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“बापू, आज आपके भारत में आपके विचारों को मानने वालों को देशद्रोही कहा जाता है”

प्यारे बापू, 

मेरा जन्म गुजरात के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। तो ये स्वाभाविक है कि आपके प्रति अपार प्रेम और सम्मान मुझे अपने पिता और दादा की तरफ से विरासत में मिला है। गुजराती होने का एक फायदा यह भी था कि हर कक्षा में आपके जीवन से संबंधित पाठ पढ़ाए जाते थे। मेरा बचपन आपकी कहानियां सुनते-सुनते गुजरा है। पापा को किसी भी चीज की मिसाल देनी होती वो हमारे पैगम्बर मुहम्मद साहब और फिर आपकी कथनी सुनाते। इसलिए महानता की सीढ़ियों पर मैंने हमेशा आपको ऊपर के स्थानों पर रखा है।

मेरे सहपाठी आपको भला-बुरा कहते थे

जब स्कूल में हमें आपकी महानता के पाठ पढ़ाए जाते तब ऐसा नहीं था कि आप सारे विद्यार्थियों को पसंद थे। मुझे याद है गुजराती विषय की वो क्लास, जिसमें मैंने अपने साथी विद्यार्थियों की बातचीत सुनी। वो एक दूसरे से कह रहीं थी कि उनको गाँधी इसलिए नहीं पसंद क्योंकि उनके मुताबिक गाँधी की वजह से मुसलमान पाकिस्तान जाने की बजाए हिंदुस्तान में ही रह गए। वह साल 2007 का था। 9वीं क्लास के विद्यार्थी की वो बातचीत सुन कर मुझे हैरानी हुई लेकिन लड़कपन था। दोस्ती की खातिर मैंने उस बात को नज़रंदाज़ कर दिया लेकिन मुझे वो बात आज भी याद है। मैंने कुछ पल के लिए सोचा भी कि भला कोई गुजराती होकर महात्मा को बुरा कैसेे बोल सकता है और उनके बाकी योगदानों को कैसे भूल सकता है? लेकिन भूलना तो इंसान की फितरत होती है, मैं भी तो भूल गई थी कयामत का वो दिन, जिस दिन आपके सम्मान, आपकी विचारधारा की धज्जियां उड़ाई गई। जब हज़ारों बेकसूर मुसलमान मौत के घाट उतारे गए। ऐसा लगा जैसे आपके संदेश का महत्व सिर्फ पाठ्यपुस्तक तक सीमित हो गया है। 

काश आप गुजरात दंगों के दौरान होते

बापू, मेरे बचपन की वो सबसे दर्दनाक याद थी, जिसको मैंने पूरे बचपन नहीं याद किया क्योंकि मुझे आपसे मुहब्बत थी और मुझे एक कौम या किसी विचारधारा के प्रति कोई द्वेष नहीं रखना था। मुझे पता था कि आप कैसे भूख हड़ताल पर बैठे थे जब नोआखाली ( बंगाल) में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे। अगर आप जिंदा होते तो आप कहां देख पाते वो आतंक, वो कयामत जो नरोदा, गुलबर्ग सोसायटी, अहसान ज़ाफरी और बिल्किस बानो पर गुजरी। वो भी उस धरती पर जो आपकी कर्म भूमि थी। जहां आपने साबरमती के तट पर आश्रम बनाया था और आपकी धर्मनिरपेक्षता के क्या कहने कि आपने तो खान अब्दुल गफ्फार खान, जो पेशावरी पठान थे और मांसाहारी थे, उनको मांस बनाने की भी इजाज़त दे दी थी। आपके इसी रवैया से प्रसन्न हो कर खान अब्दुल गफ्फार खान ने अहमदाबाद की धरती पर मांस खाना बंद कर दिया था। लेकिन फिर भी उस धरती पर अत्याचार हुआ, उस कौम पर, जिसने आपको देख कर पाकिस्तान की जगह हिंदुस्तान को चुना। उस कौम को उम्मीद थी कि आपके होते हुए, आपकी विचारधारा के होते हुए उन पर आंच नहीं आएगी। लेकिन आपके जाने के 50 साल बाद ही माहौल ऐसा बिगड़ा, जिसके सुधरने की कोई उम्मीद नहीं।

