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प्यास बुझाने के लिए ढूंढते रहे पेड़ की छाया

 मैं अभी नवरात्री में अपने गांव गया था एक दिन मार्केट गया वहा मुझे एक व्यक्ति मिले जिनको हम सब प्यार से धोनी बोलते हैं क्योकि वह धोनी के बहुत बड़े फैन भी थे उनके सारे मैच देखते थे और कुछ हद तक उनके जैसे दिखते भी है , पहले उनकी एक कपडे की बड़ी दुकान थी जो आस पास इलाके में बहुत प्रसिद्द थी किंतु धोनी जी को ज्यादा दिन तक दुकान रास नहीं आई वह यह सब छोड़कर शहर चले गए और नौकरी करने लगे। ..

इस नवरात्री में वह भी काफी सालो बाद गांव आये थे अचानक मेरी नजर पड़ी मैंने चिल्लाया यो धोनी भैया कैसे कब आये कभी दिन बाद आप दिखे। … धोनी भाई का जवाब आया की भाई घर में कुछ काम था खेत के आस पास कई सारे पेड़ हैं उन्ही को कटा रहा हूँ मैंने कहा भैया आप बहुत गलत कर रहे हैं नवम्बर १९७४ में इन्द्रिरा गाँधी जी जो उस समय प्रधानमंत्री थी उन्हों ने पेड़ो की कटाई के लिए १५ सालो तक रुक लगा दिया था वजह थी कि केंद्र सरकार ने २५०० पेड़ो को कटाई के लिए नीलामी किया था जब ठेकेदार उस पेड़ को काटने को गए तो स्थानी महिलाओ का समूह जिनमे २१ महिला वह पहुचं गई और ठेकेदारों को समझाया किन्तु जब नहीं मने तो महिलाओ ने पेड़ो से चिपक गई और बोली इनको काटने से पहल मुझे काटना होगा जब यह बात तत्कालीन प्रधानमंती श्रीमती गाँधी जी को पता चला तब वह फैसला लिया। .

यह पूरी घटना का ज्रिक मैंने धोनी भाई से किया यह सुनते वह गुस्सा हो गए बोले भाई क्या बात करते हैं आप सुनिए अभी मैंने २ दिन पहले सुल्तानपुर गया मुझे रास्ते में प्यास लगी मैंने सोचा आगे कोई पेड़ मिलेगा रुक के पानी पीते है छावा ढूढते ढूढ़ते मैं शहर पहुंच गया जहा मुझे जाना था मैंने उनसे चर्चा किया आज मुझे पानी पीने के लिए मुझे पेड़ नहीं मिला जब मैं बचपन में आता था तो कई बड़े पेड़ थे जहा आराम से रुक के पानी पीता और थोड़ी देर रुककर आराम से शुद्ध हवा लेता था किन्तु आज सबकुछ बदल रहा हैं आगे क्या होगा भगवान ही जाने।

किन्तु सवाल यह हैं Pwd तो अच्छी सड़के तो बनाई किन्तु वन विभाग ने आज पेड़ काट दिए और लगाए नहीं जो हमे जिम्मेदारी का बोध करते हैं वही गैरजिम्मेदारी हो गए बाकि हम सबका क्या होगा। …..

मैं चुप हो गया और सोचने लगा जिस सरकार का मैंने उदाहरण उसी सरकार पर सवाल। …… मेरा भी आप सबसे सवाल क्या पेड़ो को बचना और ज्यादा से ज्यादा पौध लगाना हमारी जिम्मेदारी नहीं है ..?

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