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“जब मुझे अनाथ होने का डर सताने लगा”

माता पिता से बच्चों को लगाव जन्मजात और स्वाभाविक है, क्योंकि बच्चे अपने जीवन में कोई भी कल्पना अपने माता पिता के बिना नहीं करते हैं, क्योंकि उसका प्रथम रोल मॉडल/आइकॉन/आदर्श उनके माता पिता ही होते हैं।

कौन थे “श्रवण कुमार”

श्रवण कुमार एक पौराणिक चरित्र है। ऐसा माना जाता है कि श्रवण कुमार के माता-पिता अंधे थे। श्रवण कुमार अत्यंत श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करते थे। एक बार उनके माता-पिता की इच्छा तीर्थयात्रा करने की हुई। श्रवण कुमार ने कांवड़ बनाई और उसमें दोनों को बैठाकर कंधे पर उठाए हुए यात्रा करने लगे।

एक दिन वो अयोध्या के समीप वन में पहुंचे। वहां रात्रि के समय माता-पिता को प्यास लगी। श्रवण कुमार पानी के लिए अपना तुंबा लेकर सरयू तट पर गए। उसी समय महाराज दशरथ भी वहां आखेट के लिए आए हुए थे। श्रवण कुमार ने जब पानी में अपना तुंबा डुबोया, दशरथ ने समझा कोई हिरन जल पी रहा है। उन्होंने शब्दभेदी बाण छोड़ दिया। बाण श्रवण कुमार को लगा, दशरथ को दुखी देख मरते हुए श्रवण कुमार ने कहा- मुझे अपनी मृत्यु का दु:ख नहीं, किंतु माता-पिता के लिए बहुत दु:ख है, आप उन्हें जाकर मेरी मृत्यु का समाचार सुना दें और जल पिलाकर उनकी प्यास शांत करें।

दशरथ ने देखा कि श्रवण दिव्य रूप धारण कर विमान में बैठ स्वर्ग को जा रहे हैं। पुत्र का अग्नि संस्कार कर माता-पिता ने भी उसी चिता में अग्नि समाधि ली और उत्तम लोक को प्राप्त हुए। कहा जाता है कि राजा दशरथ ने बूढ़े माँ-बाप से उनके बेटे को छीना था इसीलिए राजा दशरथ को भी पुत्र वियोग सहना पड़ा! रामचंद्र जी चौदह साल के लिए वनवास को गए। राजा दशरथ यह वियोग नहीं सह पाए इसीलिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

मेरी स्थिति क्यों है “श्रवण कुमार” के जैसी?

लगभग एक वर्ष पूर्व मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि उनके पेट में हल्का सा दर्द होता है, तो मैंने कहा कि आप नज़दीज के कोई डॉक्टर के पास जाइये तो उन्होंने अपने क़रीब के डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने कहा कि आपको गैस से संबंधित समस्या हो सकती है। आप गैस से संबंधित दवाएं ले लीजिए, पिताजी ने डॉक्टर के बातों को अनुसरण करने लगे लेकिन स्थिति सामान्य न हो पाई और उस वक़्त मैं पटना में अध्यापन कार्य में लीन था।

जब तबीयत में सुधार नहीं आया तो मैंने उनसे कहा कि आप नज़दीक के अति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को डॉक्टर से दिखा लीजिए। पिताजी को वहां से भी राहत नहीं मिली, तब तक मैं पटना से पुर्णिया में जाकर अध्यापन कार्य में लीन हो गया था लेकिन पिताजी की स्वास्थ्य की स्थिति सामान्य नहीं हो रही थी, तब उनको पैसे का इंतज़ाम करके गैस्ट्रो के डॉक्टर डॉ. गोयल के पास दरभंगा भेजा, तब डॉक्टर ने कहा कि आप अविलंब पटना IGIMS में सीटी स्कैन( CT Scan) करवा लीजिए क्योंकि आपके गॉल ब्लैडर में गांठ है और उसमें सूजन है ,उसके पश्चात अपने अध्यापन कार्य से अवकाश लेकर निरंतर 1 महीना(जनवरी 2022) तक IGIMS पटना से के डॉक्टर को दिखता रहा।

पता चला कैंसर है

अस्पताल की एक तस्वीर।

वहां सबसे पहले गैस्ट्रो मेडिसिन के डॉक्टर को दिखाया, उसने CT स्कैन किया उसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि इनको गॉल ब्लैडर कैंसर है । जब बॉयोप्सी रिपोर्ट आया तब मेरी नींद ही जा चुकी थी, उस रात मैं पूर्णिया में था। पूरी रात अपने बेडरूम में रोता रहा और बार-बार अपने को अनाथ होने का खौफ हो रहा था।

अध्यापन कार्य से अवकाश लेकर तुरंत गैस्ट्रो मेडिसीन के डॉक्टर से मिला तो उन्होंने बताया कि आप ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट में जाइए अर्थात कैंसर अस्पताल में जो बिहार राज्य सरकार ने हाल में उसे खोला था, जब ऑन्कोलॉजी डॉक्टर ने देखा तो बताया कि चूंकि आपको गॉल ब्लैडर कैंसर है और वह भी एक निश्चित क्षेत्र में है तो आप गैस्ट्रो सर्जरी के डॉक्टर से मिलिए, जब गैस्ट्रो सर्जरी के डॉक्टर ने रिपोर्ट का अध्ययन किया तो उसने बताया कि बीमारी काफी हिस्सों में फ़ैल चुकी है इसलिए ऑपरेशन का चांस 50:50% है, इससे मैं और भी सहम गया कि पता नहीं किया होगा?

