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“उदयपुर शहर एक जादू है जहां मैं बार-बार लौटना चाहता हूं”

उदयपुर

वैसे तो शहरों में जी नहीं लगता मेरा लेकिन कुछ शहर एक अलग वाइब अपने में समेटे हुए होते है, उदयपुर उन्हीं में से एक है, चाहे पिचोला झील के घाट पर घंटों बीताना हो या फिर फतेह सागर झील के किनारे सुबह की सैर, सबकुछ अपने आप में मोहित कर देने वाला है।

उदयपुर शहर यानि सुकून

सबसे पहले तो अपने हॉस्टल की छत पर बैठकर पूरे शहर को निहारना अपने आप में ही सुकून देने वाला अनुभव है, जितना सुंदर ये शहर सुबह दिखता है उससे अधिक खूबसूरत यह रात में लगता है।

पहले कुछ दिन तो मैं इसी खूबसूरती पर सम्मोहित रहा और कही जा भी नहीं पाया लेकिन तीसरे दिन ढलती दोपहरी में निकल गया और महीनों बाद अकेले चलने का सुकून आया। भारत में टहलने लायक शहर चुनिंदा ही है और उदयपुर उन्हीं चुनिंदा में से एक और सबसे सुंदर शहर है

वैसे तो शहर को देखनें के लिए किसी भी तरह की गाड़ी में घूमकर देखा जा सकता है लेकिन शहर को जीने के लिए उसे पैदल ही नापना पड़ता है, उसके गलियों में जाकर, उसके कोनों पर पहुंचकर वहां की इमारतों से उस शहर का इतिहास पूछना पड़ता है। इसी ख्याल को सोचकर मैं निकल तो गया था लेकिन मंजिल क्या होगी यह तो मैं भी नहीं जानता था?

लेक पैलेस और गणगौर घाट

चलते-चलते गणगौर घाट पहुंच गया, वहां से लेक पैलेस का नजारा कुछ और ही दिखता है. खैर, मैं थोड़ा पीछे आकार घाट के पास बने मंदिरों के पास बैठ गया और एक किताब में सिर डालकर बैठ गया, लेकिन रह-रहकर वहां की ठंडी हवाएं और सामने अम्बराई घाट का दृश्य मुझे किताब छोड़ने को कह रहा था। मैनें किताब तो छोड़ तो दी; लेकिन वहीं सामने बैठे प्रेमी जोड़े को निहारने लग गया।

कच्चे उम्र का प्यार सबसे पवित्र होता है। आप उसे पूरी तरह से जी लेना चाहते हैं; सिर्फ उम्रदराज होकर ही हम बेवकूफ हो जाते है और उसे बचपने का नाम देकर नकार देते है

किसी रोज़ यह प्लान भी बना तो सिटी पैलेस घूम आये, कुछ ‘जाने – पहचाने’ चेहरों से नज़र तो मिली लेकिन गूफ्तगू नहीं हुई। सैंकड़ों साल पहले निर्मित सिटी पैलेस की भव्यता तो आकर्षित करती ही है लेकिन वहां की कहानियां और भी दिलचस्प है।

बाहुबली पर्वत और झील

एक सुबह बाहुबली पर्वत भी गये. वहां की सुबह और शान्ति दिल छू लेने वाली है, थोड़े से ट्रेक के बाद नजारा बेहद खूबसूरत है. चारों तरफ एक किस्म की हरियाली देखनें को मिलती है जो दिल को ठंडक देती है।

सिटी पैलेस की तरह मानसून पैलेस से भी नज़ारा मनमोहक है। वहां से तो मानों सारा शहर बाहें बिछाएं हुए दिखता है, लगता है मानों प्रकृति ने झीलों की मदद से कोई गज़ल कह दी हो, बेहद सुंदर और मनमोहक; लगता है मानों सिर्फ निहारते रहूं। वहीं, मानसून पैलेस से अरावली पर्वतों के पीछे सूरज को ढलते देखना ऐसा लगता है जैसे “पोएट्री इन मोशन” हो।

कुछ शहर अपना छाप आपको अपना बनाकर छोड़ते है, उसी तरह उदयपुर ने मुझे अपना बना लिया। लगता है मानों मैं इस शहर से कई सालों से परिचित हूं और जो लोग भी इस शहर में मिलें, वे भी बेहद खास थे, वे लोग मुझे हमेशा याद रहेंगे।

इस तरह की तरह ही मैं बार-बार उन यादों में भी लौटना चाहूंगा, जहां मैंने अपने सफर के सबसे अच्छे दिन बिताएं। उदयपुर और उसकी सुकून भरी घाटों के नाम!

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