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“मर्दों, आप रणवीर का मज़ाक उड़ाते हैं क्योंकि आप असुरक्षित महसूस करते हैं”

एडिटोरीअल नोट: यहां ‘मर्द’ शब्द से मतलब विषमलैंगिक और सिस जेंडर (जो ट्रांसजेंडर नहीं हैं) मर्दों से है। हिन्दी की व्यथा ऐसी है कि अभी तक हमारे पास इसके लिए उचित शब्दावली नहीं है और उसे अड्रेस करने के लिए एक और आर्टिकल लगेगा।

“अरे दीपिका के कपड़े चुरा के पहनता है रणवीर सिंह!”

“कैसे हिज* जैसी हरकत करता है रणवीर सिंह!”

ऐक्टर रणवीर सिंह के बारे में ऐसी फब्तियां कसना इंटरनेट का सबसे पसंदीदा काम है और ऐसे बातें करने वालों की नफरत तब परवान चढ़ गई जब रणवीर ने ‘पेपर’ मैगज़ीन के लिए एक न्यूड फोटो शूट कराया। आलम ये है कि आज की तारीख में रणवीर सिंह के खिलाफ मोर्चे खोले जा रहे हैं, FIR की जा रही है, उनके जेंडर और चॉइस को लेकर घटिया मीम बनाए जा रहे हैं। आखिर रणवीर में ऐसा क्या है जो लोग और खास कर मर्द, उनसे इतना ज़्यादा चिढ़ते हैं?

अच्छा, शुरू करने से पहले एक कनफेशन करूं? कुछ साल पहले मैं भी इन मर्दों से ज़्यादा अलग नहीं था। हां, कभी ऐसे मज़ाक नहीं बनाए लेकिन मैं यह मानता हूं कि ऐसे कुछ भद्दे जोक्स पर हंसा ज़रूर हूं। शायद इसी वजह से मैं अब, जब उस वक्त से ज़्यादा संवेदनशील हो गया हूं, यह समझने के लिए एक बेहतर स्थिति में हूं कि मेरा रणवीर को एक हंसने का मुद्दा समझना उस पैट्रीआर्कल सोच से आता था, जिसमें मर्दानगी की एक बड़ी ही ओछी परिभाषा है और जहां जेंडर को लेकर कोई समझ नहीं है।

रणवीर सिंह के कपड़े

मेरे साथी मर्दों, सबसे पहले तो मुझे ये बताओ कि ये ‘महान’ ज़िम्मेदारी तुम लोगों को किस न्यायधीश ने सौंपी है कि तुम दुनिया के तमाम इंसानों के कपड़े की चॉइस को जज करो? मतलब क्या कोई ऐसा सीक्रेट कोलॉजीयम चल रहा है क्या जहां तुम्हें चुन कर तुम्हें अग्नि की शपथ दिलाई जाती है?

मज़ाक की बात एक तरफ, ऐसा भी मुमकिन है कि इन मर्दों को यह तक एहसास नहीं होता हो कि रणवीर के कपड़ों का मज़ाक उड़ाना उन्हें स्त्रीद्वेष और नफरत से पीड़ित इंसान बनाता है।

महिलाओं का शर्ट-पैंट पहनना उन्हें मज़ाक का पात्र नहीं बनाता लेकिन अगर इसे उलट दें तो स्कर्ट या साड़ी पहनने वाले मर्द का मज़ाक बनाया जाता है।

ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं होता कि इसका चलन कम है, बल्कि इसका मूल कारण यह है कि महिलाओं से जुड़ी वस्तुओं, चाहे वो कपड़े हों या मेकअप हो या फिर आभूषण, उनको लोग कमज़ोरी और निम्नता की निशानी मानते हैं।

जब कोई पुरुष इन चीजों को अपनाता है तो वो समाज को ऐसा बेवकूफ लगता है, जो जानबूझ कर निम्नता की ओर जा रहा होता है और आप उसकी मर्दाना कमज़ोरी का सर्टिफिकेट ज़ारी कर देते हैं।

ऐसी घृणात्मक और बेहूदा पितृसत्तात्मक सोच के पीछे एक हद तक अंग्रेजी गुलामी की मानसिकता का भी असर है। आभूषण हो या सुंदर ड्रेस हो या फिर मेक अप, ये काफी हद तक औरतों और मर्दों दोनों के लिए ही स्वीकार्य रहे हैं। वाजिद अली शाह से लेकर हिंदुओं के देवताओं की मूर्तियों तक, ऐसे कपड़े और शृंगार देखे जाते रहे हैं, तो वेशभूषा देवताओं पर पूजनीय होती है वो रणवीर सिंह पर अजीब कैसे लगने लगती है?

रणवीर का नंगा बदन

जब सलमान खान की शर्ट गुंडों से लड़ते हुए उतरती है तो मर्दों की यही फौज उसको ‘भाई भाई’ बोल कर कंधों पर चढ़ा लेती है। कई लोग धर्म का हवाला देकर बिना कपड़ों के घूमते हैं, तो उसी नंगे बदन के सामने लोग दंडवत कर आशीर्वाद लेते हैं। फिर रणवीर का ऐसा क्या गुनाह?

इस दोहरेपन का रीज़न मैं आपको बताता हूं और वो है सेक्शूऐलिटी! आप मर्दों को ये मंजूर है कि कोई हिंसा दिखाने में अपने कपड़े उतार ले लेकिन मजाल है कि वो अपनी सेक्शूऐलिटी के बारे में खुलकर बात कर पाए। आपको रणवीर का अपनी बॉडी से कमफर्टबल होना खटकता है, क्योंकि शायद आप अपनी बॉडी, अपनी सेक्शूऐलिटी को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। बजाय इस बात पर सवाल उठाने के कि क्यों समाज और स्टेट द्वारा आपको अपने ही शरीर को स्वीकार करने से क्यों रोका गया, आपको ज़्यादा आसान ये लगता है कि आप रणवीर सिंह को बुरा भला बोल दें।

अगर ऐसा नहीं होता तो आपको ये बात खटकती कि क्यों इस देश में जब कोई अपनी मर्जी से, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए अपने बदन की तस्वीर ले रहा है तो उसके लिए पुलिस उसपर शिकायत कैसे दर्ज कर सकती है? क्या किसी का शरीर भी अब स्टेट के प्रशासन की हुकूमत के अंदर आता है? जब आपकी सबसे मूल चीज़, जिसके साथ आप पैदा हुए, उस पर ऐसी पाबंदी है तो क्या ये आज़ादी है?

क्या मैं रणवीर सिंह का फैन हूं?

आप में से अधिकतर लोग शायद यही मान कर चल रहे होंगे लेकिन ऐसा नहीं है, उल्टे मैं रणवीर सिंह की पॉलिटिक्स और उसकी कई फिल्मों के प्रापगैन्डा के बिल्कुल खिलाफ हूं। जब वो ऐसी फिल्म में काम करता है, जिसमें जौहर को ग्लोरीफाय किया जाए या जिस से जातिवादी ब्राह्मण शासक पेशवाओं के दमनकारी इतिहास पर पर्दा डाला जाए, तो ऐसा कलाकार मेरी नज़रों में अपनी कला के लिए तो इज्ज़त नहीं पा सकता लेकिन तब भी मैं उसके चॉइस के लिए, उसके बदन पर उसके अधिकार के लिए और जेंडर की सही समझ के लिए अपनी आवाज़ ज़रूर उठाऊंगा। 

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