गुजरात में आपकी विचारधारा के मानने वाले अहसान ज़ाफरी आखरी नेता  थे। 28 फरवरी 2002 की सुबह, गुलबर्ग सोसायटी में सिर्फ अहसान ज़ाफरी का कत्ल नहीं हुआ था, उसी दिन गुजरात में गाँधी की विचाधारा का ऐसा गला घोटा गया कि गुजरात में वो विचारधारा मूल से मर गई। ये बातें मैंने बचपन में नहीं सोची थी, क्योंकि मेरे पास सोचने का हुनर नहीं था।  इस लिए मैंने तो 2002 की उन घटनाओं को बुरा ख्वाब समझ कर नज़र अंदाज़ ही किया। लेकिन जब आप को पढ़ा तब मालूम हुआ कि कितना ज़रूरी है ऐसी घटना को याद रखना, इंसाफ मांगना,  कातिलों को सजा मिलने की उम्मीद करना ताकि ये समाज फिर से हैवान होने से बच पाए। 

मैंने बापू के कारण UPSC की तैयारी चुनी

स्कूल के बाद फिर इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। मेरा सौभाग्य नहीं था कि मुझे कॉलेज में ह्यूमैनिटीज़ विषय पढ़ने का मौका मिलता, जिसमें आपका इतिहास, आप का तत्व ज्ञान, राजकरण को लेके आपकी विचारधारा पढ़ाई जाती है। लेकिन आपके प्रति इज़्ज़त हमेशा से रही थी । वह आपका ही वो विचार था कि “खुद वो बदलाव बने जो दुसरे में देखना चाहते हो”, जिसने मुझे UPSC परीक्षा के लिए प्रेरित किया। क्योंकि   प्रशासन और सुरक्षा संस्थानों को दंगे भड़काते और आग को हवा देते हुए देखना मेरे बचपन की एक सबसे कड़वी याद थी। मैंने पुलिस को दंगे रोकने की जगह निष्क्रिय हो कर तमाशा देखते हुए देखा था और मैं नहीं चाहती थी कि ऐसे भयानक नरसंहार, जो मैंने देखे वो किसी और बच्चे के लिए भी बुरी याद बने।  तभी मैंने ठानी की IAS ऑफिसर बन कर वो बदलाव लाऊंगी। 

उसी UPSC परीक्षा की तैयारी के दौरान जब मैंने आपको और अच्छे से पढ़ा तब आपके प्रति सम्मान और बढ़ गया। वो आप ही थे, जिन्होंने आम किसान, औरतों और बच्चों को कांग्रेस के प्रतिनिधत्व में होने वाले आंदोलनो में शामिल किया। बापू, मुझे बहुत दुख के साथ ये बताना पढ़ रहा है कि आपके साथी, आपके एक अच्छे दोस्त, जिनका आज़ादी की लड़ाई में बहुत बड़ा योगदान रहा है, ऐसे नेहरु की अहमियत महज़ एक वडप्रधान (प्रधानमंत्री) तक ही सीमित है। उनको एक भ्रष्टाचारी नेता बताया जाता है। उनके या उनकी विचारधारा को सम्मान करने वाले लोगो को देशद्रोही कह कर जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। मुझे आपसे दुखद बातें नहीं करनी है। मेरी मां को भी डर लगता है कि कहीं मेरा सच बोलना और हक बातें करना मेरा ही नुकसान न करवा दे, जैसे आपके साथ होता था और आप को जेल जाना पड़ता था। मैं लड़की हूं इसलिए मां हमेशा से इन सब बातों पर कुछ भी बोलने से मना करती है।

