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पढ़ाई के बोझ तले वर्तमान पीढ़ी के छात्र

वर्तमान समय में हम आए दिन देखते है की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र परीक्षा में असफलता प्राप्त होने पर निराशा के कारण खुद को दोषी महसूस कर आत्महत्या कर रहे है और ये आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इसमें मैं छात्रों के साथ ही उनके माता – पिता को भी दोषी मानता हूं। 

इसके मुख्य दो कारण है  प्रथम, माता – पिता अपनी महत्वाकांक्षा को पूरी करने के किए अपने बच्चों को अपनी चाहत के सपनों के बोझ तले दबा देते है इसके पीछे का कारण सामाजिक परिवेश है जो बच्चों के मध्य नकारात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता हैं जिसे माता पिता अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते है। उदाहरण के तौर पर शर्मा जी का बेटा आईएएस बन गया है तुझे भी बनना है या फिर पड़ोसी का बेटा डॉक्टर और इंजीनियर बन गया है तुझे भी उन्हीं की तरह बड़ा अफ़सर बनना है।

दूसरा कारण विद्यार्थी के द्वारा अपनी योग्यता को न पहचानना और भविष्य के प्रति जागरूक न होना जो कि विद्यार्थी को भटकाव की दिशा में ले जाता है। जैसे कि उसका एक लक्ष्य के प्रति ध्यान न देना तथा लोगों के बहकावे व सफलता से प्रेरित होकर अपने लक्ष्य को बदलते रहना। अन्य कारण भी है जैसे कि घर में पारिवारिक कलह, धन व संसाधन की कमी , कर्ज का बोझ तथा नशे की लत आदि।

उपर्युक्त समस्या के समाधान करने के किए विधार्थी के साथ ही माता पिता, शिक्षक, समाज तथा सरकार सभी को मिलजुलकर काम करना होगा।

इसके किए विद्यार्थी को सबसे पहले यह समझना होगा कि पढ़ाई ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम है जो कि हमारे लिए बनी है न कि हम उसके लिए इसलिए ये जरूरी है कि हम पढ़ाई को अपने ऊपर हावी न होने दे तथा इसके साथ ही यह जरूरी है कि विधार्थी किसी के दबाव में न आकर अपने विषय अपनी पसंद व रुचि के अनुसार चुने तथा अपने लक्ष्य का निर्धारण भी स्वयं कर कुशल समय प्रबंधन के साथ अपने कार्य को कुशल तरीके से निरंतर करना चाहिए।

माता पिता से आग्रह है कि वह अपने बच्चों की परवरिश मित्र की तरह करे। उनकी हर छोटी से छोटी बात को ध्यान से सुने उसे नजरंदाज न करे । कोई गलती करने पर पहले उन्हें प्यार से समझाएं तथा जरूरत पढ़ने पर उसे डांटे लेकिन हिंसा को प्रोत्साहन न दे। माता पिता अपने बच्चों के साथ वक्त बिताए तथा उनकी छोटी से छोटी एक्टिविटी पर नजर रखें। यदि उन्हें महसूस हो कि बच्चा हतोत्साहित महसूस कर रहा है तो रचनात्मक तरीके से उसका उत्साह वर्धन करें। जहां तक संभव हो सके समय मिलने पर उन्हें घुमाने भी ले जाए। बच्चों को कुछ हद तक अपने निर्णय खुद लेने दे और रचनात्मक कार्यों करने के लिए प्रोत्साहित करे।

शिक्षक व विद्यालय की भूमिका विद्यार्थी जीवन में महत्वपूर्ण है क्योंकि जब माता पिता अपने बच्चे को विद्यालय में प्रवेश दिलाते है तो वह एक पौध की तरह होता है जिसे जिस तरीके से सिंचा जायेगा वह उसी तरह वृद्धि करेगा इसलिए लिए विद्यालय व सभी शिक्षकों का यह दायित्व बनता है की वे विद्यालय परिसर में ऐसा परिवेश तैयार करें कि बच्चे रचनात्मक कार्यों व अनुसंधान के प्रति प्रोत्साहित हो। उन्हें समझकर अध्ययन करने को प्रेरित करें न कि रटकर अंक लाने के लिए व कक्षा में अव्वल आने के लिए। बच्चों के बीच सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हुए एक दूसरे का सहयोग करना सिखाए। उनमें कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ नैतिक मूल्यों से भी अवगत करवाए ताकि वे अपने कौशल के आधार पर रोजगार प्राप्त करे तो उसमें नैतिक मूल्यों का समावेश हो जो कि देश के लिए बेहतर मानव संसाधन बनाने में मदद करेगा। 

सरकार भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है कि वह विद्यालयों व विश्वविधालय का पाठ्यक्रम इस प्रकार निर्धारित करे कि जब कोई विधार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण कर नौकरी की तलाश करें तो वह अच्छे से कुशल(स्किल्ड) हो, उसे तकनीकी का ज्ञान हो, एक अच्छा थिंक टैंक हो तथा इसके साथ ही उसमे अच्छे नैतिक मूल्य विकसित हो चुके हो। इसके लिए सरकार को पाठ्यक्रम का निर्धारण इस प्रकार करना होगा कि उससे विद्यार्थियों को रचनात्मक कार्यों व अनुसंधान के प्रति प्रोत्साहन मिले। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अवसरंचनात्मक सुधार करे और मूलभूत सुविधाओं के साथ अच्छी तकनीकी भी उपलब्ध करवाए। 

उम्मीद है कि यह लेख समाज को बेहतरीन दिशा दिखाने में सफल होगा।

By – Arvind Bishnoi 

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