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Covid-19 औऱ महात्मा गांधी : विकास की अंधी दौड़ में एक युगद्रष्टा

विकास और विलासितापूर्ण जीवन की चाहत समाज में सदा से आकर्षण का कारण रहा है। समय की कलकल बहती धारा पर विकास के मानक तय किये जाते रहे हैं। समय की पुकार पर ही इतिहास स्वयं को भी दोहराता है, चाहे वह राम, कृष्ण, बुद्ध हों या फिर गांधी जैसे महापुरुष का अवतरण हो या महामारियों (1920:प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात,औऱ अब 2020-2022 ) का तांडव। ऐसे दुर्लभ घटनाक्रम शताब्दियों में ही प्रकट होकर मनुष्य को वास्तविक सीख दे जाते हैं।
पुनर्जागरण के पश्चात पश्चिमी जगत से उठा यह आर्थिक विकास की अंध-प्रतियोगिता से भारत भी अछूता नही रहा। आजादी के उपरांत भारत ने भी औद्योगिकरण का मार्ग चुना, और सम्भवतः सफल भी रहा। आर्थिक उन्नति के साथ-साथ तीव्रगामी परिवहन का भी दौर शुरू हुआ। काल कारखाने और रेल मार्ग(अब हवाई मार्ग भी शामिल है) से तीव्र परिवहन द्वारा माल ढुलाई की गई जिससे अनेक सामाजिक समस्याओं जैसे प्रदूषण, गरीबी व असमानता, राजनीति में धनिकों का हस्तक्षेप इत्यादि को जन्म दिया, साथ ही साथ यह व्यवस्था महामारी जैसी घातक बीमारियों का तीव्र वाहक भी बना।
विषाणु जनित रोग न केवल मानव बल्कि आर्थिक आघात का भी एक कारण बना। इन सबके पीछे आर्थिक संपन्नता एवं राजनीतिक लाभ का उद्देश्य ही केंद्र में रहा है।
भूमंडलीकरण के इस दौर में शहरों की चकाचौंध बढ़ती जा रही थी, वहीं गाँवों की सादगी धूमिल होती प्रतीत हो रही थी। एक विषाणु का प्रकोप ने हमे गांधी के विचार पर  दोबारा विमर्श का अवसर प्रदान किया है जिसमें वही गांव की गलियों की सादगी और स्वच्छता में ले जाता है जहां गोधूलि बेला का आनंद मिलता है, जिसका अभाव आज की भागदौड़ भरी चकाचौंध दुनिया में खलता था।
गांधी ने पूंजीवाद और औद्योगिककरण का समर्थन न कर ,वैकल्पिक मार्ग को प्रथमिकता में रखा। गांधी ने गाँवों को एक राष्ट्र में उत्पादन की सबसे छोटी इकाई के रूप में देखा। इसीलिए उन्होंने ग्रामोद्योग पर विशेष जोर दिया जिससे वास्तविक मांगों की पूर्ति की जा सके और ग्राम आत्मनिर्भर बन सके अर्थात संभव है गांधी मुक्त व्यापार के विरुद्ध विचार के समर्थक थे। गांधी के विचारों में “अर्थ पक्ष और नैतिक पक्ष एक दूसरे के पूरक है, अर्थात आर्थिक प्रतिस्पर्धा में हमें अपनी नैतिकता को भूलना नहीं चाहिए क्योंकि प्रकृति के नियम पूर्ण सत्य हैं, परंतु आर्थिक नियम समय व स्थान के साथ बदलते रहते हैं।
गांधीजी  के अनुसार“इस पृथ्वी पर मानव की आवश्यकता अनुसार प्रचुर मात्रा में संसाधन उपलब्ध है, परंतु मानव की लालसा के अनुरूप संसाधन नहीं हैं”। अगर मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं का उपयोग करें तो कोई भी इस दुनिया में भूखा नहीं मरेगा।
गांधीजी के विचारों को शब्दों में बांधना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। परंतु एक युगद्रष्टा के रूप में गांधी के विचार, आज के परिस्थितियों से बखूबी मेल खाते हैं। यही विचार गांधी के कद को ऊँचा बनाता है और महात्मा के श्रेणी के ला खड़ा करता है।
@ Dharmendra Kumar, Research Scholar
Central University of South Bihar, Gaya
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