जाता था।

दिन महीनों वर्षों का अंदाजा हो जाने के बाद ख़ास दिनों – ख़ुशी और ग़म के दिनों को मनाने का क्रम शुरू हुआ।

इस तरह महिलाओं की सत्ता में मानव सभ्यता के आरंभिक दिन कई पीढ़ियों तक एक सीमित क्षेत्र में बीते। परिवार क़बीले बनते गए – सब काम करते थे लेकिन जो शारीरिक मानसिक रूप से उतने सक्षम नहीं होते थे पर उनकी भी देखभाल होती रहती थी।

कुछ लोग खोज करते रहे समस्याओं का हल ढूंढते रहे कला कौशल का विकास करते रहे। प्रकृति से नमक तेल मोम रंग खुशबू गोंद शहद जैसी चीज़ें खोजी गयीं और बस्ती में लाई गयीं।

गुफा के बाहर लकड़ी और पत्थर से आगे विस्तार किया गया और इस तरह झोंपड़ी बनीं और फिर स्वतंत्र रूप से मिटटी की दीवारों और बांस सरपत रस्सियों से झोंपड़ियां बनती गयीं और पहला गाँव बना।

एक बड़ा कारखाना बना जिसमें आग की बड़ी भट्टियां थीं जिन पर मिटटी सान कर उनसे बनी पॉटरी को पकाया जाता था। साथ ही खेती और पशु पालन का भी विकास हुआ। मातृ सत्ता में आपसी सहयोग से सब कुछ भली भांति चलता रहा।

यह गाँव अपने में एक पूर्ण व्यवस्था था उस समय सभी लोग मिल कर खेती करते थे और फ़सल काटने के लिए सब लोग मिल कर काम करते थे और काम को रोचक बनाने के लिए पर्व का रूप दे दिया गया था।

फसल को सुरक्षित रखने के लिए भण्डार बनाये गए।

पत्थरों से घेर कर बाड़े बनाये गये – जानवरों के लिए , मुर्गियों बत्तखों , भेड़ बकरियों के लिए। एक जगह पर मांस हेतु जानवर मुर्गियां आदि काटे जाते थे। एक जगह प्राकृतिक या बनाया हुआ जलाशय था जिसमें मच्छलियाँ पाली गयीं। एक जगह ड्रेस और जूते बनाने का कारखाना था। एक जगह लकड़ी के सामान बनाने का कारखाना था। एक जगह पत्थर काटने घिसने का कारखाना था। जंगल से कपास भी लायी जाती थी जिसको बन कर धागा बनाया गया नारियल जूट से रस्सी बनायी गयी भेड़ के बालों से ऊँन बनाया गया। पत्थर ढोने से और पत्थरों के लुढ़कने लुढ़काने से गोलाई का उपयोग मालूम पड़ गया। पेड़ों के गोल तनों को आपस में बाँध कर उनके ऊपर पत्थर रख कर खींचने से गाड़ी की रूप रेखा तैयार हुयी और फिर गोल तनों को काट कर पहिये तैयार हुए। पहिये का इस्तेमाल गाड़ी के इलावा सूत काटने और गीली मिटटी से कुल्हड़ प्याले तश्तरी बनाने में हुआ। 

Exit mobile version