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असम आंदोलन के अगुआ नेता की कर्मभूमि नगाँव

एक दम असम के बीचो-बीच स्थित नगाँव काजीरंगा नेशनल पार्क उसमें भी एक सींघ वाले गैंडा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। चूंकि नगाँव के आस पास का एरिया ब्रह्मपुत्र नदी से घिरा हुया है, इसलिये यहां बहुत सारी दलदल और झीलें हैं, जो बेहद ही मनमोहक दृश्य पेश करती है जो कुदरत प्रेमियों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है।

असम राज्य का जिला नगाँव 2287 sq km में फैला हुया है, जहां की आबादी तकरीबन 28 लाख है जिसमें से 56 फीसद आबादी मुस्लिम है। नगांव का शुमार असम के उन जिलों में होता है जहां मुस्लिम Minority नहीं majority में हैं। यहां पर मुस्लिम आबादी के मायने में तो सबसे आगे हैं मगर इसके अलावा पढ़ाई, कारोबार, सियासत सब चीजों में दयनीय हालत का शिकार हैं।

जब आप गूगल या यूट्यूब पर नगांव के बारे में सर्च करेंगे तो सिवाए कुछ लोकल गानों के आप को कुछ भी नहीं मिलेगा। बाकी असम की तरह नगांव की अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से खेती पर निर्भर करती है, जिसमें चावल की खेती प्रमुख है। इसके अलावा मछ्ली पालन यहां के लोगों के लिए अहम स्थान रखता है। पीने के साफ पानी और सैनीटेशन के मामले में इस जिले का शुमार देश के सबसे बदतर जिलों में किया जाये तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

15 अगस्त 2015 को नगांव ज़िले में से ही काट कर हो जाई ज़िला का निर्माण किया गया था। इस ज़िले में 7 विधानसभा और 1 लोकसभा की सीट है। 80 के दशक में असम आंदोलन की अगुवाई करने वाले और असम के दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रफुल्ल कुमार महन्त का विधानसभा हल्का बरहामपुर भी इसी ज़िले में आता है जिस पर वो लगातार 1991 से जीतते आ रहे हैं मगर जितनी तरक्की इस ज़िले को एक मुख्यमंत्री का गृह ज़िला होने के नाते प्राप्त होनी चाहिये थी उससे नगाँव हमेशा अछूता ही रहा।

ट्रांसपोर्ट के मामले में इस ज़िले के हालत बाकी ज़िलों से बेहतर है। जहां तक बात साक्षरता की करें तो इस मामले में इस जिले कारगुजारी बेहद चिंताजनक है। असम को दो बार मुख्यमंत्री देने वाला यह जिला आज तक विकास को ढूंढ ही रहा है जो है कि मिलने का नाम ही नहीं ले रहा इसके अलाव

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