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आखिर क्यों भारतीय पुरुष अपनी सोच बदल नहीं पा रहा

आज़ादी के 75 वर्ष, आधुनिकता में किसी भी प्रकार से भारतीय पिछे नहीं है किन्तु आज भी महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण की बात करें तो प्रागैतिहासिक काल से भी पीछे चले जाते हैं भारतीय। आखिर ऐसा क्यों? क्यों भारतीय पुरुष अपनी सोच बदल नहीं पाता आखिर क्यों वह इस बात को समझ नहीं पाता कि समानता का भाव कितना आवश्यक है समाज में।

समाज जिसमें आप और आपके परिवार शामिल होते हैं समाज जिसमें आपके परिवार को भी सुरक्षित रखने का कर्तव्य आपका ही है। परंतु न जाने क्यों पुरुष जब केवल पुरुष की बात करते हैं तो महिलाओं से स्वयं को भिन्न और श्रेष्ठ समझने लगते है।

पुरूषों की सभा में स्त्री एक वस्तु की भांति उद्बोधित की जाती है,जिसका परिणाम पुरुषों के मूल स्वभाव में महिला एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं दिखाई देती और यही वह कारण है जिसकी वजह से महिलाओं के विरूद्ध अत्यधिक अशोभनीय और जघन्य अपराध घटित होते हैं।

जब तक भारतीय पुरूष, पुरूषों की सभा में भी महिलाओं का सम्मान करना नहीं सिखेगा अपनी सोच में परिवर्तन नहीं लायेगा उनकी स्वयं के घर की इज्जत तार तार होती रहेगी।

यही कारण है कि आज बहुतायत में दहेज प्रताड़ना के केस बढ चुके हैं साथ ही महिलाओं से पीड़ित पुरुषों की संख्या भी कम नहीं है क्योंकि जैसे समाज की रचना होगी उसकी प्रतिक्रिया और दुष्परिणाम भी सामने आयेगा।

अतः अब तो भारतीय पुरूषों को अपने सोच में परिवर्तन लाना होगा यदि वे एक सुरक्षित समाज चाहते हो तो अन्यथा असंतुलन केवल समस्या और विनाश ही लाता है।

जब तक पुरूष अपने सोच को नहीं बदलेगा तब तक समाज में महिलाओं बालिकाओं की सूरक्षा के लिए कितने भी प्रयास कर ले सफलता प्राप्त नहीं हो सकती।(यह पोस्ट जनजागरूकता के लिए है)

लेखिका सुनिता नाग बंजारे निरिक्षक थाना प्रभारी, थाना बम्हनीडीह, जिला जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़. में अपनी सेवा दे रही हैं.

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