अंधेरी रातों को यानि 3.30 में उठना ,चाय पीना ,तैयार होना ,अपने सारे इलाके को साफ करना ,अपने बिस्तर को शिष्टाचार के दायरे में रहकर ठीक करना और अपने यूनिफ़ॉर्म पहनकर सारे प्रशिक्षण के समान के साथ 5.00 बजे पुनः फाल- इन होना पड़ता था ! नित्य क्रिया से निपटने में लाख परेशानियाँ होती थीं ! कभी -कभी आर्मी मेडिकल कॉर्पस सेंटर की बिजली ही गुम हो जाती थी ! अंधेरे में सारे काम करने पड़ते थे !
6.00 बजे सुबह से हमलोगों की ट्रैनिंग शुरू हो जाती थी ! PT अपने कॉम्पनी के ग्राउन्ड में, परेड अपने ग्राउन्ड में और अन्य ट्रैनिंग 2 किलोमीटर के दायरे में होती थी! हरेक Period 30 मिनट्स का होता था ! पहली Period के बाद Breakfast के लिए 10 मिनट्स होते थे ! इसी दौरान हमें अगली ट्रैनिंग के पोशाक भी पहने पड़ते थे ! बाद में सिर्फ 5 मिनट्स का ब्रेक हरेक ट्रैनिंग के मध्य में होता था ! WT ग्राउन्ड, Education और BCT ग्राउन्ड दूर होते थे! सब जगह दौड़ कर ही जाने पड़ते थे पर WT ग्राउन्ड ट्रैनिंग राइफल 7.62 लेकर दौड़ना कष्टदायक होता था !
12.30. तक थक जाते थे ! दोपहर से शाम तक काम ही काम ! शाम को भोजन और लंबा रोल कॉल सारे अंग टूट जाते थे ! फिर नाइट ड्यूटी ! यह क्रम चलता रहता था– सुबह से शाम तक !
18 अगस्त 1972 के बाद तीन महीने तक बाहर की दुनियाँ की खबर नहीं थी ! नवंबर 1 तारीख के रोल कॉल में C O 2 बेसिक मिलिटरी बटालिअन कर्नल तेज सिंह का आदेश सुनाया गया ! नायब सूबेदार एस 0 के मिश्र रोल कॉल का रिपोर्ट लेने के बाद कहा ,—–
“ सभी रंगरूटों को बताया जाता है कि आने वाले रविवार से लोगों को OUT PASS मिला करेगा ! पर एक रविवार को 40 रंगरूट ही OUT PASS जा सकेंगे ! टर्न वाइज़ सबको भेजा जाएगा ! अपना -अपना नाम कॉम्पनी ऑफिस में दे देंगे ! कंपनी निर्णय करेगी कौन -कौन जाएगा और कौन -कौन दूसरे खेप में जाएगा !”
रोल कॉल में यह वेल्फेर आदेश सुन सब झूम उठे ! जो लोकल लखनऊ के भर्ती थे उन्हें इन आदेश का मतलब ही ना था ! वे तो आदेश के बावजूद भी अपने सगे -संबंधी से मिलने छुट्टियों में चले जाते थे ! बस दूर दूसरे प्रांतों से भर्ती होकर जो आए थे उनके लिए जीवनदायनी था OUT PASS!
मेरा नाम भी OUT PASS में आ गया ! हृदय गदगद हो उठा ! कम से कम आज इतने दिनों के बाद 5 घंटे ही सही आजाद पक्षी तो कहलाएंगे ! लखनऊ घूमने का अवसर तो मिलेगा ! हालाँकि मिलिटरी ट्रैनिंग सख्त नहीं होगी तो हम सजग देश के प्रहरी कैसे बनेंगे ? विषय वस्तु से हटकर मनोरंजन जीवन में महत्व रखता है ! OUT PASS इस महत्व को कामयाब बनाता है !
नवंबर के पहिले रविवार ने मेरे लिए आजादी का पैगाम लाया ! 12 बजे दिन में जल्दी -जल्दी लंगर में खाना खाया ! 12.30 में CHM की Whistle बजी ,लगा अब हम आजाद होने वाले हैं ! फाल -इन हुए ! यूनिफॉर्म का निरीक्षण हुआ ! वाल कटे होने चाहिए ! दाढ़ी बनी होनी चाहिए ! बूट चमकनी चाहिए ! शर्ट -पेंट में स्टार्च देकर स्ट्री होनी चाहिए ! Monkey टोपी में ब्लेको लगी होनी चाहिए! इस निरीक्षण में खरे ना उतरे तो OUT PASS केंसील भी हो जाते थे ! इसी ड्रेस में लखनऊ घूमना होता था !
ट्रैनिंग सेंटर के बीच में तोपखाना बाजार हुआ करता था ! यहाँ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स तो थी पर हमलोगों के लिए OUT OF BOUND AREA माना जाता था ! पर OUT PASS मिलने के बाद यहाँ आ सकते थे ! अपना परिचय -पत्र दिखलकर 25 पैसे घंटे के हिसाब से साइकिल मिलती थी ! मैं अच्छी साइकिल लेता था और निकल पड़ता था लखनऊ की गलिओं में ! CAPITAL CINEMA, हसरतगंज, अमीनाबाद, चरबाग ,लखनऊ यूनिवर्सिटी खूब आजाद पक्षी बने घूमते थे ! लखनऊ की कुल्फी ,रेबड़ी ,दूध और पलंगतोड़ को चखते थे ! 20 रुपये में सब हो जाता था ! कभी कभी कोई फिल्म भी हम देख लेते थे !
1 रुपया साइकिल दुकान को देकर अपनी कंपनी में ठीक 5 बजे शाम को पहुँच जाता था ! सब 40 के 40 रंगरूट फाल – इन होते थे और अपने -अपने OUT PASS को जमा कराते थे और फिर उसी रूटीन में ढल जाते थे !
OUT PASS के सुनहरे पल को फिर महीने भर सम्हाल कर रखते थे और आने वाले महीने में OUT PASS जाने की योजना बनाते थे! OUT PASS सचमुच ट्रैनिंग में जान फूँक देता था! यह दौर मैं आज भी याद करता हूँ !!