ख़ैर डॉक्टर ने पिताजी के बारे में सबकुछ पूछा कि क्या करते थे और खान-पान कैसा था? उसके बाद उन्होंने कुछ आवश्यक चीज़ों की सूची थमा दिया जिसमें 2 यूनिट रक्त 60000₹ रुपया और साथ में एनेस्थेसिया का ओके रिपोर्ट था। जब पिताजी ने ऐसी स्थिति देखी तो उन्होंने अपने एक करीबी दोस्त(डॉक्टर उमेश प्रसाद सिंह) को याद किया उन्होंने बताया कि आप अविलंब दिल्ली ILBS हॉस्पिटल बसंतकुंज नई दिल्ली चले जाएये, आपका सम्पूर्ण इलाज हो जाएगा।

दिल्ली में इलाज और लूट

तब मैंने पटना से ही तत्काल टिकट लेकर दिल्ली चला गया और वहां पर एक चचेरे भाई(शाहनवाज आलम) के पास गया । उन्होंने काफ़ी हद तक मदद किया । फ़िर ILBS Hospital में ईलाज का दौर शुरू हुआ, जो अत्यधिक मात्रा में महंगा था। पहले सारी जांच हुई, उसके बाद वहां के डॉक्टर ने बताया कि इनका ऑपरेशन तत्काल में संभव नहीं है इसलिए पहले हम केमोथेरेपी करेंगे, उसके बाद इनका ऑपरेशन करेंगे।

6 केमोथेरेपी के बाद जब PET CT हुआ तो पाया गया कि इनके लीवर में एक गांठ और एक पेट में एक गांठ और हो गई है। ऐसी स्थिति में पिताजी का वजन निरंतर गिरता गया। निरंतर 6 महीनें के बाद डॉक्टर ने कहा कि अब इनको दूसरे दौर में 4 केमोथेरेपी और करेंगे। 2 केमोथेरेपी दिल्ली में हुई, उसके बाद पिताजी का दिल्ली से मन ऊब गया और उन्होंने कहा कि मुझे घर ले चलो, तो मैंने उनको तत्काल टिकट से उनको बिहार लेकर आ गया।

फिर बची हुई कीमोथेरेपी के लिए अस्पताल की तलाश शुरू हुई तो पता चला कि प्राइवेट हॉस्पिटल में लूट चल रही है । 25000₹ तक एक केमोथेरेपी के मांगे जा रहे हैं, तब इंटरनेट के सर्च पर मुझे टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल मुंबई का अंगीभूत इकाई मुज़फ़्फ़रपुर के डॉ. होमी भाभा कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के बारे में पता चला, तब 2 कीमो पूरी हुईं । आज भी वही इनका इलाज चल रहा है।

कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान मेरे रिश्तेदारों का रवैया

जब कैंसर की पुष्टि हुई तो रिश्तेदारों की बाँछे खिल गईं, वह आकर मुझे सांत्वना देने के साथ साथ आर्थिक सहायता हल्की फुल्की करने के बाद ज़मीन को बेचने के लिए तैयार करने लगे। कइयों ने मदद जो थी उसको ज़मीन का एडवांस भी बोलना शुरू कर दिया, इस दौरान मेरा मानसिक/आर्थिक/दैहिक स्थिति बेहद ख़राब हो चुकी थी।

फिर मेरे एक सीनियर ने मुझे आर्थिक सहायता के लिए “मिलाप” क्राउडफंडिंग करने वाली संस्था पर अपनी बात रखने के लिए बताया, उसके बाद उस स्थिति को देखकर मेरे रिश्तेदार भड़क उठे और बोले कि अब हमलोग की स्थिति ऐसी हो गई है कि हम क्राउडफंडिंग की मदद लेंगे? यह हमारे खानदान के लिए इज़्ज़त नीलाम होने की बात है और आज पूरे एक वर्ष हो गए हैं उसके बाद मेरी आर्थिक स्थिति दिनोंदिन ख़राब होती जा रही है लेकिन कोई भी रिश्तेदार पूछ तक नहीं रहा है।

श्रवण कुमार होने की वजह

किसी भी इंसान के जीवन में माता पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता है, क्योंकि उनके साथ बच्चों की पूरी संवेदना जुड़ी होतीं हैं, उसके सभी ख़्वाब में माता पिता सम्मिलित होते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक इंसान हूं, जो अपने माता पिता को अपने साथ निरंतर देखना चाहता हूं इसलिए मैंने प्रण लिया था कि मुझे अपने आप को बेचना भी पड़ जाए, तो अपने पिताजी का उपचार करवाऊंगा और उसी का परिणाम है कि मेरे पिताजी आज भी जीवित हैं और हमारे साथ हैं, हम यह भी जानते है कि शरीर नश्वर है लेकिन जहां तक संभव हो उपचार हो उनका, कैंसर से लोग अविलंब मर जाते हैं लेकिन उपचार हो तो कुछ और ज़िदगी मिल सकती है।

आधुनिक युग में जहां दिन प्रतिदिन हज़ारों की तादाद में दुनिया भर में वृद्धाश्रमों का निर्माण हो रहा है और लाखों की तादाद में लोग अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में जाकर छोड़ आते हैं । वहां “श्रवण कुमार” बनना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है ।

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