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“क्या छेड़छाड़ की शिकायत पर सिर्फ महिलाओं से सवाल किया जाना जायज़ है?”

मप्र में MLA की महिला से छेड़छाड़

मैं एक छोटे से कस्बे से आता हूं, देश में छोटी जगह तो बहुत हैं पर ऐसी गुमनाम नहीं। अक्सर अपने आर्टिकल के माध्यम से उसमे प्रकाश डालने की कोशिश रहती है।

पर कभी सोचा नहीं था कि हमारे MLA साहेब के कामों से हमारा देश भर में नाम हो जाएगा । बदनाम ही सही नाम तो किया इसके लिए हम सभी उनके आभारी हैं। हाल ही में उन्होंने भोपाल जा रही ट्रैन के AC कोच में एक औऱ विधायक महोदय के साथ एक सह यात्री महिला के साथ छेड़छाड़ की महिला का ऐसा आरोप है कि वो मदिरा पान किए हुए थे गाली गलौज कर रहे थे, गंदी नज़रों के अलावा महिला को कंधे से उठाने की कोशिश भी की।

ट्वीटर से हुई कार्यवाही

औरत अकेली थी, तो उसने अपने पति को कॉल कर पूरी बात बताई औऱ उसके पति ने पीएमओ से लेकर रेलवे मिनिस्ट्री तक सबको टैग करके ट्वीट किया कि ‘दो पैसेंजर मेरी बेटी और पत्नी के साथ ट्रेन में बद्दतमीजी कर रहे हैं उन्हें मदद की ज़रूरत है।’

मामले में तुरंत संज्ञान लेते हुए अगले स्टेशन पर जीआरपी पुलिस आकर महिला को दूसरी सीट पर लाकर सुरक्षित भोपाल पहुंचाया गया, तब जाकर पुलिस के सामने उसे पता चला कि ये दोनों MLA हैं फिर एक MLA ने तो बीच में उतर कर चले गए फिर महिला ने पहुंच कर FIR करवाई।

MLA जी के बिगड़े बोल

MLA जी का न्यूज़ वालों से कहना है कि कैसी महिला है? वो विधायक जी की सीट पर सोई हुई थी और हमने तो बस बैठ कर खाना खाया। अग़र वो सही है तो बच्ची के सर पर हाथ रख कसम खाए।

तो मैं बस इतना पूछना चाहता हूं वो क्यों अपनी बच्ची के सर पर हाथ रखे? आप अपनी बच्ची के सर पर हाथ रख कसम क्यों नही खा लेते?

उसके बाद हमारे विधायक जी का कहना है ऐसी माँ, बहन जो भी हो AC फर्स्ट का सफ़र ना करें लेकिन जब जब महिला AC फर्स्ट क्लास की टिकट ले सकती थीं, तो उसको आपकी सीट लेने की क्या ज़रूरत पड़ेगी?

और आज पढ़ी लिखी शिक्षित महिला के साथ AC फर्स्ट के डब्बे में य हो सकता है, तो सोचिए कोई ग़रीब ट्रैन म काम करने वाली महिला होती तो क्या हो सकता था? बल्कि होता ही होगा।

शायद उसको तो ये चोर घोषित कर देते, ग़रीब की इज्ज़त की क़ीमत कहां इनकी नज़रों में! शायद फ़िर पुलिस भी ग़रीब की ना सुनती औऱ ट्वीटर किस चिड़या का नाम हैं किसको पता? अक्सर ट्रेनों में महिलाओं और कई बार पुरुषों को ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है।

जब जननायक ही जन भक्षक हों तो क्या करें?

अक्सर नेताओं के ऊपर ऐसे आरोप लगते रहते हैं ये नहीं समझ आता कि सत्ता मिलते ही इंसान ख़ुद को जनता से ऊपर क्यों समझने लगता है। क्या हमें कोई अकेली महिला मिले तो उसके मदद के नाम पर उसका फायदा उठाने का हक है?

विधायक जी ने जो किया नही किया वो जांच से पता चलेगा ,जो इस देश मे कभी सफल नही होती मग़र उनके समर्थक जो भी महिला के लिए लिख रहे हैं वो बड़ा आहत करने वाला है।

कोई शातिर, चालबाज़ ,झूठे आरोप लगाने वाली कहते हैं, कुछ कहते हैं सामने क्यों नही आती? और वो सामने इसलिए नहीं आती क्योंक आप जैसे लोग फिर उसे जीवन भर जीने नही दोंगे छेड़छाड़ की शिकायत करना अपने आप में एक हिम्मत का विषय है, ना जाने देश मे कितनी महिलाएं इस शर्म को दबाए चुप रह जाती हैं बोल नहीं पाती।

बोल दिया तो चरित्र पर उंगली

वैसे तो आधे से ज़्यादा मामले FIR तक पहुंच ही नहीं पाते और जो बोलना चाहती हैं या आवाज़ उठाती हैं, ये समाज उनके ही चरित्र पर उंगली उठाता है, उसे जीने नहीं देता उसे ताने देता है कि अकेली गई ही क्यों? रात के ट्रैन से क्यों गयी ये वो?

उसे हर वक़्त अग्नि परीक्षा दे देकर अपनी सत्यता साबित करनी होती है, जबकि आरोपी खुले आम घूमते हंसकर रहता है। आखिर कब ये समाज एक स्त्री के साथ खड़ा हो सकेगा नाकि उसके परो को काटने के लिए?

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