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कितनी महत्वता है ब्रिक्स वार्ता की

JASWANT KUMAR 

कितनी महत्वता है ब्रिक्स वार्ता की

क्या आज यह आवश्यक हो गया है कि दूसरों देशों के साथ संघर्ष किया जाए , यदि नहीं तो फिर क्यों विश्व के देश किसी न किसी रूप में युद्ध को सहयोग प्रदान कर रह हैं। यह बेहद जरूरी है कि शांति बनाए रखी जाए पर यह कथन केवल अब दिखावा या अपने देश को आदर्शवादी राष्ट्र के रुप में प्रदर्शित करने का प्रयास करते है। पर वास्तविकता क्या है यह कई देश इस बात को भलिभाँति समझते होंगे। क्योंकि यह सभी देशों के समक्ष दिख रहा है कि कैसे दुनिया दो खेमों बँट गई है । एक गुट वह है, जो जिसका नेतृत्व अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्र कर रह है। दूसरा गुट वह है जो जिसका दारोमदार रूस के कंधे पर हैं। इसका साथ चीन दे रहा है। पर यह बात कही जा सकती है , आने वाले दिनों में किसी को इस घटना का परिणाम क्या होगा? यह समझा जा सकता है कि यह जो शीतयुद्ध चल रहा है यह विश्व शांति और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए किसी भी प्रकार से अनुकूल नहीं हैं। यह बात वहन योग्य है किसी देश को युद्ध से कुछ खास हासिल नहीं कर सकते है,पर अंततः वार्ता से शांति और हितों को पूरा किया जा सकता है पर यह बात किसी को आत्मज्ञान का बोध नहीं हो रहा है। पर भारत अपनी किसी भी देश किसी भी प्रकार से सहयोग न करके , किसी भी खेमों में शामिल बगैर शांति का पक्षधर है।

ब्रिक्स की चर्चित मुद्दों विश्लेषण

इस बार ब्रिक्स का चौदहवा शिखर सम्मेलन में जो मुद्दे चर्चा में रहे है, जिनका जिक्र रहा है, वह है अफगानिस्तान संकट , रूस – यूक्रेन युद्ध रहा है। बैठक के उद्घाटन से समापन तक ऐसे संबोधन और साझा बयान जारी किया कि यह विश्व अर्थव्यवस्था का विकास जभी सम्भव होगा कि राष्ट्रों के मध्य कोई टकराव न हो , अन्यथा बाँधा आना तो स्वाभाविक है। ब्रिक्स के सदस्य देश विश्व राजनीति और अपने संकटों के टकराव के कारण चिंतित है। यह चिंता चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के उद्भोषण के स्पष्ट नजर आई,और कहा कि शीतयुद्ध के टकरावों को छोड़ना ही होगा, यह समय की माँग है, यह जरूरी कि ताकतवर देश अपने शक्ति के दम पर शीतयुद्ध और टकरावों को बढ़ावा देते है, यह विडम्बना है कि वही देश फिर शांति को स्थापित करने का प्रयास करते है, इन सब से जो एक बात उभरकर सामने आती है,कि जो सर्वपरि मायने रखता है, वह निहित स्वार्थ , हितों का जुड़ाव रहता है।

चीन की दोअम व साम्राज्यवादी मानसिकता

चीन के राष्ट्रपति भले ही कुछ भी कहे यह कथन अधिक कथननीय है, कि कैसे चीन अपने विस्तारवादी रूख का पालन करता है , और कैसे चीन के पड़ोसी देश उस से प्रभावित होते है , किस तरह चीन कमजोंर देश को ऋण के जाल में फँसाता है , चीन किस तरह विश्व में दक्षिणी चीन सागर में अपनी मनमानी करता है यह भला किस से छिपा है , यदि चीन वाकई चाहता है कि यूक्रेन युद्ध रुक जाए तो खुल कर यह बोलता क्यों नही कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रोका जाना चाहिए । जिस से विश्व में शान्ति बनी रहे है।

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