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मीडिया का सत्ता पक्ष में आत्मसमर्पण

मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है जिसे जनता विपक्ष के रूप में देखती है और चाहती है कि जनता के मुद्दे हर क्षेत्र से उठाकर दिखाए जाए ताकि सरकार तक समस्याएं पहुचें और सरकार उसका निपटान कर सकें। मीडिया जनता के बीच में एक निष्पक्ष जनता के उम्मीद है।

मीडिया की भूमिका

भारतीय मीडिया धीरे धीरे सरकारी मीडिया होता जा रहा है जब जब हम उस मीडिया को एक निष्पक्ष देखने की कोशिश करते है जब जब मीडिया अपनी सरकार के प्रति गुलामी दिखता है। आज इस महंगाई बेरोजगारी उत्पीड़न के दौर में जब भारत को अपने मुद्दे उठाने वाले साफ सुथरी मीडिया की जरूरत है वही मीडिया अपने आप को जनता से दूर करती है रही है जिसका सीधा प्रभाव देश के जनता को झेलना पड़ रहा है। 

मीडिया का सरकारीकरण व साम्प्रदायिकरण

जब जब देश में उत्पीड़न के मुद्दे होते है मीडिया शांत दिखाई देता है व जाति धर्म की और जनता को गुमराह करने का कार्य करता है,जहां जहां विपक्ष की सरकार है वहां मीडिया का मुद्दों को देखने का तरीका अलग है और जहां पक्ष की सरकार है वहां मीडिया आत्मसमपर्ण किए हुए है।

जिस तरीके से मीडिया महंगाई बेरोजगारी उत्पीड़न पर खामोश तो है ही उसके अलावा साम्प्रदायिक के मामले में हमेशा अपने चैनलों और हिन्दू मुस्लिम डिबेट करवा कर देश को बांटने का काम कर रह रहा है। जैसे कि देश के अंदर भारतीय मीडिया भाजपा के प्रवक्ताओं की भूमिका निभा रहा हो।

तमाम उदाहरण है चाहे वो अफ़ग़ानिस्तान का मामला हो,रूस या यूक्रेन के युद्ध हो,पाकिस्तान के घरेलू मुद्दे हो या भारत में हो रहे साम्प्रदायिक मुद्दे इस मामलों में मीडिया की सक्रियता 100 प्रतिशत है और जमीनी जनता के मुद्दे पर भारतीय मीडिया शून्य है जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है।

मीडिया को सदैव निष्पक्ष होकर जनता के हित में अपनी भूमिका निभानी चाहिए जिससे देश हित हो और भाईचारे का माहौल बना रहे। सरकार आएंगी जाएंगी परन्तु देश को बचाने की जनता को बचाने की है जिसे मीडिया ने धूमिल कर दिया है।

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