तुम्हारे जानें के बाद ये शहर छोड़ दिया मैंने
लेकिन घर तो आना ही पड़ता है
जब भी स्टेशन पर आती हूं
ये आंखे तुम्हे ढूंढने लगती है
दूर कही भीड़ मैं खड़े हो शायद
मुझे दिख जाओ तो मैं भाग के बाहों में झूल जाऊं तुम्हारी
लेकिन ये उदास आंखे मुझे याद दिलाती है
अब तुम मुझे कभी स्टेशन पर नही दिखोगे!
घर आती हूं तो लगता है
किसी ने दरवाज़ा खटखटाया हो
नीचे दरवाज़े पर जाऊंगी तो
तुम मुस्कुराते हुए दिखोगे
और मुझे कस के गले लगा लोगे
और कहोगे बहुत दिनों बाद देखा तुम्हें!
फिर याद आता है
तुम अब कभी भी दरवाज़े पर दस्तक नहीं दोगे
कैसे भूलूं मैं तुम्हे कैसे खुश रहते हैं?
प्यार करना तो सीखा दिया लेकिन उस प्यार को भूलते कैसे हैं?
काश जाते जाते ये भी बता जाते
कैसे भूलूं मैं तुम्हे ये भी सीखा जाते।