हाल ही में इलाहबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स सड़कों पर उतर आए हैं। ‘आईएएस की फैक्ट्री’ के रूप में विख्यात इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ना अब महंगा हो गया है। अब पहले की तुलना में विश्वविद्यालय में हर विभाग की फीस बढ़ा दी गई है। कहा जा रहा है कि यूनिवर्सिटी की फीस की बढ़ोतरी की दर 400 फीसदी है। साथ ही इसमें यह भी जोड़ा जा रहा है कि यह फीस वृद्धि 100 साल बाद हो रही है।
क्यों हो रहा है विरोध?
इस फीस वृद्धि को लेकर स्टूडेंट्स में काफी गुस्सा है और वे पिछले कुछ दिनों से लगातार विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हाल ही में एक प्रदर्शनकारी स्टूडेंट के आत्मदाह करने की भी खबर है। कुल मिलाकर फीस वृद्धि के मसले पर प्रयागराज में माहौल गर्म है। स्टूडेंट्स का दावा है कि फीस में वृद्धि के बाद विश्वविद्यालय में गरीब स्टूडेंट्स का पढ़ना मुश्किल हो जाएगा।
दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि साल 1922 के बाद से विश्वविद्यालय में पहली बार फीस बढ़ाई गई है, इसके बाद भी अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की फीस की तुलना में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की फीस कम है। यूजी, पीजी और पीएचजी के पाठ्यक्रमों में फीस बढ़ोतरी की अधिसूचना 14 सितंबर 2022 को जारी की गई।
नवभारत टाइम्स की खबरों की माने तो विश्वविद्यालय की ओर से जो अधिसूचना जारी हुई है, उसमें बीए की फीस 975 रुपये से बढ़ाकर 3901 रुपये कर दी गई है। ध्यान देने वाली बात ये है की यह बिना लैब वाले विषयों के लिए है। बीए के जिन विषयों में लैब वर्क शामिल है, उनकी फीस 4115 रुपये कर दी गई है। वहीं बीएससी की फीस 1125 रुपये से बढ़ाकर 4151 रुपये , बीकॉम की फीस 975 रुपये से 3901 रुपये, एमएसी की फीस 1861 से 5401 रुपये ,एम कॉम की 1561 से बढ़ाकर 4901, एलएलबी की 1275 से बढ़ाकर 4651, एलएलम की 1561 से बढ़कर 4901 और पीएचडी के लिए फीस 501 से बढ़ाकर लैब वाले विषयों के लिए 15 हज़ार 800 और बिना लैब के विषयों के लिए 15 हज़ार 300 रुपये कर दी गई है।
क्या वाकई 100 साल में पहली बार?
विश्वविद्यालय प्रशासन भले ही इस बात का दावा करते हुए बचने की कोशिश करे की यह फीस वृद्धि 1922 के बाद पहली बार हुई है और यह फीस भी अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तुलना में कम है लेकिन एकाएक 400 प्रतिशत की फीस वृद्धि को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
इलाहाबाद एक ऐसा जंक्शन है जहां हर गरीब -गुरबा का पढ़ता बच्चा बचपन से ही रुकने के सपने देखता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला उस जंक्शन पर रुकने के एक शर्त की तरह होता है। इसी इलाहाबाद नगरी ने बड़ी मितव्ययिता से अनेक होनहारों को उड़ने के पंख दिए हैं। कई आई.ए.एस, पी.सी.एस और न जाने ऐसे कितने ही पदों पर पहुंचने की पहली सीढ़ी यह नगर और उसका यह विश्वविद्यालय बना है।
फीसवृद्धि पर हो पुनर्विचार
आज उसी विश्वविद्यालय की फीस में 400 प्रतिशत की वृद्धि हो जाना कइयों के सपनों पर अंकुश लगने की तरह है। अगर कोई इस फीस वृद्धि को जस्टीफाई करता है तो वह सीधा व्यापार को समर्थन करने की तरह व्यवहार करने वाला ही हो सकता है। ऐसी यूनिवर्सिटी जो कई दशकों से यूपी जैसे राज्य के बहुतायत लोगों की उम्मीदों को पंख देने वाली रही हो को इतनी बड़ी फीस वृद्धि से पहले जनराय ज़रूर लेनी थी। ऐसी जनसमुदाय से जुड़ी यूनिवर्सिटियां या शिक्षा ही कभी भी व्यवसाय का माध्यम नहीं होना चाहिए। इस फीस वृद्धि पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।
दूसरी तरफ आंदोलन कर रहे स्टूडेंट्स के आत्मदाह के प्रयास करने की खबरें भी तैर रही हैं, उन्हें ऐसी चीज़ों से बचना चाहिए, लड़ाइयां और विरोध जीवन रहने पर ही की जा सकती हैं। जीवन ही नहीं रहेगा तो फिर ऐसी लड़ाइयां लड़ेगा कौन ? शांतिपूर्वक और अहिंसक लड़ाका बनकर ही बात रखी जानी चाहिए। विजय अगर होगी तो उसका एकमात्र यही रास्ता है। जीवन समाप्त करना, लड़ाई खत्म करने जैसा है। इन रास्तों को चुनना अपनी हार को चुनना ही है। इनसे बचा जाना चाहिए।