JASWANT KUMAR
महँगाई की मार
बीते कुछ वर्षों में रिजर्व बैंक की चिंता दिख रही है कि कैसे महँगाई से आम जन को राहत पहुँचाई जाए। एक बार फिर भारतीय रिजर्व बैंक ने यह सूचित करने के प्रयास किए है कि आर्थिक सुधार के सकारात्मक कार्य को जारी रखा जा रहा है। मगर जिस तरह के मुद्रस्फीति बनी हुई है, वह चिंताजनक है और यह सोचने की बेहद जरूरत है कि कैसे महँगाई से पार पाई जाए। इसी के प्रयत्न हेतु रिजर्व बैंक ने पिछले कुछ समय में पच्चास आधार अंक की कमी की है , इस से पूर्व भी चालीस आधार अंक की कटौती की थी , इसको करने के पीछे जो उदेश्य छिपा है वो है थोक मूल्य को कम करना शामिल है। मगर जो भी प्रयत्न हुए है उनका उत्साहजनक परिणाम परिलक्षित नही हुए है । महज खुदरा मूल्य में बेहद थोड़ी सी कमी हुई पर थोक मूल्य में कोई परिवर्तन नही हो पाया है । जो भी वस्तु -सेवाओं का निर्यात डॉलर में किया जाता है। रूपए के मूल्य में डॉलर के समक्ष कमजोर पड़ना एक मुख्य कारण है कि भारत को कई सारे सामान का आयात करना पड़ता है । जिसका मूल्य डॉलर में चुकाना होता है । जिस कारणवश महँगाई पर नियंत्रण नही स्थापित हो पाई है।
थोक मूल्य का प्रभाव
थोक मूल्य में वृद्धि का अर्थ है कि बाजार में वस्तुओं की कीमतो में अधिक इजाफा है, जिस से वस्तुओं की माँग में कमी आएगी , वस्तुओं की मात्रा में कमी का कारण को टटोलने पर यह मालूम होता है कि कारण कोरोना के कारण आई बेरोजगारी को ठहराया जा सकता है। कोरोना के समय में काफी सारे रोजगार मूलक कम्पनियाँ अपना धंधा समेट कर भारत से चली गई है। और महँगाई पर यदि लगाम नहीं लगाई गई तो माँग में कमी के कारण बेरोजगारी , उधोग -धंधे को चौपट कर सकता है।
कैसे संम्भव हो कि आर्थिक विकास दर वृद्धि
देश के समक्ष यह मुश्किलात है कि अपने विकास सम्भावनाओ को तलाशे तथा उन पर ऐसे कार्य करे कि जो विकास की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ लोक जनजीवन को कैसे बेहतरी को अधिकतम करें। इसके लिए जब विकास की सम्भावनाओं को तलाशने के रूख पर काम किये गए, उस समय में बड़े उधोग पर और भारी उधमी पर विशेष नजर रखने की विकास को बनाए रखने के लिए ध्यान दिया गया । इसी समय में जो क्षेत्र उपेक्षित रह गया वह कृषि क्षेत्र था , जो कोरोना महामारी से उभरने में मदद कर रहा था , पर अब इस पर ध्यान नही दिए जाने की वजह पर रुख करने से उन मामलातो पर चर्चा करना जरूरी हो जाता है। क्योंकि कृषि की अपनी समस्याए है पर इन समस्याओं का समाधान भी जभी किये जा सकते हैं, जब कृषि क्षेत्र को महत्वता दी जाए। अन्यथा देश को अपने खाद् संकट का सामना करना होगा । यह देश के लिए अच्छे आसार नजर नहीं आ रहे है। अंततः यह बात कहने में कोई झिझक नही होनी चाहिए कि भारतीय रिजर्व बैंक इन पर सुधार कर की चिंता स्वाभाविक और परिस्थिति की गंभीरता को जताता है।