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जिंदगीनामा

जिंदगी का सफ़र है होता कितना खुशनुमा

अपना तजुर्बा कुछ मैं सुनाऊं कुछ तू भी सुना
देख लिऐ जिंदगी के १९ वसंत हैं
कुछ साथी बिछड़ गए तो कुछ अब भी संग हैं।
 
इस सफर में मौसम भी न था एक सा
कहीं प्यार की बारिश थी तो कहीं दुश्मनी की रेत सा
पूछा जो मैने जमाने से की अब क्या उसका हाल है
बोला की क्या बताऊं वही हड्डी वही खाल है
मांसाहारी खाते मांस शाकाहारी खाते दाल हैं।
 
सफर में आगे बढ़ते बढ़ते आए काफी मोड़
कुछ से मिली पीठ पे थप्पी तो कई ने दिए दिल भी तोड़
सफर में अकेले न थे मिले कई लोग
कुछ रहे अजनबी कुछ बैठ गए दिल को खोल।
 
जीवन के इस पथ पर नहीं हुं मैं अकेला राही 
सब लोग चढ़ रहे हैं जीवन की ये चढ़ाई
किसी को मिली जिंदगी शाही
तो कोई बेच रहा बालूशाही
 
कुछ दौड़ रहे पैसे के पीछे
कइयों के पीछे दौड़ रहा है पैसा
जैसा गोल होता है लड्डू
ये खेल भी है उस पैसे जैसा
 
जीवन भर भागे पैसे के पीछे
इस पैसे से परिवार को सींचे
जिस दिन आई आराम की बारी
रह गया पैसा चली सवारी
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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