आपके जाने के 74 साल बाद भी एक चीज़ आज भी नहीं बदली और वो है सत्य से मुंह फेरना। सब फेरते हैं, महंगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पे कोई बात नही होती।

बात तो फिर हिंदू-मुस्लिम के तनाव को लेकर भी नहीं होनी चाहिए थी लेकिन गोदी मीडिया और चंद नेता इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाने में लगे हैं और ये लोग कभी-कभी आपके राम के राज्य की मिसाल देते है। नादानों को आपके राम के राज्य और हिंदू राष्ट्र में कोई फर्क नहीं दिखता। राम राज्य वो है जहां कोई मुहम्मद या मैथ्यू भी सुकून की सांस ले सके और बेखौफ रहें। 

आज लोग आपको बेझिझक गाली देते हैं

आपकी पुण्यतिथि पर आपका पुतला जलाया जाता है, आपको सारे आम गाली दी जाती है। गृह मंत्री के लिए आप सिर्फ एक चतुर बनिया है। यह लोग आपको गाली देके बच जाते है और कुछ तो लोकसभा में सांसद के रूप में विराजमान हैं। यह लोग हर अवसर पर आपको गालियां बकते हैं आपकी मूर्तियों को तोड़ते है, उन्हें जलाते है। मुझे पता है बापू, आपके चरित्र को इन सब के असम्मान से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन बापू, इनको नज़रंदाज़ कर देने का मतलब है हिंदुस्तान को बर्बादी की तरफ धकेलना।

आपको पता है बापु, आपकी तुलना सुभाष चंद्र बोस के साथ करके आप के आपसी मनमुटाव को बार-बार सामने ला कर युवाओं को आपके खिलाफ़ भड़काने की साज़िश होती है। लेकिन यह वो बात कभी नहीं बताते की आपको ‘राष्ट्रपिता’ का लकब (उपाधि) खुद सुभाषचंद्र बोस ने दिया था।

यह आपकी 125वीं सालगिरह पर आपका पसंदीदा भजन, “वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाने रे” दुनिया के अलग-अलग मुल्कों के लोगो से गिला कर दूरदर्शन पर प्रसारित तो करते है लेकिन खुद इसके बोल को अपनी आत्मा में नहीं उतारते। आत्मा में उतारना तो दूर की बात, आपके हत्यारों और उनकी विचारधारा को खूब सम्मान मिलता है। लेकिन बापू ,मुझे तब बड़ी हंसी आती है जब ये सावरकर और दीन दयाल उपाध्याय को यहां बहुत बड़े सेनानी की तरह चित्रित करते है लेकिन विदेश में जाकर सिर्फ आपके और आपके साथी नेहरू की भारत की आजादी और इसको एक प्रजातंत्र बनाने में योगदान की बात करते हैं। यह बातें आप आज के भारत में बेखौफ हो कर नहीं कह सकते। आपकी विचारधारा की गुहार लगाने वालों को देशद्रोही कहा जाता है।

बापू, अगर किसी जगह पर हिंदू-मुस्लिम एकता की आवश्यकता थी तो वो गुजरात था लेकिन यहां सरकार ने 1990 में ‘अशांत धारा’ नाम से कानून बनाया, जिसके तहत एक हिंदू मुस्लिम की बस्ती में और कोई मुसलमान हिंदू की बस्ती में घर नही खरीद सकता। उसका परिणाम यह है कि दोनो के बीच के अंतर की खाई और गहरी होती जा रही है। मुस्लमान अपनी घेट्टो (बस्तियों) में ही रह गया है बिना किसी विकास के फिर लोग इस कौम से अब्दुल कलाम की उम्मीद करते हैं। जब आपके आत्मसम्मान की पल-पल में धज्जियां उड़ाई जाए, ऐसे वंचित समाज की तुलना आप किसी विकसित समाज से कैसे कर सकते हैं? 

‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के नाम पर भारतीय अपने घरों पर झंडा तो लगा देंगे लेकिन फिर वही लोग आपकी जन्मतिथि के मौके पे ट्विटर पर आपके कातिल के सम्मान में “गोडसे ज़िंदाबाद” को ट्रेंड करेंगे। यह एक दुखद बात है कि आपको मारने वाले लोगों की विचारधारा आज हिंदुस्तान के कोने-कोने में पाई जाती है। कभी-कभी डर लगता है, जो लोग आपके जैसे मानवता के पहाड़ को मौत के घाट उतार सकते है, वह लोग किस पागलपन तक जा सकते है।  

लेकिन बापू हम इस कड़वे और अप्रिय सत्य से कब तक भागते ओर डरते रहेंगे। मेरे दोस्त कहते हैं मुझे इन सब बातों को नज़रअंदाज़ करना सीखना चाहिए लेकिन कब तक नज़रअंदाज़ करूं? मुझे लगता है जब तक हम ऐसी बातों को टालते रहेंगे, उस पर कोई बातचीत या डिबेट नहीं करेंगे और सिर्फ नज़रंदाज़ करते रहेंगे तो किसी निराकरण पर कैसे पहुंचेंगे? कैसे एक अच्छे भारत की उम्मीद कर सकते हैं? क्या चुप रहने से देश में अमन आ जाएगा? 

जब मैं आपके आश्रम गई

आज के भारत में गांधीवादी विचारधारा वाले लोग कम ही रह गए है. 2019 में मैं दूसरी बार आपके आश्रम गई थी (समझदारी आने के बाद वो पहली ही बार था), वहां एक अजब सुकून है। वहां मुझे आपकी विचारधारा के लोग मिले, उसमें से एक है श्याम सीता। जब भी मुझे आपकी विचारधारा को लेके कोई सवाल हो या वामपंथी लोगों के सवालों के जवाब चाहिए हो तो हम उनसे बात करते हैं। क्या अदभुत ज्ञान है उनको आप के जीवन दर्शन को लेकर ।

जब आपके खिलाफ बहुत जहर फैलाया गया तब मैंने श्यामा सीता जी से बात की। उन्होंने मुझे एक बहुत खूबसूरत बात कही,

“बचपन में हम एक पहेली खेलते थे, एक रेखा बनाकर दोस्तों से कहते थे – इसे बिना छुए छोटी कर के दिखाओ। दोस्त सोच-सोच कर हार मान लेते। तब हम उस रेखा के नीचे उससे बड़ी रेखा बनाकर उन्हें हैरान कर देते थे। आजकल यही तमाशा गाँधी के साथ हो रहा है, उनकी विशाल बहुमुखी छवि को छोटा करके दिखाने की स्पर्धा लगी हुई है, यह एक बड़ी साज़िश है। सरदार पटेल की संसार की सबसे बड़ी मूर्ति बनाकर गाँधी को बौना कर दिया। भगत सिंह के आगे गाँधी को ‘ बकरी ‘ बना दिया। सुभाषचंद्र को उनसे बड़ा देशभक्त बना दिया। अम्बेडकर को दलितों का असली और एकमात्र मसीहा बताकर गाँधी को हाशिये पर धकेल दिया जा रहा है (यह एहसान फ़रामोशी नहीं है ?) । लगता है धीरे-धीरे गाँधी को हिन्दुस्तान से दूर कर दिया जाएगा लेकिन बाकी दुनिया उन्हें याद रखेगी, हमेशा के लिए। “

बापू, आपको आज पत्र लिखने का मकसद यही है कि हम चाहते हैं कि आपको हिंदुस्तान में भी याद रखा जाए। बेशक आप भगवान नहीं थे जो आप पूरी तरह से निर्दोष हों। आपने भी कई गलतियां की होगी, आपकी सोच भी कई मुद्दों पर गलत रही होगी लेकिन आप हिंदुस्तान में हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। आपने अस्पृश्यता निवारण के लिए रात-दिन एक किए। आप राजकर्णी से बढ़ कर एक समाज सुधारक थे, जो शहीद हो गए लेकिन गलत का साथ नहीं दिया।

