अंधेरों से कह दो
कुछ देर तो ठहरना होगा।
इन झिलमिलाती रौशनी में
कुछ देर खुद को लापता करना होगा।
साँझ ढलेगी जब दिवाली के बाद
तन्हाईयों की महफ़िल आम होगी
फिर शायद तुम्हें, तुम्हारा
फिर अंधेरे सी ठहरी रात होगी
रौशन शहर को ताउम्र कर जाए।
क्यों ना हो यूं, ये चांदनी
रौशन शहर को, ताउम्र कर जाए
क्यों न यूं अंधेरों का इंतज़ार
ताउम्र का हो।
ताउम्र इंतज़ार ही रह जाए।