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अंधों में जब कोई राजा काना हो

इतना निश्चिंत मत रहो,

तुम कतार में हो!

जो समझ कर भी न आए समझ,

वैसे मझधार में हो।

कलम हो, या कमाल के हो,

तुम कतार में हो!

चाहे कितनी ही रटी हो,

सेक्युलर, डेमोक्रेटिक भाषा,

अपनी टिकट लेने को,

लोकल हो; या ग्लोबल हो,

पश्चिम हो या पश्चिम की हो,

तुम कतार में हो!

सुना था शहर है दूर कहीं,

जहाँ इंसानों का बसेरा है,

यहां तो अब बस शमशानों पर भरोसा है।

उस जहान में जाने को,

इतराने और बहाने को, गंगा नहाने को,

तुम कतार में हो!

जब भी लगे तुम्हें भूख,

होठ जाए जब सूख,

पहचान पत्र जब जाए छूट,

तुम्हारे पास; या कोई दूर,

अंधों में जब कोई राजा काना हो,

समझ लेना कि तुम कतार में हो!     

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