कैसे गाँधी जी ने अपनी गलतियां सुधारी

जब-जब मेरे दोस्त मुझे ये कहते थे कि गाँधी का समाज सुधारने वाला काम भारतीय लोगों का आज़ादी से ध्यान हटाने के लिए था तब मुझे समझ नहीं आता था कि में उनको क्या जवाब दूं। आज में समझदार हूं , इस लिए आजादी के 75 साल के बाद भी भारत के लोगो को पितृसत्ता, संप्रदायवाद, जातिवाद, गरीबी, बेरोज़गारी के शिकंजे में फंसा हुआ देख पाती हूं और तब मुझे आपकी दुरंदेशी का अंदाजा होता है। कितना ज़रूरी था अंग्रेजो की आज़ादी से पहले खुद अपनी ही प्रतिगामी सोच से आज़ाद होना! जो 1920 का गाँधी जातिवाद को लेके स्पष्ट नहीं था वह गाँधी 1945 में जातिवाद के सख्त खिलाफ था। यहां तक कि आपने यह तक कह डाला कि जो किताब किसी व्यक्ति के आत्मसम्मान की धज्जियां उड़ाती हो उस किताब के उन पन्नों को मिटा देना चाहिए। शायद आपकी यही आदत तो आपको महात्मा बनाती है की आप कैसे हमेशा वक्त के साथ अपनी सोच में और अपने बरताव में बदलाव लाए।

इस पत्र के साथ मैंने आपके साबरमती आश्रम के कुछ फोटोज, जो मेने खींचे थे, वो जोड़े है। ये लोग आप केआश्रम को भी बदल रहे है। इनको आपका आश्रम old fashioned लगता है (हां, लेकिन कौमवाद और जातिवाद तो आधुनिक खयाल है ) और हम शक्तिहीन लोग लाचार हैं। जो घमंड में चूर हो और अंदर से खोखला उसको आप सादगी का महत्व नहीं समझा सकते। आपके परपोते तुषार गाँधी ने कोर्ट से स्टे लगाने के लिए अपील की थी लेकिन इनके लिए आपके अस्तित्व का महत्व भारतीय रुपयों की नोट तक सीमित है। उस अपील को खारिज किया गया। आप फिर से एक बार अपना आश्रम देख लीजिए। शायद अब ये ऐसा ना रहें।

अंग्रेजो से चाहे आपकी कैसी भी दुश्मनी रही उन्होंने 33 साल तक आपकी हिफाज़त की, आपको सम्मान दिया, आपको आंच ना आने दी। लेकिन आप ही का आज़ाद हिंदुस्तान आप ही के लोग  आपको 33 सप्ताह भी सुरक्षा ना दे पाए। मुझे यह सच्चाई रोज़ परेशान करती हैं और नाउम्मीदी की तरफ धकेलती है। 

बापू, मैंने बहुत कड़वी बातें लिखी है जो शायद आपको अच्छी ना लगे। लेकिन मुझे इनके जवाब और सुझाव चाहिए। क्या आप ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ में जिस तरह मुन्ना भाई को दर्शन देते थे उस तरह मेरे ख्वाबो में आओगे और मुझे दिशा बताओगे? जिस तरह मैंने आप ही से प्रेरित हो कर UPSC की तैयारी शुरू की थी उसी तरह आपके जंतर, जो कोई भी काम करते वक्त वंचित और पिछड़े लोगो को याद रखने की गुहार लगाता है, को याद करके अपना रास्ता बदल लिया है लेकिन मेरा ध्येय वही है जो आपका था- एक अच्छे समाज की कल्पना कर उसकी तरफ काम करना। मुझे बहुत कुछ लिखना था फिर किसी और दिन लिखेंगे । चाहे पूरी दुनिया बदल जाए आप मेरे दिल में हमेशा जिंदा रहोगे । 

आपकी, 

मरहबा

 

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