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जनाक्रोश और फैलता उपद्रव

शु्क्रवार के दिन नमाज के बाद सड़कों पर जो कुछ भी हुआ देश के शहरों में ऐसी हिंसा भड़की जिसमें प्रदर्शन , आगजनी , तोड़फोड़ , पथराव, लाठीचार्ज भी हुए जिसमें कई लोग की मृत्यु हो गई। दहशत पैदा करने वाला यह अराजकता का शैलाब भाजपा के दो नेताओं द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब के बारें में विवादित टिप्पणी करने के बाद किया गया यह दृश्य प्रतिरोद्ध जताने का सिर्फ रवैया मात्र है।

जनाक्रोश से फैलता उपद्रव

इस घटना की सही परख जब की जा सकती है, इस पर ध्यान दिया जाए कि कैसे पुलिस पर हमला किया गया जो इस मामले को शांत करने का प्रयास कर रही थी उन पर भी हमले किये गए। हालात को संभालने के लिए पुलिस ने भी आँसू गैस के गोले छोड़े हिंसा को उकसाने वाले व शामिल युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। कई शहरों मे कर्फ्यू , धारा -144 लगा दी गई । यह परिस्थिति की गंम्भीरता को दिखाता है।

व्यवस्था का उचित क्रियान्वयन

यह तो स्पष्ट है कि जो कुछ भी सड़को पर हुआ इससे यह प्रतीत होता है कि उपद्रवी लोगों को सिर्फ बहाना चाहिेए था , क्योंकि नुपुर शर्मा के बयान पर इस्लामी जगत मे काफी निंदा हुई थी लेकिन भाजपा ने उन्हे दल से निष्काषित कर दिया । इससे यह बात साफ हो जाती है दल ने अपनी गलती को सुधारने का प्रयास किया पर हालात बिगड़ गए । पर समझने योग्य यह है कि जो कुछ भी नेता ने कहा वह राजनीतिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंदर ही कहा। पर भारतीय परिपक्कव समाज का परिचय देने की जरूरत थी। क्योंकि देश में पहले के मुताबिक शिक्षा , साक्षरता में बढ़ोतरी दर्ज की गई है । तो यह भारतीयों के मन -मस्तिष्क से भी जाहिर होने चाहिए ।

राजनीति मे सुधार की गुजाइश

उन धार्मिक नेताओ को समझ मे आना चाहिए कि क्या ऐसे उपद्रव से कैसे छवि वह अपने समुदाय की पेश करते है। सवाल यह भी है कि क्या धार्मिक विशेष कीटिप्पणी से केवल धार्मिक समुदाय विशेष की भावनाए ही आहत होती है । यह इसीलिए है प्रश्न क्योंकि यह बात किसी से छिपा नही है कि कैसे शिवलिंग पर ज्ञानवापी परिसर ने सर्वेक्षण पर भदी -ओछी टिप्पणी की थी ।

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