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“भाजपा की और जाते दलित वोटों को लेकर क्या है कॉंग्रेस की रणनीति?”

बसपा से भाजपा में शिफ्ट होता दलित वोट और कॉंग्रेस का अध्यक्ष के तौर पर दलित कार्ड, कितनी मिलेगी सफलता? 

देश के सबसे अधिक (403) विधानसभा वाले प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार चला चुकी दलितों की सबसे बड़ी पार्टी माने जाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 2022 के विधानसभा चुनाव में एकलौते विधायक पर आकर सिमट गई है। ऐसे में पिछलें 30 साल से सरकार से बाहर रह रही कांग्रेस ने संगठन में भारी बदलाव करते हुए दलित समाज से आने वाले ‘बृज लाल खाबरी’ को अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंप दी है

माना जा रहा है, बहुजन समाजवादी पार्टी से दलितों के मोहभंग और भाजपा की तरफ़ दलित वोट शिफ्टिंग को देखते हुए कॉंग्रेस ने यह रणनीति बनाईं है।

कॉंग्रेस, बहुजन के वोट क्या बीजेपी के?

बता दें, शनिवार को कांग्रेस ने नई रणनीति के तहत यूपी संगठन को लेकर बड़े बदलाव किए है जिसमें अध्यक्ष के साथ छह प्रांतीय अध्यक्ष लगाए है जिसमें जालौन लोकसभा (एसटी सीट) से सांसद रहें ‘बृज लाल ख़ाबरी’ को प्रदेश अध्यक्ष ‘नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी, वीरेंद्र चौधरी, नकुल दूबे’ (जोकि बसपा के बड़े लीडर मानें जाते थे) व अनिल यादव और योगेश दीक्षित को प्रांतीय अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी दी है।

अब सवाल उठता है, क्या कॉंग्रेस बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से आए लीडरों को ज़िम्मेदारी देकर बसपा से खिसककर भाजपा में शिफ्ट होती दलित वोटों को अपनी तरफ़ खिंचने में क़ामयाब होगी?

राजनीत के जानकारों का मानना है, दलित वोट का बहुजन समाजवादी पार्टी से मोहभंग और भाजपा की ओर शिफ्टिंग की ज़िम्मेदार पार्टी सुप्रीमो ‘मायावती’ ख़ुद है यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि जब से पार्टी सत्ता से दूर हुई है मायावती कभी विपक्ष की भूमिका में नज़र नही आई, न ही दलितों के मुद्दों पर सड़कों कभी उतरीं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ‘हाथरस बलात्कार कांड’ है जिसमें मायावती ट्विट करके चुप हो गई।

मलिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष

वही कॉंग्रेस दलितों के मुद्दें को लेकर लगातार संघर्ष करती दिखी है। हाथरस मामले कॉंग्रेस सड़कों पर लड़ती दिख रही थी बीतें बीस चुनाव में कांग्रेस ने पीड़िता की माँ को प्रत्याशी भी बनाया था।

ऐसे में क़यास लगाया जा रहा है जिस तरह से केंद्र में कॉंग्रेस ने अध्यक्ष पद के तौर पर दक्षिण भारत की राजनीत में मज़बूत पकड़ रखने वाले दलित समाज से ताल्लुक़ रखनें वाले राज्य सभा में विपक्ष के नेता ‘मलिकर्ज़ुन खड़गे’ को अध्यक्ष बना रही है जिससे उत्तर भारत के दलित समाज में कांग्रेस सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर रही हैं लेकिन ऐसे वक़्त में जहां दलित वोट बसपा को छोड़ भाजपा में शिफ्ट हो रहा है ऐसे में कांग्रेस की ओर शिफ्टिंग आसान नहीं है।

गौरतलब है कि कॉंग्रेस इन दिनों ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से आने वाले लोकसभा चुनाव को अपने पाले में लाना चाहती है ऐसे में देखना दिलचस्प होगा यूपी का 21 प्रतिशत दलित मतदाता कॉंग्रेस के ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और केंद्र व प्रदेश में दलित अध्यक्ष चेहरे से कितना प्रभावित होकर कांग्रेस की ओर शिफ्ट होती है।

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