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“मैं प्रेमचंद्र की जबान, मैं उर्दू भाषा हूं”

मैं उर्दू भाषा हूं

इसी मुल्क की ज़बान।

अफ़सोस मुझे मज़हबी रंग में रंग दिया

और मुझे मुसलमान समझा जाने लगा

लेकिन

मैं प्रेमचंद, राजेन्द्र प्रसाद की जबान हूं

मैं हिंदी सिनेमा की पहचान हूं

मैं गीतकार की आन बान और शान हूं।

मैं मुशायरों की धड़कन हूं

लेकिन फिर भी मुझे इस वतन में ज़िल्लत उठानी पड़ रही है

मैं कई राज्यों की दूसरी राजकीय भाषा हूं

लेकिन सियासत ने मुझे हाशिए पर डाल दिया है

लेकिन मैं हरगिज़ निराश नहीं हूं। 

जब मुझे उत्तर ने भुलाने की कोशिश की तो दक्षिण भारत ने अपना लिया

जब मुझ पर सियासत होने लगी तो दिल्ली शहर में ‘रेख्ता‘ आ गया।

मैं उन नौजवानों की आवाज़ हूं, जिसने मोहब्बत को किया है

क्योंकि मोहब्बत और मैं एक दूसरे का सार हूं।

मैं उर्दू भाषा हूं।।

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