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“रिश्ते की डोर”

कविता रिश्ते की डोर

नयी मित्रता की ओर बढ़ रहे हैं

फेस बुक के पन्नों में

नये दोस्त ढूंड रहे हैं।

प्रकृति का नियम ही है बदलना

और आगे चलना कभी भी इस जीवन में!

किसी से पीछे नहीं रहना

प्रतिस्पर्धा नहीं तो कुहीं

सफलता नहीं तो कुछ भी नहीं

विचारों से मेल खाता है।

लेखनी जब अच्छी लगती है

ऋदय के तार बजने गते हैं

नयी रागनी कोई पुनः नपती है

एक से दो दो से चा

मित्रों का कारवां बनता चला

और पीछे रह गये रिश्तों के काफिले!

हम भले ही आज भटकें रास्ते को छोड़ के

दिल दुखे तो क्या हुआ उस दिशा से मोड़ के

चल दिए हैं आज हम नव युग बनाने

और पीछेह गया मौसम सुहाने

हो रहा एहसास याद उनकी आ पड़ी

हम न भूलेंगे कभी डोर रिश्तों की लड़ी है।

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